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कवि जिवानंद श्रीयाल की 98 वीं जयंती पर उनके लेखन पर हुआ चर्चा-विमर्श

-uttarakhandhimalaya.in-

देहरादून,  13   जनवरी।  दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में संस्कृत  छंदों में गढ़वाळी काब्य रचियता यथार्थवादी कवि जिवानंद श्रीयाल की 98 वीं जयंती के अवसर पर उनके लेखन पर चर्चा-विमर्श हुआ।

मुख्य वक्ता और कार्यक्रम के संयोजक गजेंद्र नौटियाल ने लोककवि के जीवन पर प्रकास डालते हुए बताया कि 12 जनवरी 1926 टिहरी जिले के जखन्याली गांव में जन्मे, पिता टिहरी राजा के पटवारी पद पर थें मगर जब वे 8 वर्ष के थे तब पिता और जब 9 वर्ष के थे तब माता जी की मृत्यु हो गई। ताउ जी क े नैलचामी गाड और आसपास डंगर चराते हुए पलते-बढ़ते जिवानंद ने भैंस की पीठ और नदी की रेत पर आखर ज्ञान लिया। परिवार में संस्कृत छंदो से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी खैरी-बिपदाओं, दुखों से सीखते हुए 21 वें वर्ष में पहली कविता लिखी जो संस्कुत छंद में थी। श्रीयाल जी ने संस्कृत के 24 से ज्यादा छंदों मे ं 300 से ज्यादा कवितांए लिखीं। यथार्थ वादी और आशुकवि तो
कभी वे अपनी कविताओं में लोकजीवन के विरोधाभाषों को उकेतरते बिद्रोही कवि के रुप में सामने आते हैं। ‘‘द्यौ देवता भि जपदा जग को सहारो, संसार मां जनम हो भगवन हमारो। ’’बसंत तीलिका छंद, ‘‘दुन्यां बणौण वाळु धन्य जैन या करी चिंणै’’ पंच्चचामरी छंद और स्त्राग्विणी छंद पर ‘‘ देवी देबतौं को बास भी, पूरी करदीन जो भक्तु कि आस भी’’ आदि कविताओं का सस्वर पाठ किया ।

डा योगेश धस्माना ने कहा कि जिवानंद श्रीयाल ने ठेट संस्कृत छंदों में गढ़वाल के लोकजीवन क े विभिन्न पहलुओं को लेखन के साथ वाचन में सामने लाया। ऐसे अनोखे रचनाकार को राष्ट्रीय स्तर पर परिभाषित किए जाने और पाठ्यक्रमांे में स्थान दिलाने के लिए सरकार को प्रयास करने चाहिए। डा अम्बरीष चमोली ने जीवानंद श्रीयाल की कविताओं की समिक्षा करती संस्कृत छंदों में स्वरचित
कविताओं का सस्वर पाठ किया।

संगीतकार प्रीतम भरतवांण ने कहा कि लुप्त होते संस्कृत छंदों को गढ़वाली भाषा में रेखांकित कर श्रीयाल जी ने ऐतिहासिक कार्य किया जिसे लोक भाषाओं के विकास में स्थान मिले इसके प्रयास किए जाने चाहिए।

कार्यक्रम के अध्यक्ष सम्पादक और साहित्यकार सोमवारी लाल उनियाल ने कहा कि जिवानंद श्रीयाल के लेखन से तब भी समाज प्रेरणा पाते थे जो आज भी उतना ही प्रासंगिक साहित्य हैं। जीवन की जीवटता का संदेश जो श्रीयाल की रचनाओं में हैं वह अनुकरणीय हैं। कार्यक्रम का संचालन गणेश खुगशाल ‘गणी’ ने किया। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के चंद्रशेखर तिवारी ने अपने स्वागत और धन्यवाद भाषण में कहा कि मासिक साहित्यिक संगाेिष्ठयों में वर्ष 2024 का यह पहला कार्यक्रम है जो लोक जीवन के चितेरे और संस्कृत छदंों के मर्मज्ञ गढ कवि जिवानंद
श्रीयाल के रचना कम को समर्पित किया गया है।

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