धंसते जोशीमठ की ड्रेनेज योजना : जिम्मेदारी बदली, उम्मीदें बरकरार

–जोशीमठ से प्रकाश कपरुवाण-
जोशीमठ भू धसाव आपदा के बाद देश के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों ने कारणों की गहन जांच की। इन रिपोर्टों में एक प्रमुख कारण नगर में सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम का अभाव बताया गया। इसके बाद शासन ने अलग-अलग एजेंसियों को सर्वेक्षण और डीपीआर तैयार करने के निर्देश दिए। पेयजल संसाधन विकास एवं निर्माण निगम ने घर-घर जाकर सर्वेक्षण किया और सीवरेज-ड्रेनेज सिस्टम की डीपीआर तैयार की, जिसे तकनीकी सलाहकार समिति (टीएसी) की स्वीकृति के बाद शासन को भेजा गया।
शासन ने स्वीकृति के उपरांत यह महत्वपूर्ण कार्य उत्तराखंड शहरी क्षेत्र विकास एजेंसी (यूयूएसडीए) को सौंप दिया। माना जा रहा है कि जोशीमठ की संवेदनशील स्थिति को देखते हुए उच्च गुणवत्ता के कार्य सुनिश्चित करने के लिए यह निर्णय लिया गया। हालांकि सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि कार्य यूयूएसडीए से ही करवाना था तो डीपीआर भी उसी से तैयार करवाई जाती। अब एजेंसी को पुनः सर्वे, रिपोर्ट और नक्शा तैयार करने में समय लगेगा, जिससे टेंडर प्रक्रिया और शीतकालीन परिस्थितियों के कारण औली व सुनील क्षेत्रों में निर्माण कार्य में दिक्कतें आ सकती हैं।
भू धसाव प्रभावित क्षेत्र के प्रथम चरण के लिए 261 करोड़ 16 लाख रुपये की वित्तीय स्वीकृति हो चुकी है। पहले इस काम की जिम्मेदारी अनुरक्षण इकाई “गंगा” को दी गई थी, फिर पेयजल निगम को, और अब इसे यूयूएसडीए को सौंपा गया है। प्रभावित क्षेत्र के विभिन्न संगठनों की मांग है कि कार्य पेयजल निगम द्वारा तैयार की गई डीपीआर के अनुरूप ही किए जाएँ ताकि पुनः खतरा न पैदा हो।
राज्य सरकार का कहना है कि सीमांत नगर जोशीमठ के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए पारदर्शिता के साथ यूयूएसडीए का चयन किया गया है। उम्मीद की जा रही है कि औली से लेकर मारवाड़ी तक और परसारी-मनोटी से लेकर होसी तक का पूरा क्षेत्र सीवरेज एवं ड्रेनेज सिस्टम से जोड़ा जाएगा, जिससे जोशीमठ को भविष्य में भू धसाव जैसी आपदाओं से बचाया जा सके।
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि नई एजेंसी कितनी पारदर्शिता और उच्च गुणवत्ता के साथ कार्य करती है। जनवरी 2023 से सुरक्षात्मक कार्यों की प्रतीक्षा कर रहे आपदा प्रभावितों की नजरें यूयूएसडीए की कार्यशैली पर हैं।
