धराली त्रासदी: मलबे के नीचे दबी उम्मीदें, विशेषज्ञों की चेतावनी और ग्रामीणों की जद्दोजहद
-जयसिंह रावत-
अगस्त की उस भयावह रात को भूलना असंभव है, जब खीर गद नदी का उफान धराली गांव को निगल गया। बादल फटने और ग्लेशियर के अस्थिर अवशेषों के कारण उत्पन्न बाढ़ ने न केवल घरों को उजाड़ दिया, बल्कि पूरे गांव को मलबे की मोटी चादर में दफना दिया। चार महीने बाद भी, यह त्रासदी उत्तरकाशी की पहाड़ियों में सांस ले रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि मलबे को साफ करना ‘लगभग असंभव’ है, जबकि सरकार ने मृतकों और लापता लोगों की संख्या पर उठे विवाद पर पुनः अपने आंकलन को सही ठहराया है। लेकिन असली कहानी तो उन ग्रामीणों की है, जो मशीनों की कमी में हाथों से खुदाई कर रहे हैं—अपने खोए हुए अपनों और जीवन के टुकड़ों को खोजते हुए। धराली में विज्ञान की सीमाएं और इंसानियत की पुकार आपस में टकरा रही हैं।
बाढ़ की विभीषिका: आंकड़ों के पीछे छिपा दर्द
5 अगस्त को हुई इस आपदा ने धराली को तबाह कर दिया। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के क्षेत्रीय आंकड़ों के मुताबिक, ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र से करीब 2.5 लाख टन मलबा 9.1 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से गांव तक पहुंचा, जो इमारतों को रौंदता चला गया। आईएसआरओ के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) की त्वरित रिपोर्ट में इसे पंखे के आकार का विशाल जमा मलबा बताया गया है, जो 2021 के तपोवन-विष्णुप्रयाग हादसे से तुलनीय है।
धराली में गुमशुदा लोगों को लेकर उठे विवाद को लेकर सरकार ने शुक्रवार को मृतकों और लापता लोगों की गिनती पर सरकारी पक्ष रखा है। क्योंकि सरकार में ही पदधारी कर्नल अजय कोठियाल ने हाल ही में गुमशुदा लोगों की संख्या 147 से अधिक बताई थी, जिससे सरकार की किरकिरी हुयी थी क्योंकि सरकार लापता लोगो की संख्या 56 बताती रही है। जिला प्रशासन के अनुसार, शुरू में 52 लोग लापता बताए गए थे, जिनमें से 12 को मृत घोषित किया गया, जिससे कुल मौतों का आंकड़ा 16 पहुंच गया। चार मौतें नेपाली मजदूरों की पुष्टि हुईं, जिनकी लाशें 11 अगस्त को धराली के पास सड़क साफ करने के दौरान मिलीं। पहले लापता बताए गए चार पौड़ी गढ़वाल के मजदूर सुरक्षित पाए गए, जबकि सात नेपाली मजदूरों की नेपाल के अधिकारियों से पुष्टि हुई कि वे सुरक्षित हैं। एक मजदूर का नाम गलती से दो बार दर्ज हो गया था।
बीजेपी नेता कर्नल अजय कोठियाल (रिटायर्ड) के 147 लोगों के फंसे होने के दावे पर प्रशासन ने कहा कि कोई नई जानकारी मानदंडों के अनुसार सत्यापित की जाएगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मृतकों के परिजनों और घर गंवाने वालों को 5 लाख रुपये की तत्काल सहायता की घोषणा की थी, लेकिन ग्रामीण इसे ‘अपर्याप्त’ बता रहे हैं। विमान वायु सेना और निजी ऑपरेटरों ने 634 हेलीकॉप्टर उड़ानों में 1,386 लोगों को हर्षिल और भटवाड़ी तक सुरक्षित पहुंचाया। हालांकि यह आंकड़ा मार्ग में फंसे तीर्थ यात्रियों का है, स्थानीय आपदा पीड़ितों का नहीं। पुलिस, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, सेना, एनडीआरएफ और बीआरओ के 1,000 से अधिक जवान तैनात रहे।
मलबे का भूत: विशेषज्ञों की कठोर सच्चाई
चार महीनों बाद भी धराली का परिदृश्य ‘सीमेंट जैसा’ कठोर हो चुका है। बार-बार गीला-सूखा होने से मिट्टी, पत्थरों और बजरी का यह ढेर इतना सख्त हो गया है कि भारी अर्थ मूवर्स भी नाकाम साबित हो रहे हैं। एनडीआरएफ कमांडेंट सुदेश कुमार, जिनकी 100 से अधिक सदस्यीय टीम एक महीने से ज्यादा लगी रही, ने कहा, ‘यह मलबा इतना घना और सख्त है कि उसे भेदना बेहद मुश्किल और जोखिम भरा है।’
भूवैज्ञानिक और पूर्व यूएसडीएमए कार्यकारी निदेशक पियूष रौतेला ने चेतावनी दी कि पूरे मलबे की खुदाई नई आपदाएं ट्रिगर कर सकती है—जैसे नदी का रुकावट, द्वितीयक मलबा प्रवाह, सिल्ट की अधिकता और नीचे की प्रदूषण। मालपा, केदारनाथ और बस्तारी जैसी पुरानी त्रासदियों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘ऐसे विशाल जमा मलबे के नीचे दफन शवों को ढूंढने की कोई तकनीक नहीं है। पहले भी कई लाशें गहरे मलबे में दफन रह गईं।’ द एनेर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) के फेलो प्रसून सिंह ने इसे ‘व्यावहारिक रूप से असंभव’ बताया। उन्होंने कहा, ‘पूरी सफाई असंभव है। केवल प्राथमिक क्षेत्रों—जैसे आवासीय इलाके या मुख्य सड़कें—को ही साफ किया जा सकता है, वो भी जबरदस्त प्रयास से। छोटे ढीले मलबे नदी के बहाव में खुद साफ हो सकते हैं।’यह विशेषज्ञों की राय न केवल तकनीकी चुनौतियों को रेखांकित करती है, बल्कि ग्रामीणों के दर्द को और गहरा कर रही है। क्या विज्ञान की यह सीमा मानवीय भावनाओं को कुचल देगी?
ग्रामीणों की अनकही लड़ाई: हाथों से खुदाई, दिल से उम्मीद
सरकारी सहायता की कमी में धराली के बाशिंदे खुद मैदान में उतर आए हैं। बिना मशीनों के, फावड़े और हाथों से खुदाई कर रहे हैं। कई ने अपनी जेब से मशीनें किराए पर ली हैं। खुदाई में नकदी, जेवर, बर्तन, ईयररिंग्स और गैस सिलेंडर जैसे सामान मिले हैं, लेकिन अपनों की तलाश अधर में लटकी है। एक ग्रामीण ने बताया, ‘सर्दी आ रही है, मलबा और सख्त हो जाएगा। हम रुक नहीं सकते, भले जोखिम हो।’
सामाजिक कार्यकर्ता द्वारिका सेमवाल ने मीडिया से कहा, ‘विशेषज्ञों की बात सुननी होगी, लेकिन जो सब कुछ खो चुके हैं, उनकी पुकार भी अनसुनी न रहे। विज्ञान और करुणा का संतुलन जरूरी है।’ यह ग्रामीणों की जिद ही है जो धराली को फिर से खड़ा करने की पहली ईंट साबित हो रही है।
आपदा प्रबंधन में तकनीक के साथ इंसानियत को प्राथमिकता दें
धराली त्रासदी हिमालय की असुरक्षित भंगिमा की याद दिलाती है। विशेषज्ञों की चेतावनी साफ है—पूर्ण सफाई संभव नहीं, लेकिन प्राथमिक क्षेत्रों पर फोकस से राहत मिल सकती है। सरकार को मुआवजे के साथ-साथ पुनर्वास योजना तेज करनी होगी। ग्रामीणों की यह जद्दोजहद न केवल उत्तरकाशी, बल्कि पूरे पहाड़ के लिए एक सबक है: आपदा प्रबंधन में तकनीक के साथ इंसानियत को प्राथमिकता दें। वरना, मलबे के नीचे दफन सिर्फ घर नहीं, बल्कि उम्मीदें भी रह जाएंगी।
