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वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पर सरकार ने दिया विस्तृत स्पष्टीकरण

लोकसभा में 8 अगस्त 2024 को दो विधेयक वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक 2024 पेश किए गए, जिनका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज को सुव्यवस्थित करना और वक्फ संपत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है।

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 का उद्देश्य वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन करना है, ताकि वक्फ संपत्तियों के विनियमन और प्रबंधन में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों का समाधान किया जा सके। संशोधन विधेयक का उद्देश्य देश में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन में सुधार करना है। साथ ही पिछले अधिनियम की कमियों को दूर करना और अधिनियम का नाम बदलना, वक्फ की परिभाषाओं को अद्यतन करना, पंजीकरण प्रक्रिया में सुधार करना और वक्फ रिकॉर्ड के प्रबंधन में प्रौद्योगिकी की भूमिका बढ़ाने जैसे बदलाव करके वक्फ बोर्डों की दक्षता को बढ़ाना है।

मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक 2024 का प्राथमिक उद्देश्य मुसलमान वक्फ अधिनियम 1923 को निरस्त करना है, जो औपनिवेशिक युग का कानून है जो आधुनिक भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए पुराना और अपर्याप्त हो गया है। निरसन का उद्देश्य वक्फ अधिनियम 1995 के अंतर्गत वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन में एकरूपता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, इस प्रकार इस निरर्थक कानून के निरंतर अस्तित्व के कारण होने वाली विसंगतियों और अस्पष्टताओं को समाप्त करना है। ​

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया है।

निम्नलिखित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न वक्फ के इतिहासकानूनोंविनियमों और प्रबंधन की समझ प्रदान करते हैं।

प्रश्न 1 ‘वक्फ‘ का क्या अर्थ है?

वक्फ़ से तात्पर्य इस्लाम में आस्था रखने वाले व्यक्ति द्वारा किसी सम्पत्ति का मुस्लिम विधि द्वारा मान्य किसी धार्मिक, पवित्र या पूर्व प्रयोजन के लिए अल्लाह को स्थायी समर्पण है और संपत्ति का कोई अन्य उपयोग या बिक्री निषिद्ध है। वैध वक्फ के लिए वाकिफ अर्थात् वक्फ निर्मित करने वाले व्यक्ति है। चूंकि वक्फ संपत्तियां अल्लाह को दी जाती हैं, इसलिए भौतिक रूप से मूर्त इकाई की अनुपस्थिति में, वक्फ का प्रबंधन या प्रशासन करने के लिए वक्फ द्वारा या किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा एक ‘मुतवल्ली’ नियुक्त किया जाता है। एक बार वक्फ के रूप में नामित होने के बाद, स्वामित्व वक्फ (वाकिफ) करने वाले व्यक्ति से अल्लाह को हस्तांतरित हो जाता है, जिससे यह अपरिवर्तनीय हो जाता है।

प्रश्न 2 ‘वक्फ‘ की अवधारणा की उत्पत्ति क्या है?

भारत में वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दिनों से जुड़ा है, जब सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम ग़ौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गाँव समर्पित किए और इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को सौंप दिया। जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और बाद में इस्लामी राजवंश भारत में फले-फूले, वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती गई।

19वीं शताब्दी के अंत में भारत में वक्फ को समाप्त करने का मामला तब उठा जब लंदन की प्रिवी काउंसिल में वक्फ संपत्ति पर विवाद छिड़ा, जबकि भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था। मामले की सुनवाई करने वाले 4 न्यायाधीशों ने वक्फ को “सबसे खराब और सबसे घातक किस्म की शाश्वतता” के रूप में वर्णित किया । वक्फ को अमान्य घोषित कर दिया। बाद में भारत में इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया गया ।  1913 का मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम को लागू कर इन संपत्तियों को कानून द्वारा बचा लिया गया। तब से वक्फ पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

प्रश्न 3. वक्फ अधिनियम के माध्यम से भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में प्रमुख विधायी परिवर्तन और विकास क्या हैं?

वक्फ अधिनियम 1954 – स्वतंत्रता के बाद से वक्फ को और मजबूत किया गया है। 1954 के पारित वक्फ अधिनियम ने वक्फ के केंद्रीकरण की दिशा में एक मार्ग तैयार किया। 1964 में भारत सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम 1954 के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय, सेंट्रल वक्फ काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना की गई थी। यह केंद्रीय निकाय विभिन्न राज्य वक्फ बोर्डों के अंतर्गत काम की देखरेख करता है, जिन्हें वक्फ अधिनियम 1954 की धारा 9 (1) के प्रावधानों के अंतर्गत स्थापित किया गया था।

वक्फ अधिनियम, 1995 – 1995 में वक्फ अधिनियम को मुसलमानों के लिए और अधिक अनुकूल बनाया गया, जिसने इसे एक प्रमुख कानून बना दिया। वक्फ अधिनियम 1995 को भारत में वक्फ संपत्तियों (धार्मिक बंदोबस्ती) के प्रशासन को नियंत्रित करने के लिए अधिनियमित किया गया था। यह वक्फ परिषद, राज्य वक्फ बोर्ड और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की शक्तियों और कार्यों तथा मुतवल्ली के कर्तव्यों का भी प्रावधान करता है। यह अधिनियम वक्फ न्यायाधिकरण की शक्तियों और प्रतिबंधों का भी वर्णन करता है जो अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत सिविल न्यायालय के स्थान पर कार्य करता है।

वक्फ न्यायाधिकरण को सिविल न्यायालय माना जाता है और उसे सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत सिविल न्यायालय द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी शक्तियों और कार्यों का प्रयोग करना आवश्यक है। न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम होगा और पक्षों पर बाध्यकारी होगा। कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही किसी भी सिविल न्यायालय के अधीन नहीं होगी। इस प्रकार वक्फ न्यायाधिकरण के निर्णय किसी भी सिविल न्यायालय से ऊपर होंगे।

2013 में संशोधन – वक्फ प्रबंधन को अधिक कुशल और पारदर्शी बनाने के लिए वर्ष 2013 में अधिनियम के कुछ प्रावधानों में संशोधन किया गया था। हालांकि अधिनियम के कार्यान्वयन के दौरान यह महसूस किया गया कि वक्फ के प्रशासन को बेहतर बनाने में अधिनियम प्रभावी साबित नहीं हुआ।

वक्फ निरसन विधेयक 2022 – वक्फ और इसी तरह के इरादे से स्थापित अन्य मान्यता प्राप्त धार्मिक संस्थाओं जैसे निकायों के लिए अधिक न्यायसंगत व्यवस्था स्थापित करने के  उद्देश्य से 8 दिसंबर 2023 को संशोधित वक्फ अधिनियम 1995 को राज्यसभा में पेश किया गया।

प्रश्न क्या वक्फ संपत्तियां निरस्त की जा सकती हैं?

नहीं, चूंकि वक्फ के मामले में संपत्ति का स्वामित्व वक्फ से अल्लाह को हस्तांतरित किया जाता है और संपत्ति को अल्लाह से वापस नहीं लिया जा सकता है। एक बार जब कोई संपत्ति वक्फ हो जाती है, तो वह हमेशा वक्फ ही रहती है, जिससे वह अपरिवर्तनीय हो जाती है। एक बार जब कोई संपत्ति वक्फ घोषित हो जाती है, तो वह हमेशा के लिए वैसी ही रहती है। उदाहरण के लिए बेंगलुरु ईदगाह मैदान है, जिसे 1850 के दशक से वक्फ संपत्ति के रूप में दावा किया जाता है। इसी तरह सूरत नगर निगम भवन जिसे मुगल काल में हज के दौरान सराय के रूप में ऐतिहासिक उपयोग के कारण दावा किया जाता है।

प्रश्न क्या सभी इस्लामिक देशों में वक्फ संपत्तियां हैं?

नहीं, सभी इस्लामिक देशों में वक्फ संपत्तियां नहीं हैं। तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक जैसे इस्लामिक देशों में वक्फ नहीं हैं। हालांकि भारत में वक्फ बोर्ड न केवल सबसे बड़े शहरी भूस्वामी हैं बल्कि उनके पास कानूनी रूप से उनकी सुरक्षा के लिए एक अधिनियम भी है।

प्रश्न वक्फ बोर्ड कितनी संपत्तियों को नियंत्रित करता है?

वर्तमान में वक्फ बोर्ड देश भर में 9 दशमलव 4 लाख एकड़ में फैली 8 लाख 70 हज़ार संपत्तियों को नियंत्रित करता है, जिसका अनुमानित मूल्य 1 लाख बीस हज़ार करोड़ रुपये है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी वक्फ संपत्ति है। इसके अलावा सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद वक्फ बोर्ड भारत में सबसे बड़ा भूस्वामी है।

प्रश्न वक्फ बोर्ड के अंतर्गत कितनी वक्फ संपत्तियां पंजीकृत हैं?

वक्फ बोर्ड के अंतर्गत 3,56,051 वक्फ संपत्तियां पंजीकृत हैं।

 

प्रश्न वक्फ बोर्ड के अंतर्गत कितनी अचल संपत्तियां पंजीकृत हैं?

वक्फ बोर्ड के अंतर्गत 8,72,328 अचल संपत्तियां पंजीकृत हैं।

 

 

प्रश्न वक्फ बोर्ड के अंतर्गत कितनी चल संपत्तियां पंजीकृत हैं?

वक्फ बोर्ड के अंतर्गत 16,713 चल संपत्तियां पंजीकृत हैं।

 

प्रश्न 10 – वक्फ बोर्ड के पास कितने डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड हैं?

वक्फ बोर्ड के पास अब तक 3,30,000 डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड हैं।

प्रश्न 11 वक्फ बोर्ड से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

हितधारकों द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दे हैंवक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के गठन में सीमित विविधतामुतवल्लियों द्वारा शक्ति का दुरुपयोगमुतवल्लियों द्वारा संपत्तियों का उचित लेखा-जोखा न रखनास्थानीय राजस्व अधिकारियों के साथ प्रभावी समन्वय की कमीअतिक्रमण हटाने के मुद्देवक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और स्वामित्व की घोषणावक्फ बोर्ड को संपत्तियों पर दावा करने के लिए व्यापक शक्ति देनाजिसके परिणामस्वरूप विवाद और मुकदमेबाजी होती हैसीमा अधिनियम लागू नहीं होने के परिणामस्वरूप समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा होता हैवक्फ संपत्तियों से कम और नगण्य आय आदि। वक्फ बोर्ड से संबंधित मुद्दे इस प्रकार हैं:

वक्फ संपत्तियों की अपरिवर्तनीयता: “एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ” के सिद्धांत ने विभिन्न विवादों और दावों को जन्म दिया है। जिनमें से कुछ जैसे बेट द्वारका में दो द्वीपों पर दावा अदालतों द्वारा हैरान करने वाला माना गया है।

मुकदमेबाजी और कुप्रबंधन: वक्फ अधिनियम 1995 और इसके 2013 के संशोधन की प्रभावहीनता के लिए आलोचना की गई है, जिसके कारण अतिक्रमण, कुप्रबंधन, स्वामित्व विवाद और पंजीकरण तथा सर्वेक्षण में देरी जैसी समस्याएं सामने आई हैं। वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व और कब्जे की समस्या, पंजीकरण की शिकायतें, न्यायाधिकरण की कार्यप्रणाली और संबंधित बड़े पैमाने पर मुकदमेबाजी के बारे में भी मंत्रालय को कई मुद्दों से अवगत कराया गया है।

न्यायिक निगरानी न होना: न्यायाधिकरण के निर्णयों पर कोई न्यायिक निगरानी नहीं है, जिससे वक्फ प्रबंधन और भी जटिल हो जाता है। उच्च न्यायिक निकाय में अपील करने की संभावना के बिना, न्यायाधिकरण द्वारा लिए गए निर्णय वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही को कमजोर कर सकते हैं।

असंतोषजनक सर्वेक्षण कार्य: सर्वेक्षण आयुक्त द्वारा वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण का कार्य असंतोषजनक पाया गया। गुजरात और उत्तराखंड राज्य में अभी भी वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण शुरू होना बाकी है। उत्तर प्रदेश में सर्वेक्षण का आदेश 2014 में दिया गया था और इसे अभी तक शुरू नहीं किया गया है। सर्वेक्षण पूरा न होने का मुख्य मुद्दा सर्वेक्षण आयुक्तों की सर्वेक्षण कार्य में विशेषज्ञता का अभाव है। इसके अलावा वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण के काम को सुचारू रूप से करने के लिए राजस्व विभाग के साथ सर्वेक्षण रिपोर्टों के समन्वय का मुद्दा भी है।

प्रावधानों का दुरुपयोग: यह देखा गया कि राज्य वक्फ बोर्डों ने अधिनियम के कुछ प्रावधानों का दुरुपयोग भी किया है, जिससे समुदायों के बीच वैमनस्य और असंतोष पैदा हुआ है। संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में अधिग्रहित करने और घोषित करने के लिए वक्फ अधिनियम की धारा 40 का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया गया। इससे न केवल बड़ी संख्या में मुकदमेबाजी हुई है, बल्कि समुदायों के बीच वैमनस्य भी पैदा हुआ है।

संवैधानिक वैधता: वक्फ अधिनियम देश के केवल एक धर्म की धार्मिक संपत्तियों के लिए एक विशेष अधिनियम है, जबकि किसी अन्य धर्म के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है। दरअसल इसी सवाल को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने वक्फ की संवैधानिक वैधता के संबंध में इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।

प्रश्न-12 मंत्रालय को वक्फ से संबंधित कितनी शिकायतें मिली हैं?

मंत्रालय को मुसलमानों और गैर-मुसलमानों से वक्फ भूमि पर अतिक्रमण और वक्फ संपत्तियों के कुप्रबंधन जैसे मुद्दों पर बड़ी संख्या में शिकायतें और अभिवेदन प्राप्त हुए हैं। मंत्रालय ने प्राप्त शिकायतों का विश्लेषण किया है और पाया है कि अप्रैल 2023 से प्राप्त 148 शिकायतें ज्यादातर अतिक्रमण, वक्फ भूमि की अवैध बिक्री, सर्वेक्षण और पंजीकरण में देरी और वक्फ बोर्डों और मुतवल्लियों के खिलाफ शिकायतों से संबंधित हैं।

मंत्रालय ने अप्रैल 2022 से मार्च 2023 तक केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली – सीपीजीआरएएमएस पर प्राप्त शिकायतों का भी विश्लेषण किया है और पाया है कि 566 शिकायतों में से 194 शिकायतें अवैध रूप से वक्फ भूमि के अतिक्रमण और हस्तांतरण से संबंधित थीं और 93 शिकायतें वक्फ बोर्ड और मुतवल्लियों के अधिकारियों के खिलाफ थीं।

इसके अलावा पार्टी लाइन से अलग सांसदों ने वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण में देरी, वक्फ बोर्ड द्वारा बाजार मूल्य से कम किराया लेने, वक्फ भूमि पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण, विधवाओं के उत्तराधिकार अधिकार, सर्वेक्षण आयुक्त द्वारा सर्वेक्षण पूरा न करने, वक्फ संपत्ति रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण की धीमी प्रगति आदि के मुद्दे उठाए।

प्रश्न 13 वक्फ प्रशासन के पास कितने मामले लंबित हैं?

मंत्रालय ने न्यायाधिकरणों के कामकाज का विश्लेषण किया है और पाया है कि न्यायाधिकरणों में 40,951 मामले लंबित हैं, जिनमें से 9,942 मामले मुस्लिम समुदाय द्वारा वक्फ का प्रबंधन करने वाली संस्थाओं के खिलाफ दायर किए गए हैं। इसके अलावा मामलों के निपटान में अत्यधिक देरी होती है और न्यायाधिकरण के निर्णयों पर न्यायिक निगरानी का कोई प्रावधान नहीं है।

प्रश्न 14 वर्त्तमान व्यवस्था में किस प्रकार के मुद्दे और शिकायतें हैं?

वक्फ बोर्ड की अस्पष्टता और व्यापक शक्ति के कारण आम लोगों को होने वाली कठिनाई को निम्नलिखित मामलों से देखा जा सकता है:

तमिलनाडु तिरुचेंथुरई गांव : तमिलनाडु के किसान राजगोपाल ऋण चुकाने के लिए अपनी कृषि भूमि बेचने में असमर्थ थे, क्योंकि वक्फ बोर्ड ने उनके पूरे गांव, तिरुचेंथुरई को अपनी संपत्ति बता दिया था। अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) की इस आवश्यकता ने वित्तीय और भावनात्मक संकट पैदा किया। इस गांव को ऐतिहासिक रूप से 1956 में नवाब अनवरदीन खान ने वक्फ के रूप में दान किया था। अवैध बिक्री या अतिक्रमण को रोकने के लिए, वक्फ बोर्ड ने पंजीकरण विभाग से वक्फ संपत्तियों को ‘शून्य मूल्य’ देने का अनुरोध किया, वर्तमान में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने संपत्ति लेन-देन की अनुमति देने के लिए अनुरोध पर रोक लगा दी है। इस स्थिति ने राजनीतिक और सांप्रदायिक तनाव को भी बढ़ावा दिया है।

बेंगलुरु ईदगाह मैदान मामला: बेंगलुरु ईदगाह मैदान मामले में, भले ही सरकार के अनुसार किसी भी मुस्लिम संगठन को कोई टाइटल ट्रांसफर नहीं हुआ था, लेकिन वक्फ का दावा है कि यह 1850 के दशक से वक्फ संपत्ति थी, इसका मतलब है कि यह अब हमेशा के लिए वक्फ संपत्ति है।

सूरत नगर निगम मामला : हाल ही में गुजरात वक्फ बोर्ड ने सूरत नगर निगम की इमारत पर दावा किया था जो अब वक्फ की संपत्ति है क्योंकि दस्तावेजों को अपडेट नहीं किया गया था। वक्फ के अनुसार मुगल काल के दौरान सूरत नगर निगम की इमारत एक सराय थी और हज यात्राओं के दौरान इसका इस्तेमाल किया जाता था। ब्रिटिश शासन के दौरान यह संपत्ति ब्रिटिश साम्राज्य की थी। हालांकि जब देश को 1947 में स्वतंत्रता मिली, तो संपत्तियां भारत सरकार को हस्तांतरित कर दी गईं। हालांकि चूंकि दस्तावेजों को अपडेट नहीं किया गया था, इसलिए एसएमसी भवन तब वक्फ संपत्ति बन गया और जैसा कि वक्फ बोर्ड कहता है एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ।

बेट द्वारका में द्वीप: दिव्या भास्कर ने बताया था कि वक्फ बोर्ड ने गुजरात उच्च न्यायालय में एक आवेदन लिखा था, जिसमें देवभूमि द्वारका में बेट द्वारका में दो द्वीपों के स्वामित्व पर दावा किया गया था। इस पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने हैरानी जताते हुए आवेदन पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और बोर्ड से अपनी याचिका में संशोधन करने को कहा तथा आश्चर्य व्यक्त किया कि वक्फ कृष्णनगरी में भूमि पर दावा कैसे कर सकता है।

शिव शक्ति सोसाइटी सूरत: सूरत में शिव शक्ति सोसाइटी में एक प्लॉट मालिक ने गुजरात वक्फ बोर्ड के साथ अपने प्लॉट को पंजीकृत किया, जिससे यह मुसलमानों के लिए एक पवित्र स्थान बन गया । लोगों ने वहां नमाज अता  करना शुरू कर दिया। इसका मतलब यह था कि किसी भी हाउसिंग सोसाइटी में एक अपार्टमेंट किसी भी दिन सोसाइटी के अन्य सदस्यों की किसी भी जानकारी के बिना मस्जिद में बदल सकता है, यदि उस अपार्टमेंट का मालिक इसे वक्फ के रूप में देने का फैसला करता है।

प्रश्न 15 संशोधन विधेयक प्रस्तुत करने से पहले मंत्रालय द्वारा क्या कदम उठाए गए?

मंत्रालय ने वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधानों की समीक्षा की प्रक्रिया शुरू की है तथा हितधारकों के साथ परामर्श किया है। पिछले वर्ष दो बैठकें आयोजित की गई थीं एक 24.07.23 को लखनऊ में तथा दूसरी 20.07.23 को नई दिल्ली में जिसमें निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा की गई, जिसमें प्रभावित हितधारकों की समस्याओं के समाधान के लिए अधिनियम में उपयुक्त संशोधन करने के लिए आम सहमति बनी।

  • सीडब्ल्यूसी और एसडब्ल्यूबी संरचना का आधार बढ़ाना
  • मुतवल्लियों की भूमिका और जिम्मेदारियाँ
  • न्यायाधिकरणों का पुनर्गठन
  • पंजीकरण की प्रक्रिया में सुधार
  • स्वामित्व की घोषणा
  • वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण
  • वक्फ संपत्तियों का म्यूटेशन
  • मुतवल्लियों द्वारा खाते दाखिल करना
  • वार्षिक खाते दाखिल करने में सुधार
  • निष्कासित संपत्तियों और सीमा अधिनियम से संबंधित प्रावधानों की समीक्षा
  • वक्फ संपत्तियों का वैज्ञानिक प्रबंधन

इसके अलावा मंत्रालय ने सऊदी अरब, मिस्र, कुवैत, ओमान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की जैसे देशों में चल रहे वक्फ प्रबंधन पर अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं का भी विश्लेषण किया है और पाया है कि वक्फ संपत्तियों को आम तौर पर सरकार द्वारा स्थापित कानूनों और संस्थानों द्वारा विनियमित किया जाता है।

प्रश्न 16 मंत्रालय ने किन हितधारकों से परामर्श किया है?

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने विभिन्न हितधारकों से परामर्श किया, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ शामिल हैं, सच्चर समिति की रिपोर्ट, संयुक्त संसदीय समितियों (जेपीसी) की टिप्पणियां, जन प्रतिनिधियों, मीडिया और आम जनता द्वारा कुप्रबंधन, वक्फ अधिनियम की शक्तियों के दुरुपयोग और वक्फ संस्थाओं द्वारा वक्फ संपत्तियों के कम उपयोग के बारे में उठाई गई चिंता। मंत्रालय ने राज्य वक्फ बोर्डों के साथ भी परामर्श किया।

प्रश्न 17 सच्चर समिति की सिफारिशें क्या हैं?

सच्चर समिति ने पाया कि यदि इन संपत्तियों का कुशल और विपणन योग्य उपयोग किया जाए, तो वे कम से कम 10 % का न्यूनतम राजस्व पैदा कर सकती हैं जो प्रति वर्ष लगभग 1,20,00 करोड़ रुपये है। सच्चर समिति ने 2006 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और वक्फ के प्रबंधन में सुधार के लिए विभिन्न उपायों की सिफारिश की। इसमें निम्नलिखित बातों पर जोर दिया गया:

1. मुतवल्लियों के नियमन और कामकाज की आवश्यकता।

2. रिकॉर्ड का कुशल प्रबंधन।

3. वक्फ के प्रबंधन में गैर-मुस्लिम तकनीकी विशेषज्ञता को शामिल करना।

4. वक्फ बोर्डों को प्रशासनिक रूप से मजबूत करने के लिए संगठनात्मक सुधार, केंद्रीय वक्फ बोर्ड (सीडब्ल्यूसी) और प्रत्येक राज्य में ।

5. वक्फ बोर्ड (एसडब्ल्यूबी) में दो महिला सदस्यों को शामिल करना।

6. सीडब्ल्यूसी और एसडब्ल्यूबी में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी की नियुक्ति।

7. वक्फ को वित्तीय लेखा परीक्षा की योजना के अंतर्गत लाना।

 

प्रश्न 18 संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशें क्या हैं?

4 मार्च 2008 को राज्यसभा में प्रस्तुत वक्फ पर संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिशें की गई थीं:

1. वक्फ बोर्डों की संरचना में बदलाव।

2. एसडब्ल्यूबी के लिए सीईओ के रूप में एक वरिष्ठ स्तर का अधिकारी प्रदान करना।

3. वक्फ संपत्तियों के अनधिकृत हस्तांतरण के लिए कड़ी कार्रवाई।

4. को कड़ी सजा, यदि वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहने पर मुतवल्लियों के खिलाफ कड़ी कारवाई।

5. इसने कुछ मामलों को रिट क्षेत्राधिकार के तहत माननीय उच्च न्यायालय में ले जाने की भी सिफारिश की है।

6. वक्फ बोर्डों का कम्प्यूटरीकरण और सीडब्ल्यूसी में शिया समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व।

 

प्रश्न 19 वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 की मुख्य विशेषताएं:

  1. वक्फ अधिनियम 1995 का नाम बदलना: वक्फ बोर्डों और संपत्तियों के प्रबंधन और दक्षता में सुधार लाने के अपने व्यापक उद्देश्य को दर्शाने के लिए अधिनियम का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम 1995 कर दिया गया है, जिसमें प्रभावी प्रशासन के साथ सशक्तीकरण और विकास पर जोर दिया गया है।
  2. वक्फ का गठन: अधिनियम वक्फ के गठन की अनुमति देता है: (i) घोषणा, (ii) दीर्घकालिक उपयोग (उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ) के आधार पर मान्यता या (iii) उत्तराधिकार को समाप्त होने पर बंदोबस्ती (वक्फ-अलल-औलाद)।
  • विधेयक में कहा गया है कि केवल कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ घोषित कर सकता है। यह स्पष्ट करता है कि घोषित की जा रही संपत्ति का स्वामित्व उस व्यक्ति के पास होना चाहिए।
  • यह उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को हटाता है, जहां संपत्तियों को केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए लंबे समय तक उपयोग के आधार पर वक्फ माना जा सकता है।
  • वक्फ-अलल-औलाद के परिणामस्वरूप महिला उत्तराधिकारियों सहित दानकर्ता के उत्तराधिकारी को विरासत के अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

3. वक्फ के रूप में सरकारी संपत्ति: विधेयक में कहा गया है कि वक्फ के रूप में पहचानी गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ नहीं रह जाएगी। अनिश्चितता के मामले में क्षेत्र का कलेक्टर स्वामित्व निर्धारित करेगा और राज्य सरकार को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। यदि इसे सरकारी संपत्ति माना जाता है, तो वह राजस्व रिकॉर्ड को अपडेट करेगा।

4. यह निर्धारित करने की शक्ति कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं: अधिनियम वक्फ बोर्ड को यह जांच करने और निर्धारित करने का अधिकार देता है कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं। विधेयक इस प्रावधान को हटाया गया है।

5. वक्फ का सर्वेक्षण: अधिनियम वक्फ का सर्वेक्षण करने के लिए सर्वेक्षण आयुक्त और अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान करता है। इसके बजाय विधेयक कलेक्टरों को सर्वेक्षण करने का अधिकार देता है। लंबित सर्वेक्षण राज्य राजस्व कानूनों के अनुसार किए जाएंगे।

6. केंद्रीय वक्फ परिषद: अधिनियम केंद्रीय वक्फ परिषद का गठन करता है जो केंद्र और राज्य सरकारों तथा वक्फ बोर्डों को सलाह देता है। वक्फ के प्रभारी केंद्रीय मंत्री परिषद के पदेन अध्यक्ष होते हैं। अधिनियम के अनुसार परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए तथा उनमें कम से कम दो महिलाएँ होनी चाहिए। इसके बजाय विधेयक में प्रावधान है कि दो सदस्य गैर-मुस्लिम होने चाहिए। अधिनियम के अनुसार परिषद में नियुक्त सांसद, पूर्व न्यायाधीश तथा प्रतिष्ठित व्यक्ति का मुस्लिम होना आवश्यक नहीं है।

निम्नलिखित सदस्य मुस्लिम होने चाहिए:

  1. मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि,
  2. इस्लामी कानून के विद्वान तथा
  3. वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष।

मुस्लिम सदस्यों में से दो महिलाएँ होनी चाहिए।

7. वक्फ बोर्ड: अधिनियम में मुस्लिम निर्वाचक मंडल से प्रत्येक राज्य से बोर्ड में अधिकतम दो सदस्यों के चुनाव का प्रावधान है:

(i) सांसद, (ii) विधायक तथा विधान पार्षद, तथा (iii) बार काउंसिल के सदस्य। इसके बजाय विधेयक राज्य सरकार को बोर्ड में उपरोक्त प्रत्येक पृष्ठभूमि से एक व्यक्ति को नामित करने का अधिकार देता है। उन्हें मुस्लिम होने की आवश्यकता नहीं है। इसमें कहा गया है कि बोर्ड में निम्नलिखित लोग होने चाहिए: (i) दो गैर-मुस्लिम सदस्य। और (ii) शिया, सुन्नी और पिछड़े मुस्लिम वर्गों से कम से कम एक सदस्य। इसमें बोहरा और आगाखानी समुदायों से भी एक-एक सदस्य होना चाहिए, यदि उनके पास राज्य में वक्फ है। अधिनियम में प्रावधान है कि कम से कम दो सदस्य महिलाएँ होनी चाहिए। विधेयक में कहा गया है कि दो मुस्लिम सदस्य महिलाएँ होनी चाहिए।

8. न्यायाधिकरणों की संरचना: अधिनियम में राज्यों को वक्फ पर विवादों को संबोधित करने के लिए न्यायाधिकरणों का गठन करने की आवश्यकता है। इन न्यायाधिकरणों के अध्यक्ष को प्रथम श्रेणी, जिला, सत्र या सिविल न्यायाधीश के समकक्ष रैंक का न्यायाधीश होना चाहिए। अन्य सदस्यों में शामिल हैं: (i) अपर जिला मजिस्ट्रेट के बराबर का एक राज्य अधिकारी, और (ii) मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र का जानकार व्यक्ति। विधेयक बाद वाले को न्यायाधिकरण से हटा देता है। इसके बजाय यह निम्नलिखित को सदस्यों के रूप में रखता है: (i) एक वर्तमान या पूर्व जिला न्यायालय के न्यायाधीश को इसका अध्यक्ष, और (ii) राज्य सरकार के संयुक्त सचिव रैंक का एक वर्तमान या पूर्व अधिकारी।

9. न्यायाधिकरण के आदेशों पर अपील: अधिनियम के तहत न्यायाधिकरण के निर्णय अंतिम होते हैं तथा न्यायालयों में इसके निर्णयों के विरुद्ध अपील निषिद्ध है। बोर्ड अथवा पीड़ित पक्ष के आवेदन पर उच्च न्यायालय अपने विवेक से मामलों पर विचार कर सकता है। विधेयक न्यायाधिकरण के निर्णयों को अंतिम मानने वाले प्रावधानों को छोड़ देता है। न्यायाधिकरण के आदेशों के विरुद्ध 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

10. केंद्र सरकार की शक्तियाँ: विधेयक केंद्र सरकार को निम्नलिखित के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है: (i) पंजीकरण, (ii) वक्फ के खातों का प्रकाशन तथा (iii) वक्फ बोर्डों की कार्यवाही का प्रकाशन। अधिनियम के तहत राज्य सरकार किसी भी समय वक्फ के खातों का ऑडिट करवा सकती है। विधेयक केंद्र सरकार को सीएजी अथवा किसी नामित अधिकारी द्वारा इनका ऑडिट करवाने का अधिकार देता है।

11. बोहरा और आगाखानी के लिए वक्फ बोर्ड: अधिनियम सुन्नी और शिया संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड स्थापित करने की अनुमति देता है, यदि शिया वक्फ राज्य में सभी वक्फ संपत्तियों अथवा वक्फ आय का 15 प्रतिशत से अधिक हिस्सा बनाते हैं। विधेयक में आगाखानी और बोहरा संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड बनाने की भी अनुमति दी गई है।

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