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GST गुड एंड सिंपल नहीं रहा….

-Milind Khandekar-

GST 1 जुलाई 2017 को लाँच हुआ था उस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में कहा था कि क़ानून भले इसे गुड्स एंड सर्विस टैक्स कहे हक़ीक़त में यह गुड एंड सिंपल टैक्स है. बात सही थी उस समय सामान और सर्विस पर 17 अलग अलग तरह के टैक्स लगते थे. इसके बदले सिर्फ़ एक टैक्स GST लाया गया था. पिछले हफ़्ते भर में पॉप कॉर्न और पुरानी कारों पर इतने मीम्स बने हैं कि GST की सरलता के बजाय जटिलता फिर चर्चा में है. हिसाब किताब में चर्चा GST गुड एंड सिंपल टैक्स क्यों नहीं रह गया है?

GST क्या है?

आप कोई सामान ख़रीदें जैसे टीवी या सर्विस जैसे सेलून में बाल कटवाए दोनों पर एक ही टैक्स GST लगता है. केंद्र सरकार यह टैक्स जमा करती है, फिर राज्यों को उनका हिस्सा बाँट देती है.2017 में GST लागू होने से पहले केंद्र और राज्य सरकारें अलग अलग टैक्स वसूली करते थे. केंद्र सरकार सामान बनाने वाली फ़ैक्ट्री पर एक्साइज ड्यूटी लगाती थी और रेस्टोरेन्ट में खाना खाने पर, फ़ोन के बिल जैसी सर्विस देने वालों पर सर्विस टैक्स अलग से.फिर हर राज्य उस सामान को बेचने वाले पर सेल्स टैक्स लगाता था. नगर पालिका अपने शहर में सामान की एंट्री होने पर चुंगी यानी ऑक्ट्रॉय वसूलती थीं. इस कारण किसी भी सामान या सर्विस के दाम देश के अलग-अलग इलाक़ों में अलग-अलग होते थे. अब सिर्फ़ शराब, पेट्रोल डीज़ल GST के दायरे से बाहर हैं , इसलिए इनके दाम देश भर में कम ज़्यादा है.

गुड एंड सिंपल क्यों नहीं?

GST की जटिलता का कारण है इसके Slabs और Cess. एक देश एक टैक्स यह नारा सरकार ने GST को लाँच करते समय दिया था, तब भी कहा गया था कि GST एक देश, अनेक टैक्स है. दुनिया के ज़्यादातर देशों में GST के दो Slabs होते हैं. भारत में 6 तरह के रेट है , उस पर भी कुछ चीजों पर Cess लगता है.GST लाँच होने से पहले अरविंद सुब्रमण्यम कमेटी ने सिफ़ारिश की थी कि तीन तरह के रेट होना चाहिए. फिर राज्यों के दबाव में Cess लगा दिया गया. जिन राज्यों को GST के लागू होने से नुक़सान होना था उन्हें केंद्र सरकार ने भरपाई का आश्वासन दिया था. इसके लिए cess लगाया गया. ये Cess पाँच साल तक रहना था , फिर कोरोनावायरस के दौरान क़र्ज़े के भुगतान के लिए इसकी अवधि मार्च 2026 तक बढ़ा दी गई है.

अरविंद सुब्रमण्यम ने पिछले महीने कहा कि Cess की संख्या बढ़कर 50 तरह के हो गए हैं, गिनेंगे तो शायद 100 तक चले जाएँ. यही जटिलता है .सामान या सर्विसेज़ पर टैक्स Slab मुख्य रुप से चार तरह के हैं 5%, 12%, 18% और 28% . दो और Slab 0.25% और 3% है जो कम चीजों पर लगता है. यहीं से पॉपकॉर्न का मीम समझिए, नमकीन है , खुला है तो 5%, पैकेज में वही बेचा तो 12% और Caramels मिला है तो मीठा हुआ तो 18%. इसके जगह हर तरह के पॉपकॉर्न पर एक ही टैक्स होता यह सबके लिए आसान होता. पुरानी कारों की बिक्री पर टैक्स पहले से था, Slabs अलग अलग थे.

सिंपल बनाना आसान नहीं

GST को गुड एंड सिंपल बनाना आसान नहीं है. किस पर कितना टैक्स लगेगा यह GST कौंसिल तय करती है. इसमें केंद्र सरकार के अलावा सभी राज्यों के वित्त मंत्री शामिल होते हैं. राज्य अपनी कमाई का ज़रिया छोड़ना नहीं चाहते. केंद्र सरकार के पास एक तिहाई वोट है. बाक़ी वोट राज्य सरकारों के पास है. पॉपकॉर्न में Caramel होने पर टैक्स रेट का स्पष्टीकरण उत्तर प्रदेश ने माँगा था लेकिन बदनामी वित्त मंत्री के हिस्से में आयीं.सरकार पर दबाव है कि टैक्स रेट कम किए जाएँ लेकिन रेट कम करने से कलेक्शन कम होगा. कलेक्शन कम होगा तो सरकार को अपने ख़र्चे कम करने पड़ेंगे. अब तो महिलाओं को पैसे देने जैसी स्कीम से ज़्यादातर राज्यों के ख़र्चे बढ़ रहे हैं.सरकार एक हाथ से पैसे देगी और दूसरे से लेती रहेगी.

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