रेवड़ी पर रेवड़ी
-Milind Khandekar
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे से साफ़ है कि रेवड़ी की राजनीति की अपनी सीमाएँ हैं. दिल्ली में लोगों को दस साल से मुफ़्त बिजली और पानी मिल रहा था. महिलाओं के लिए पाँच साल से बस यात्रा फ़्री है. इस बार बीजेपी ने कहा कि हम यह तो देते रहेंगे ऊपर से महिलाओं को हर महीने ₹2500 देंगे. आप ने कहा था कि हम ₹2100 देंगे.जीत बीजेपी की हुई.
पहले तो समझिए कि दस साल रेवड़ी बाँटने का नतीजा क्या हुआ है. 31 साल में पहली बार दिल्ली सरकार घाटे में चली जाएगी. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक़ आमदनी ₹62 हज़ार करोड़ होने का अनुमान है जबकि खर्च ₹64 हज़ार करोड़. चुनाव में बीजेपी की घोषणाओं पर अमल करने के लिए ₹25 हज़ार करोड़ की और जरूरत पड़ेगी. दिल्ली में सड़क, पुल जैसे इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए इस साल ₹7 हज़ार करोड़ कम पड़ गए हैं. ORF के मुताबिक़ दिल्ली सरकार ने पिछले वर्षों में इंफ़्रास्ट्रक्चर के लिए जितना बजट रखा था उससे 39% कम खर्च किया. इसका नतीजा है कि दिल्ली की सड़कों की मरम्मत नहीं हो पा रही है. नई सड़कें और पुल बनाने का काम धीमा हो गया है.
रेवड़ी बाँटो और चुनाव जीतो , यह आसान फ़ार्मूला सभी पार्टियों ने अपना लिया है. मध्यप्रदेश से महिलाओं को कैश देने की कामयाब स्कीम 13 राज्यों ने अपना ली है. इन राज्यों में महिलाओं के हर साल दो लाख करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं. इसका असर विकास कार्यों पर पड़ने लगा है. महाराष्ट्र में ठेकेदारों के बिल रुके हुए हैं तो हिमाचल प्रदेश में सरकार संकट में है. दिल्ली का हाल हम देख चुके हैं.
श्रीलंका में सरकार का दीवाला निकलने के बाद हमारे यहाँ भी रेवड़ी पर चर्चा हुई थी. रिज़र्व बैंक ने चेतावनी दी थी कि ये रास्ता सरकारों को मुश्किल में डाल सकता है. बैंक का कहना था कि फ़्री में बाँटने में फ़र्क़ होना चाहिए कि क्या पब्लिक गुड या मेरिट के लिए है और क्या नहीं? सस्ता राशन, रोज़गार गारंटी, मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च को सही ठहराया गया है या यूँ कहें कि ये रेवड़ी नहीं है. मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी, मुफ़्त यात्रा , किसान क़र्ज़ माफ़ी को रेवड़ी माना गया है.
रेवड़ी की दिक़्क़त यह है कि जो स्कीम आपने शुरू कर दी उसे बंद करना संभव नहीं है. चुनाव हारने का जोखिम कोई पार्टी नहीं उठा सकती है. ऐसे में सरकारों को वो खर्च काटने पड़ते हैं जो ज़रूरी है. वैसे भी सरकार का ध्यान लोगों की आमदनी बढ़ाने पर होना चाहिए, रेवड़ियाँ बाँटने पर नहीं .