राजनीतिक इच्छाशक्ति और कमजोर नेतृत्व की कमी झेल रहा हल्द्वानी महानगर
—विनोद जोशी—
बहुप्रतीक्षित जमरानी बांध प्रोजेक्ट 1975 में प्रस्तावित हुआ। उस समय हल्द्वानी क्षेत्र की आबादी मात्र 51000 थी। 61.5 करोड़ की लागत का उस समय यह प्रोजेक्ट सिंचाई , पेयजल और ऊर्जा की पूर्ति के लिए शुरू किया गया था। इसका प्रथम चरण जिसमें गोला बैराज, 40.5 किमी का नहर निर्माण और 244 किमी नहर का नवनिर्माण वर्ष 1981 में पूरा किया गया।
इसके 37 साल बाद मई 2018 में पुनः चर्चा शुरू हुई और 11 फरवरी 2019 में 2684.10 करोड़ प्रोजेक्ट राशि स्वीकृत हुई। फॉरेस्ट क्लियरेंस, पर्यावरण क्लियरेंस के साथ ही राशि 88.89 करोड़ रुपए फॉरेस्ट विभाग को अप्रैल 2018 को दे दी गई है। इन विगत वर्षो में हल्द्वानी क्षेत्र की आबादी 700 प्रतिशत बढ़ कर 350000 और प्रोजेक्ट की कीमत 4200 प्रतिशत बढ़ गई है।
इसी क्रम में 22 अप्रैल 2017 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 400 करोड़ रुपए की लागत की रिंग रोड की घोषणा की थी। जिसकी कीमत अब 5 साल में बढ़ कर 2000 करोड़ रुपए हो गई है और सरकार का कार्य जमीनी हकीकत के लिए बाट जोह रहा है।
2008 में प्रस्तावित और 22 दिसंबर 2014 को कांग्रेस सरकार से प्रस्तावित अन्तर राज्यीय बस अड्डा को निरस्त कर पुनः तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 29 दिसम्बर 2017 को कार्य शुरू करने की घोषणा की थी। कार्य की प्रगति का आलम यह है कि चयनित जमीन की जानकारी आज तक किसी के पास उपलब्ध नहीं है।
डबल इंजन की सरकार के कार्यों को विगत वर्षों में हल्द्वानी के प्रसंग में देखें तो घोषणाओं का लॉलीपॉप देकर चुनाव होते रहे हैं। दशकों गुजर जाने के बाद भी हल्द्वानी की मूलभूत समस्याएं सड़क, यातायात, पेयजल आपूर्ति जस की तस है ।
डॉ. इंदिरा हृदयेश अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के कारण ही हल्द्वानी क्षेत्र की सर्वमान्य नेता मानी जाती रही थी। इंदिरा हृदयेश ने शहर के विकास के लिए जो कार्य किए जो सीमित थे, किंतु हल्द्वानी क्षेत्र की राजनीतिक अनदेखी के बीच यहां की जनता आज भी उनको और उनके कार्यों को याद करती है।
भाजपा सरकार हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस के वॉकओवर क्षेत्र मानकर राजनीतिक द्वेष में किसी भी ठोस योजना के लिए कार्य नही कर रही है। केवल झुनझुने और मोदी जी के नाम के सहारे यहां राजनीति कर रही है। यहां विकास कार्य कर कांग्रेस के सामने एक लम्बी रेखा खींचने की कोई प्रयास नहीं हो रहा है जबकि संभावनाओं कोई कमी नहीं है।
रुद्रपुर शहर या निकटवर्ती क्षेत्रों के साथ यदि हल्द्वानी का तुलनात्मक अध्ययन किया जाय तो कुमाऊं के इस प्रवेशद्वार में आबादी और समस्याएं लगातार सरकारी घोषणाओं की तरह बढ़ रही है।