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“The Garhwal Paintings- कवि मोलाराम मुसब्बर खैंची, यह तस्वीर रिझाने में”–मुक़ंदीलाल

-गोविंद प्रसाद बहुगुणा

चित्रकला के इतिहास में गढ़वाल का नाम दर्ज करवाने का श्रेय प्रसिद्ध कला समीक्षक और कला प्रेमी तथा राजनेता स्व० मुकन्दीलाल जी बैरिस्टर द्वारा लिखित पुस्तक The GarhwalPaintings को जाता है I मुकंदीलाल जी ने लगभग ५० वर्षों के अथक परिश्रम ,लगन और शोध कार्य के पश्चात्, उपेक्षा और गैर जानकारी की गहरी खोह में दबी हुई मोलाराम की अद्भुत कलाकृतियों को न केवल कला प्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत किया अपितु भारतीय चित्र कला के इतिहास में चित्र कला की गढ़वाली शैली को दर्ज करवाने का अभूतपूर्व ऐतिहासिक कार्य किया I

Garhwal Paintings नामक उनकी पुस्तक का प्रकाशन भारत सरकार द्वारा वर्ष १९६९ में किया गया था और इस कृति पर उन्हें भारत सरकार द्वारा पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था I पुस्तक की प्रस्तावना में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने लिखा था:

“Between the seventeen and nineteen centuries many painters of memorable talent flourished in the courts of Himalayan hills. They were masters of miniatures and were fond of Krishna legends. They were also called upon to do portraits. Their work is marked by the lyricism ,sophistication and an exquisite sense of colour line .
Sri Mukandilal is a well-known authority on Pahari Paintings. I am sure that students of art everywhere will welcome this album of the Garhwal School which he has so ably edited —
Indira Gandhi “

चित्रकार और कवि मोलाराम तोमर के पूर्वज दारा शिकोह के बेटे सुलेमान शिकोह के साथ उनके १७ सिपाह सालार कलाकारों को साथ लेकर १६५८ ई में श्रीनगर गढ़वाल पहुंचे। उन्होंने गढ़वाल नरेश पृथ्वीपत शाह से शरण मांगी क्योंकि दिल्ली की सल्तनत हथियाने के लिए औरंगजेब और दाराशिकोह के बीच संघर्ष चल रहा था जिसमें औरंगज़ेब का पलड़ा भारी पड़ रहा था I उन १७ सिपाह सालरों में मोलाराम के पूर्वज शामशाह और हरदास -पिता- पुत्र दोनों आये थे I गढ़वाल नरेश पृथ्वीपत शाह ने उन्हें अपने दरबार में मुसब्बर यानी तस्वीर बनाने वाले कलाकार के रूप में नियुक्त कर दिया और यहीं से गढ़वाल में चित्रकला की नींव पड़ी समझिये I मोलाराम अद्भुत प्रतिभाशाली चित्रकार थे लेकिन उन्होंने खुद को कभी “मुसब्बर” कहलाना पसन्द नहीं किया बल्कि कवि के रुप में ही अपनी पहचान बनाना पसन्द किया क्योंकि तत्कालीन समाज में चित्रकार की तुलना में कवि की इज्जत ज्यादा थी।

मोलाराम ने अपने पिता से मुग़ल शैली में पोर्ट्रेट बनाने सीखे लेकिन उन्होंने अपने चित्रों के साथ उसमें अपने कवित भी लिख दिए इस वजह से उनके चित्रों के साथ उनकी कविता भी खूब पसन्द की जाने लगी।

Barrister Mukundi Lal

इटली के महान चित्रकार लिओनार्दो दा विंची ( Leonardo da Vinci) की विश्व प्रसिद्ध कलाकृति सुंदरी “मोना लिसा” की तरह मोलराम की कलाकृति “मस्तानी” को भी अच्छी प्रसिद्धि मिली I उनकी एक बहुचर्चित पेंटिंग “मस्तानी ” उनकी कविता के कारण भी लोगों ने बहुत पसन्द की –

“मस्तानी अलमस्त शराबी बैठी अपने खाने में
सुने राग झुकि झुकि झांक रही सखि
प्याला दे दस्ताने में
पीवत भर भर ,फिर फिर मांगत है
तरातर दोनों में
कवि मोलाराम मुसब्बर खैंची
यह तस्वीर रिझाने में “..

१७९८ में मोलाराम कांगड़ा गए और वहां उन्होंने पहाड़ी शैली की चित्रकला सीखी, यहीं से पहाड़ी शैली का प्रभाव उनके चित्रों में स्पष्ट दिखने लगा और उनका मौलिक सृजन प्रारंभ हुआ। मोलाराम की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारियों ने उनकी तस्वीरें बेच- बेच कर अपनी जीविका चलाई I नतीजा यह हुआ की उनकी असंख्य कलाकृतियाँ विदेशों के राष्ट्रीय संग्रहालयों ,राजघरानों की बैठकों , सेठों के घरों में पहुँच गए I राजा रवि वर्मन की तरह मोलाराम ने भी धार्मिक प्रसंगों पर चित्र बनाये जैसे श्रीकृष्ण का गोवर्धन पर्वत धारण, कालिया नाग का दमन , मत्स्यावतार ,नरसिंहावतार , राधा- कृष्ण, कृष्ण- रुक्मिणी मिलन आदि प्रसिद्ध चित्र बनाये I तत्कालीन ब्रिटिश सिविल सर्वेंट आर्चर ने अपने प्रभाव सेमोलाराम के कई चित्र हासिल किये और अपने साथ इंग्लैंड ले गये I

मुकंदिलाल जी के कला गुरु आनंद कुमार स्वामी और अजित घोष ने मुकंदीलाल जी को बहुत प्रभावित किया उन्हीं के कारण वे कला के क्षेत्र में प्रवृत हुए I गढ़वाल की एक विभूति घनानंद जी खण्डूडी की आर्थिक सहायता से मुकंदलाल जी वकालत पढ़ने बिलायत गये और वहां से वैरिस्टर बनकर आये ।

आजादी से पहले मुकंदलाल जी टिहरी रियासत में जज रहे और आजादी के बाद वे उ०प्र०विधान सभा के सदस्य रहे ।उनकी मृत्यु ८० के दशक में कोटद्वार (गढ़वाल) में जहां उनका अपना मकान था …

विषय बड़ा दिलचस्प था लेकिन इस प्रसंग को यहीं पर विराम देता हूँ I इसी बिषय पर मेरी एक वार्ता ८० के दशक में आकाशवाणी नजीबाबाद द्वारा प्रसारित की गयी थी यह पोस्ट उसी का सार संक्षेप है।
GPB

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