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राम भक्त फ्रेडरिक ग्राउज, एक प्रेरक व्यक्तित्व

 

-गोविंद प्रसाद बहुगुणा-
गांधी जी और काका कालेलकर के अलावा कितने सनातनी हिन्दुओं ने बाइबिल पढ़ी होगी जबकि रामायण को पढ़ने वाले अनेक इसाई विद्वान हुए, फिलहाल मैं‌ दो लोगों की ही चर्चा करूंगा।बेल्जियम से भारत आये एक क्रिश्चियन मिशनरी फादर कामिल बुल्के थे , जो यहां पद्मभूषण से भी सम्मानित हुए, उन्हीं की तरह फेडरिक सलमन ग्राउज (Frederic Salmon Growse १८३६-१८८३) भी एक अनन्य रामभक्त अंग्रेज विद्वान थे।ब्रिटिश शासनकाल में इंडियन सिविल सर्विस में सेवारत रहे वह एक विद्वान पुरातत्वविद और भारतीय भाषाओं के गंभीर अध्येता थे।

उन्होंने भारतीय धार्मिक साहित्य का गंभीर अध्ययन किया। अपने कार्यकाल में वह मेनपुरी,मथुरा, बुलन्दशहर और फतेहपुर के जिला मजिस्ट्रेट (कलक्टर) रहे।मथुरा के बारे में उन्होंने अपने संस्मरण लिखे हैं जो बहुत ही दिलचस्प है -Mthurá: A District Memoir by Frederic Salmon Growse-Printed at the North-western provinces and Oudh government Press, 1883 – Mathura (India : District) – रामचरितमानस पढ़कर वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सन १८७६ में रामचरितमानस का अंग्रेजी अनुवाद कर सबको चौंका दिया। यद्यपि वह ईसाई धर्म के अनुयायी थे लेकिन उन्होंने मथुरा वृंदावन में श्रीकृष्ण भक्ति का भी आनन्द लिया, जब वे वहां कलेक्टर रहे। रामचरितमानस का अंग्रेजी भाषा में शायद यह पहला अनुवाद था जिसका पूरा संशोधित संस्करण १८८३ में प्रकाशित हुआ जब वह Asiatic Society के स्थाई सदस्य बने थे….. The Prologue to the Rámáyana of Tulsi Dás A Specimen Translation by Federic Salmon Growseयह एक पठनीय अनुवाद है ,जैसा मुझे लगा I
उस अनुवाद की कुछ झलकियां प्रस्तुत कर रहा हूं – तुलसीदास के जीवन के बारे में यह लोकोक्ति प्रचलित है कि जब उनकी पत्नी ने उनको फटकार लगाई तो उनकी प्रीति राम के प्रति बढ़ती चली गई और उन्होंने गृह त्याग कर दिया । “अस्थि चर्ममय देह मम् तामे ऐसी प्रीति।तैसी सो श्रीराम मह, होत न तब भव प्रीति।।”you are so much after this bundle of flesh and blood ? If you had half of that devotion to Rama ,your life would be worthy and it will make you immortal…..बालकांड की इस चौपाई का अनुवाद देखिए – “बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना कर बिनु करम करइ विधि नाना।।आनन रहित सकल रस भोगी।बिनु बानी बकता बड जोगी।।तन बिनु परस नयन बिनु देखा। ग्रहहिं घ्रान बिनु बास असेषा।। अस सब भांति अलौकिक करनी।महिमा जासु जाइ नहिं बरनी।।” He walks without legs,hears without ears,does all the deeds without hands,He enjoys all juices without mouth ,spells all the truth without a voice ,touches everything without hands.He sees every object without eyes Inhales all the scents without breath ….आगे लिखते हैं कि -“Tulsidas is the highest tree in the garden of Hindu poetry…”—“God refuses to be mine,thine or his .For him the truth is but oneBut the proud and the vain have forged many out of their desires and fancies” कृष्ण जन्म स्थान मथुरा की प्रशंसा में उन्होंने लिखा -“So great is the sanctity of the spot that its panegyrists do not hesitate to declare that a single day spent at Mathura is more meritorious than a lifetime passed at Benares.”….अंत में उनकी एक टिपण्णी मुझे बहुत मार्मिक लगी जो ध्यान देने योग्य है -“In every age and in every country ,the upper and moneyed class are too materialized to have any intelligent appreciation of art.They understand the fashionable,and are ready to admire the magnificent.
“(स्रोत : अन्ना सेन्टीनरी लाइब्रेरी चेन्नई , तमिलनाडु -GPB )

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