धराली जैसी तबाही फिर लौट सकती है, वैज्ञानिकों की चेतावनी; सहस्त्रधारा आपदा से सबक
देहरादून, 29 सितम्बर।उत्तराखंड की नदियाँ और पर्वतीय घाटियाँ इस वर्ष लगातार प्राकृतिक आपदाओं की गवाह बनीं। अगस्त में उत्तरकाशी जिले के धराली और हर्षिल क्षेत्र में बादल फटने से आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई थी। इसी महीने 15-16 सितम्बर को देहरादून के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सहस्त्रधारा भी मूसलधार बारिश और बादल फटने से आए सैलाब का शिकार हुआ। दोनों घटनाओं ने न केवल स्थानीय आबादी की जिंदगी उथल-पुथल कर दी, बल्कि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को भी गंभीर चेतावनी दी है कि यदि त्वरित कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में ऐसी तबाहियां और भी बार-बार हो सकती हैं।
धराली-हर्षिल: वैज्ञानिकों की चेतावनी
स्विट्जरलैंड और भारत के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए ताजा आकलन में पाया गया कि धराली और हर्षिल क्षेत्र में आई बाढ़ कोई अकेली घटना नहीं है। परिग्लेशियल क्षेत्र, पर्माफ्रॉस्ट (जमी हुई बर्फ) के पिघलने और भारी वर्षा के साथ ढलानों पर जमा ढीली चट्टानों व मलबे के कारण यह क्षेत्र बार-बार आपदा के जोखिम में है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि ऊपरी कैचमेंट में यदि सेंसर लगे होते तो 4 से 24 मिनट पहले तक चेतावनी दी जा सकती थी, जो लोगों की जान बचाने के लिए पर्याप्त समय होता। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अब ग्लेशियल झीलों की तरह ही उच्च जोखिम वाले दर्रों और नालों की निगरानी करना जरूरी है।
सहस्त्रधारा: पर्यटन स्थल से मलबे का ढेर
देहरादून का लोकप्रिय पर्यटन स्थल सहस्त्रधारा भी 15-16 सितम्बर की आपदा के बाद खंडहर जैसा हो गया। कभी पिकनिक स्थल के रूप में चर्चित यह क्षेत्र अब 3 से 4 फीट तक मलबे में दबा है। यहाँ खेत बह गए, घर जमींदोज हो गए और कम से कम तीन लोगों की जान चली गई।
गांव के लोगों का कहना है कि अब उनके पास केवल खेती का ही सहारा है। रतन सिंह नेगी, जिनकी चार बीघा जमीन मलबे में दब गई, बताते हैं कि यहां की 90 प्रतिशत आबादी खेती और छोटे स्तर की गतिविधियों पर निर्भर है। पर्यटन यहाँ की जीवनरेखा थी, लेकिन अब सब उजड़ गया है।
उम्मीद और आशंका
स्थानीय लोगों का मानना है कि धीरे-धीरे हालात सुधरेंगे और जब पर्यटन दोबारा शुरू होगा तो जिंदगी पटरी पर लौट आएगी। लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अब मौसम की चरम घटनाएँ (extreme weather events) सामान्य होती जा रही हैं। अगर सहस्त्रधारा में बिना सोचे-समझे होटल और वाणिज्यिक ढांचे बनाए गए, तो भविष्य में यह पर्यटन के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।
वैज्ञानिकों के सुझाव
रिपोर्ट में हिमालयी क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट की लगातार निगरानी, उपग्रह चित्रों और फील्ड सर्वेक्षण की जरूरत पर जोर दिया गया है। विशेषज्ञों ने कहा कि बिना ठोस कदम उठाए, उत्तराखंड की ऊँची घाटियाँ बार-बार अप्रत्याशित और विनाशकारी आपदाओं की चपेट में आती रहेंगी।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि तेजी से बढ़ता शहरीकरण, सड़क और पर्यटन ढांचा, तथा ढलानों पर अंधाधुंध निर्माण जोखिम को और बढ़ा रहे हैं। वैज्ञानिकों ने सख्त नियमावली, बफर जोन और निर्माण पर सीमा तय करने की सिफारिश की है।
पहले जैसा सुरक्षित नहीं रहा हिमालय
धराली और सहस्त्रधारा की त्रासदियाँ एक स्पष्ट संदेश देती हैं—हिमालयी क्षेत्र अब पहले जैसा सुरक्षित नहीं रहा। जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप ने खतरे को कई गुना बढ़ा दिया है। यदि वैज्ञानिक चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया तो उत्तराखंड के पर्यटन स्थल और बस्तियाँ बार-बार तबाही का सामना करती रहेंगी।
