सरकारी खजानों को सरकार ही लुटवा रही है उत्तराखण्ड में

Spread the love

  –जयसिंह रावत

कभी सरकारी खजानों को बाहरी लुटेरों और डकैतों से खतरा होता था और उन लुटेरों से खजानों को बचाने के लिये सरकार हर संभव प्रयास करती थी। लेकिन उत्तराखण्ड में सरकारी खजानों को उनके संचालकों से ही खतरा पैदा हो गया है। प्रदेश के राजकोश को पहले ही भ्रष्टाचारी और राजनीतिक दीमक चाटे जा रहे थे। लेकिन अब राज्य की टेªजरियों में एक के बाद एक करोड़ों के गबन के मामले सामने आने के बाद लगता है कि उत्तराखण्ड सरकार के खजाने मजबूत तालों और अभेद्य सुरक्षा में भी सुरक्षित नहीं रह गये हैं और राजनीतिक शासक सरकारी खजानों को बचाने के बजाय वोटों के लिये स्वयं ही लुटवा रहे हैं।

सरकार के अंाख मूंदने से हुये कोषागारों में गबन

टिहरी की सरकारी टेªजरी में गबन के बाद नरेन्द्रनगर और उत्तरकाशी की टेªजरियों में गबन के मामले प्रकाश में आने के साथ ही उत्तराखण्ड के राजकोश की देखभाल करने वालों की नींद टूटी तो फिर पौड़ी और श्रीनगर की ट्रेजरियों में भी गबनकारियों की संेधमारी का पता चल पाया। थोड़ी सी छानबीन हुयी तो कुमाऊं मण्डल में नैनीताल की ट्रेजरी में भी गबन का मामला प्रकाश में आ गया। अगर प्रदेश की सभी टेªजरियों की ईमान्दारी से छानबीन होती तो इस महालूट का खुलासा हो पाता।ये सभी गबन के मामले वृद्धास्था पेंशन के मामले में प्रकाश में आये हैं। इनके अलावा विधवा पेंशन और दिव्यांग पेंशन में भी भपारी घपलों की बू उत्तराखण्ड की विदा हो रही सरकार नहीं सूंघ पायी। इससे पहले छात्रवृत्ति में भी इसी तरह का फर्जीवाड़ा सामने आ चुका है जिसमें राजनीतिक नेताओं के परिजन भी शामिल पाये गये। उस मामले में सत्ताधरी दल के नेताओं के परिजनों के खिलाफ भी गबन के मामले दर्ज हुये में सरकार ने उन्हें अभयदान दे दिया।

सबसे पहले टिहरी की ट्रेजरी पर सेंधमारी का हुआ खुलासा

राज्य में सबसे पहले टिहरी की टेªजरी में घोटाला सामने आया जिसमें 2 करोड़ 21 लाख 23 हजार 150 रुपये का गबन पाया गया। जांच के दौरान सोम प्रकाश पुत्र पदम लाल, सागर पुत्र राजकुमार, दीपक पुत्र सूरज सैनी के नाम सबसे पहले प्रकाश में आए। आरोप है कि कोषागार के कर्मचारियों ने इन तीनों खाताधारकों के खाते में रुपये डालकर गबन किया। इसके बाद वरिष्ठ कोषाधिकारी नमिता सिंह ने थाना नरेंद्रनगर में तहरीर दी कि नरेंद्रनगर कोषागार से 2 करोड़ 48 लाख 46 हजार 829 रुपये का गबन किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि कोषाधिकारी जगदीश चंद्र, लेखाकार विनय कुमार चौधरी और पीआरडी सोहबत सिंह पडियार बीते कुछ वर्षों से कोषागार के ई-पोर्टल पर लॉगिन कर पेंशनर्स के डाटा में छेड़छाड़ कर पेंशनर्स के बैंक खातों की जगह स्वयं और अपने परिचितों के बैंक खातों में पेंशन एवं एरियर का भुगतान कर रहे हैं। टिहरी और नरेंद्र नगर के बाद सीमांत जिला उत्तरकाशी के कोषागार में एक तत्कालीन सहायक कोषाधिकारी सहित तीन कर्मचारियों पर करीब 42 लाख रुपये का गबन का आरोप लगा। टिहरी और उत्तरकाशी का मामला गरमा ही रहा था कि तब तक नैनीताल जिले के उपकोषागार कुझ्याकुटोली के लेखाकार संजय पर 13 लाख के गबन का मामला दर्ज हो गया। सरकारी कारिन्दों द्वारा राजकोष की इस लूट के बाद 8 जनवरी को पौड़ी के कोषागार में 15 लाख के गबन की तहरीर नितिन रावत के खिलाफ दर्ज हो गयी। पौड़ी के बाद पुलिस ने श्रीनगर गढ़वाल के उप कोषागार में भी 20 लाख के गबन का मामला दर्ज किया।

चुनावी सौगातों और भ्रष्टाचारी के गबन से लुटता रहा राजकोष

उत्तराखण्ड में 13 जिला कोषागार, 5 उच्चीकृत कोषागार और 66 उपकोषागार हैं। इनमें कहां कितना गबन हुआ इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। चूंकि सरकार का ध्यान इन दिनों चुनाव जीतने के उपाय तलाशने में लगा रहा इसलिये इस महाघोटाले पर सरकार की ओर से ही पर्दा पड़ गया।

8 लाख से अधिक हैं सामाजिक पेंशन पेंशन खाते उत्तराखण्ड में

वर्तमान में उत्तराखण्ड के सभी 13 जिलों में 60 साल से अधिक उम्र के वृद्धावस्था पेंशन पाने वाले कुल 4,66,708 लाभार्थी हैं ? जिनको केन्द्र की ओर से प्रति माह 200 रुपये तथा राज्य की ओर से 800 रुपये के हिसाब से कुल 329.66 करोड़ रुपये पेंशनदी जा रही है। वृद्धावस्था के अलावा राज्य में 1,85,236 विधवा पेंशनर हैं, जिन्हें 129.71 करोड़ तथा 75,342 दिव्यांग पेंशनरों को 22.15 करोड़ रुपये पेंशन के रूप में मिलते हैं। इन पेंशन लाभार्थियों को हर साल जीवित होने का प्रमाणपत्र जमा करना होता है।

ऐसे करते थे गबन

पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि वे ज्यादातर उन पेंशन फाइलों को छांटते थे, जिन पेंशनर्स की मृत्यु हो चुकी है। फिर ई-पोर्टल में उनके जीआरडी नंबर पर उन्हें जीवित दर्शा कर उनके खातों और नाम पर अपने परिचितों का खाता नंबर एवं नाम आदि डाल देते थे। जिसके बाद पेंशनर्स का रुपया उनके परिचितों के खाते में आ जाता था। इसके बाद वो अपने परिचितों को कमीशन के रूप में कुछ रुपये देकर बाकी सारे रुपये वापस ले लेते थे। इस प्रकार धोखाधड़ी के कार्य को अंजाम देते थे।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *