एक्जिट पोल की खुली पोल: ओपीनियन पोल भी भरमाने के लिये थे
-जयसिंह रावत
इस बार के लोकसभा चुनाव में ज्यादातर एक्जिट तो गलत साबित हो ही गये मगर उन्होंने सम्पूर्ण मीडिया की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठवा दिये। इन एक्जिट पोलों ने भाजपा और उसके गठबंधन की सत्ता में आसानी से वापसी के साथ ही चार सौ पार की भविष्यवाणी तक कर डाली थी। चूंकि एक्जिट पोल कराने वाले महीनों से ओपीनियन पोल भी करवा रहे थे जिनमें मोदी सरकार की भारी बहुमत से वापसी की भविष्यवाणियां की गयीं थी। जबकि 4 जून को आये नतीजों ने इन पोलों को धूल चटवा कर उनकी नीयत पर ही बहुत बड़ा सवाल उठवा दिया।
भाजपा को चार सौ पार करवा दिया था एक्जिट पोलों ने
देश की 6 प्रमुख सर्वे ऐजेंसियों में से दो ने एक्जिट पोल में भाजपा के चार सौ पार के नारे की पुष्टि की थी और केवल एक ऐजेंसी ने भाजपानीत एनडीए को सबसे कम 358 सीटें दीं थी। पोल ऑफ पोल्स में एनडीए को 379 सीटें और इंडिया गठबंधन को 136 सीटें दी गयीं थी। इंडिया गठबंधन को सबसे अधिक 182 सीटों की भविष्यवाणी करने वाली अकेली ऐजेंसी सीवोटर थी। हालांकि उसने भी इस गठबंधन को न्यूनतम 152 सीटें ही दीं थीं। बड़ी सर्वे ऐजेंसियों में टुडेज चाणक्य ने तो हद ही कर डाली। उसने इंडिया गठबंधन को 96 से लेकर 118 के बीच और भाजपानीत एनडीए को 385 सेे लेकर 415 तक सीटें दे डालीं थी। जब उनके पोल पर सवाल उठाये गये तो सवाल उठाने वालों का भरी डिबेट में मजाक उड़ाया गया। इन ऐजेंसियों ने कांग्रेस, त्रणमूल और समाजवादी पार्टी के मामले में तो बला की कंजूसी दिखाई थी। इनके अनुसार उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन 10 सीटों तक नहीं पहुंच पा रहा था जबकि भाजपा को 62 से लेकर 65 सीटें दी गयीं थी। बंगाल में ़त्रणमूल कांग्रेस का 10 सा 12 सीट पर निपटा दिया गया था।
क्या कहा था प्रशान्त किशोर ने
1जून को आये एक्जिट पोल पर विख्यात चुनावी विशेषज्ञ प्रशान्त किशोर ने ट्वीट कर कहा था कि, ‘‘अगली बार चुनाव और राजनीति की बात हो तो अपना कीमती वक्त खाली बैठे फर्जी पत्रकार, बड़बोले नेताओं और सोशल मीडिया के स्वयंभू विशेषज्ञों की फिजूल बातों और विश्लेषण पर बर्बाद मत करिये’’। हालांकि स्वयं प्रशान्त किशोर की भाजपा को स्पष्ट बहुमत की भविष्यवाणी भी गलत साबित हुयी है और उनकी भविष्यवाणियों को लेकर एक टीवी शो में पत्रकार करन थापर और किशोर के बीच काफी गरमागरम बहस हुयी थी। प्रशान्त किशोर एकाधिक बार राहुल गांधी को फिलहाल राजनीति छोड़ने की सलाह भी दे चुके थे।
ओपीनियन पोल की ही अगली कड़ी है एक्जिट पोल
जब एक्जिट पोल में इतनी अंधेर हो रही हो तो फिर ओपीनियन पोल्स की विश्वसनीयता की कल्पना की जा सकती है। एक्जिट पोल की निष्पक्षता के बारे में तर्क दिया जाता है कि जब चुनाव हो चुका है तो फिर एक्जिट पोल से चुनाव परिणाम प्रभावित होने या पक्षपाती होने का सवाल कहां उठता है? जबकि कुछ हद तक सच्चाई यह है कि सामान्यतः ओपीनियन पोल की ही अगली कड़ी एक्जिट पोल के रूप में होती है। सर्वे करने वाले ओपीनियन पोल की मनःस्थिति से बाहर नहीं निकलते हैं और ओपीनियन पोल तो एक तरह से ओपीनियन मेकर का ही काम करते हैं। सर्वे करने वाली एक प्रमुख ऐजेंसी सीवोटर के मुख्य कार्यकारी यशवन्त देशमुख का अपने एक्जिट पोल के समर्थन में तर्क था कि सर्वे की उनकी प्रकृया केवल चुनाव के दौरान न होकर साल के 365 दिन चलती रहती है और वे लोग जनता की नब्ज को सालभर ट्रैक करते रहते हैं। सीवोटर ने इस ऐक्जिट पोल में एनडीए को 353 से लेकर 383 तक और इंडिया को 152 से लेकर 182 तक सीटें दीं थी। वे दिल्ली में कांग्रेस को दो सीटें दे रहे थे। और बंगाल पर संदेशखाली की काली छाया बता रहे थे। इसी प्रकार चाणक्य ऐजेंसी के चाणक्य प्रदीप गुप्ता ने एनडीए की सीटें 415 तक पहुंचा दीं थीं।
सर्वे ऐजेंसियों की पृष्ठभूमि की जांच जरूरी
अगर इस देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हैं तथा मतदाताओं को भरमाने के बजाय उनको अपने विवेक और अनुभव के आधार पर फैसला करने देना है तो चुनावी सर्वे करने वाली ऐजेंसियों और उनसे जुड़े उनके व्यापारिक हितों की जांच अवश्य होनी चाहिये। जनता आप पर विश्वास करती है और अगर आप उस विश्वास का व्यापार करने लगो तो यह जनता के साथ धोखा ही है। दरअसल यह उन पार्टियों के साथ भी धोखा है जिनसे इनकी आस्था या हित जुड़े होते हैं।
2014 के चुनाव में भी गलत साबित हुये एक्जिट पोल
एक्जिट पोल और ओपीनियन पोलों के झूठे साबित होने का यह पहला मामला नहीं हैं। सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल की भविष्यवाणियां गलत साबित हुईं। तब एनडीए ने 335 सीटें जीतीं और यूपीए ने मात्र 59 सीटें जीतीं थीं। जबकि कोई भी एग्जिट पोल एनडीए गठबंधन की बड़ी जीत या यूपीए की पूरी तरह से हार का अनुमान नहीं लगा सका। इंडिया टीवी सी-वोटर ने भविष्यवाणी की थी कि एनडीए 289 सीटें और यूपीए 101 सीटें जीतेगा, जबकि इंडिया टुडे-सिसेरो ने भविष्यवाणी की कि एनडीए 261 से 283 सीटें जीतेगा।
2019 के चुनाव में भी सटीक नहीं हुयी भविष्यवाणी
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में, मीडिया एजेंसियों ने कुछ सटीक भविष्यवाणी अवश्य कीं कि एनडीए विजयी होगा, लेकिन सीटों की सही संख्या वास्तविकता से बहुत दूर थी। एग्जिट पोल की सटीकता की जांच इस बात से भी की जा सकती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कुछ प्रमुख राज्यों में एनडीए के लिए सर्वे एजेंसियों ने किस तरह से नतीजों का पूर्वानुमान लगाया था। उदाहरण के लिए पोल ऑफ पोल्स, जो सभी पोल्स का औसत है, ने भविष्यवाणी की थी कि एनडीए उत्तर प्रदेश में लगभग 49 सीटें जीतेगा, लेकिन एनडीए द्वारा जीती गई सीटों की वास्तविक संख्या 64 थी। इसी तरह, टाइम्स नाउ वीएमआर ने भविष्यवाणी की कि एनडीए पश्चिम बंगाल में 11 सीटें जीतेगा, लेकिन एनडीए ने 18 सीटें हासिल कीं। न्यूज 18-आईपीएसओएस ने भविष्यवाणी की कि एनडीए तमिलनाडु में लगभग 14 से 16 सीटें जीतेगा हालाँकि, एनडीए को केवल एक सीट मिली।
सत्तर के दशक में शुरू हो गये थे चुनावी सर्वेक्षण
एग्जिट पोल की शुरुआत भारत में सबसे पहले 1970 अंत और 1980 के दशक के शुरू में हुई थी। ये शुरुआती पोल बहुत ही बुनियादी थे और कुछ अग्रणी संगठनों और मीडिया घरानों द्वारा संचालित किए गए थे। वे काफी हद तक प्रयोगात्मक थे और परिष्कृत नमूनाकरण तकनीकों और डेटा विश्लेषण उपकरणों की कमी के कारण हमेशा सटीक नहीं होते थे। 1990 के दशक में एग्जिट पोल की संख्या और दायरे में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और निजी टेलीविजन चैनलों के आगमन के साथ, मीडिया घरानों ने राजनीतिक कवरेज और विश्लेषण में अधिक निवेश करना शुरू कर दिया। इस अवधि में विशेषीकृत मतदान एजेंसियों का उदय भी हुआ। अपनी बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद, इस समय के दौरान एग्जिट पोल को अक्सर उनकी अशुद्धियों और मतदाता व्यवहार पर संभावित प्रभाव के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा।
अंतिम मतदान तक एक्जिट पोलों पर रोक
ऐसे कई उदाहरण थे जहाँ एग्जिट पोल द्वारा पूर्वानुमानित परिणाम वास्तविक चुनाव परिणामों से बहुत अलग थे। 2000 के दशक की शुरुआत में चुनाव आयोग ने चुनावी प्रक्रिया पर एग्जिट पोल के संभावित प्रभाव पर ध्यान देना शुरू किया। 1998 में आयोग ने मतदाताओं को प्रभावित करने से बचने के लिए मतदान के कुछ चरणों के दौरान एग्जिट पोल के प्रकाशन को प्रतिबंधित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ, मतदान एजेंसियों ने अधिक परिष्कृत तरीके अपनाना शुरू कर दिया। कम्प्यूटरीकृत डेटा संग्रह और विश्लेषण ने एग्जिट पोल की सटीकता और विश्वसनीयता में कुछ हद तक सुधार अवश्य हुआ। इस अवधि में भारत में अध्ययन के एक सम्मानित क्षेत्र के रूप में सेफोलॉजी का उदय भी देखा गया।