अपने पेड़ों को बचाने के लिए रविवार की सुबह सड़कों पर उतरा देहरादून
By-Trilochan Bhatt
देहरादून, 24 जून। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर सेकड़ों पेड़ काटने के सरकार के इरादे की जानकारी मिलते ही आज रविवार की सुबह देहरादून सड़क पर उतर आया। अपने शहर की हरियाली और शुद्ध हवा (ऑक्सीजन) देने वाले और बदले में शहर कार्बनडाइऑक्साइड जैसी गैसों को सोखने वाले पेड़ों को बचाने के लिए देहरादून वसीहों में पहली बार ऐसी उत्कंठा देखी गई। इसके साथ ग्रीन पॉलिटिक्स की सोच भी उभरती देखी गई। इस मार्च में यह नारा भी लगा कि पेड़ नहीं तो वोट भी नहीं। मतलब साफ था कि जिस पार्टी के एजेंडे में पेड़ों की रक्षा नहीं होगी, उसे वोट नहीं देंगे। सरकार के खिलाफ तो नारे लग ही रहे थे, हालांकि मुख्य मंत्री सड़क चौड़ीकरण के नाम पर पेड़ न काटने की हिदायत दे चुके हैँ।
रविवार की सुबह देहरादून के बच्चे, वयोवृद्ध, जवान और टॉप रिटायर्ड ब्यूरोक्रेटस सहित समाज के हर वर्ग के लोग मॉर्निंग वाक के बजाय देहरादून के राजपुर रोड पर एकत्र जो गये। वहां जमा हीट वेव्ज के थपेड़ों से त्रस्त हर आदमी का कहना था कि विकास के नाम पर देहरादून के स्वास्थ्यवर्धक ताजा आवोहवा और सुंदरता के लिए देश भर में मशहूर देहरादू के अतीत का गौरव लुट चुका है जिस कारण जीवन कठिन होता जा रहा है। लेकिन सरकार अब बचे खुचे पेड़ों को भी कटवा कर देहरादून को गैस चैम्बर में बदल रही है। बढ़ती आबादी के साथ वृक्ष आवरण बढ़ाना चाहिए था लेकिन सरकार बचे खुचे पेड़ कटवा कर ऑक्सीजन के श्रोत समाप्त करती जा रही है।
रविवार को राजपुर रोड पर एकत्र होने के बाद हजारों की संख्या में दून वासियों ने पेड़ काटने के खिलाफ न्यू कैैंट रोड पर मार्च किया। यह पहला मौका है जब पर्यावरण के मुद्दे पर इतनी बड़ी संख्या में देहरादून के लोग एकजुट हुए।
राज्य सरकार ने देहरादून में दिलाराम चौक से सेंट्रियो मॉल तक लगभग ढाई सौ पेड़ काटने के लिए चिन्हित किए हैं। ऐसा सेंट्रयो मॉल तक सड़क चौड़ीकरण के लिए किया जा रहा है। पेड़ों के चिन्हीकरण की सूचना जैसे ही दूनवासियों को मिली, उन्होंने सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ कैंपेन शुरू कर दी। इस आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए करीब दर्जन भर संस्थाओं के लोग और आम नागरिक दिलाराम चौक पर एकत्रित हुए और सेंट्रियो मॉल तक मार्च किया। लगभग 3000 लोग इस मार्च में शामिल हुए।
हालांकि इससे पहले मुख्यमंत्री ने इन पेड़ों को न काटने की घोषणा कर दी थी। हाथीबड़कला और आसपास के क्षेत्र में इस आशय के बड़े-बड़े होर्डिंग्स भी लगाए गए थे। लेकिन लोगों ने इस पर विश्वास नहीं किया। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि उत्तराखंड सरकार अक्सर इस तरह की झूठी घोषणाएं करती है और मौका मिलते ही पेड़ों को काट दिया जाता है।