राष्ट्रीय

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में बहस, प्रधान न्यायाधीश ने पूछा उल्लंघन का मामला बताओ

नयी दिल्ली, 21 मई । वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति गवई ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि  आखिर इस कानून से संविधान प्रदत्त मौलिक उल्लंघन का उदाहरण क्या है?

बेंच में दूसरे जज जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह थे. सुनवाई के दौरान सीजेआई ने संसद से पारित कानूनों की संवैधानिकता को लकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की. उन्होंने वक्फ (संशोधन) अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से कहा, ‘संसद द्वारा पारित कानूनों में संवैधानिकता की धारणा होती है और कोई कानून संवैधानिक नहीं है इसका जब तक कोई ठोस मामला सामने नहीं आता, अदालतें इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं.’

केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया कि वह अंतरिम आदेश पारित करने के लिए वक्फ (संशोधन) अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई को तीन मुद्दों तक सीमित रखे, जिनमें ‘कोर्ट, यूजर और डीड’ द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने का बोर्डों का अधिकार भी शामिल है. केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष यह अनुरोध किया. तुषार मेहता ने कहा, ‘अदालत ने तीन मुद्दे चिन्हित किए थे. हालांकि, याचिकाकर्ता चाहते हैं कि इन तीन मुद्दों के इतर भी कई अन्य मुद्दों पर सुनवाई हो. मैंने इन तीन मुद्दों के जवाब में अपना हलफनामा दाखिल किया है. मेरा अनुरोध है कि इसे केवल तीन मुद्दों तक ही सीमित रखा जाए.’

वक्फ (संशोधन) अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने केंद्र की दलील का विरोध करते हुए कहा कि महत्वपूर्ण कानून पर टुकड़ों में सुनवाई नहीं हो सकती. कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि संशोधित कानून संविधान के अनुच्छेद 25 (यह अनुच्छेद धर्म पालन, उसके अनुरूप आचरण करने और धर्म का प्रचार करने के अधिकार की गारंटी देता है) का उल्लंघन करता है. उन्होंने कहा कि हम तो सभी मुद्दों पर दलील रखेंगे. यह सम्पूर्ण वक्फ सम्पत्ति पर कब्जा करने का मामला है. कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में अंतरिम आदेश जारी करने पर सुनवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ये कानून असंवैधानिक और वक्फ संपत्ति को कंट्रोल करने वाला और छीनने वाला है.

वे तीन मुद्दे क्या हैं जिन पर सुनवाई चाहता है केंद्र?

तीन मुद्दों में से एक मुद्दा है, वक्फ बाय कोर्ट, वक्फ बाय यूजर या वक्फ बाय डीड द्वारा घोषित संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने की शक्ति. याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुस्लिम सदस्य ही इन संस्थाओं में होने चाहिए. तीसरा मुद्दा उस प्रावधान से संबंधित है, जिसके अनुसार जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करेगा कि वक्फ घोषित की गई कोई भूमि सरकारी है या नहीं, तो जांच रिपोर्ट आने तक संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.

सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में क्यों किया बाबरी का जिक्र?

कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले में (वक्फ अधिनियम की संवैधानिकता पर) अंतरिम आदेश जारी करने पर सुनवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ये कानून असंवैधानिक और वक्फ संपत्ति को कंट्रोल करने वाला और छीनने वाला है. संशोधित कानून में प्रावधान किया गया है कि वक्फ की जाने वाली संपत्ति पर किसी विवाद की आशंका से जांच होगी. कलेक्टर जांच करेंगे. जांच की कोई समय सीमा नहीं है. जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आएगी तब तक संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी. जबकि अल्लाह के नाम पर वक्फ संपत्ति दी जाती है. एक बार वक्फ हो गया तो हमेशा के लिए हो गया. सरकार उसमें आर्थिक मदद नहीं दे सकती. मस्जिदों में चढ़ावा नहीं होता, वक्फ संस्थाएं दान से चलती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि दरगाहों में तो चढ़ावा होता है. इस पर सिब्बल ने कहा कि मैं मस्जिदों की बात कर रहा हूं. दरगाह अलग है. सिब्बल ने कहा कि मंदिरों में चढ़ावा आता है लेकिन मस्जिदों में नहीं. यही वक्फ बाय यूजर है. बाबरी मस्जिद भी ऐसी ही थी. 1923 से लेकर 1954 तक अलग अलग प्रावधान हुए, लेकिन बुनियादी सिद्धांत यही रहे.

वक्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता पर बहस

कपिल सिब्बल ने कहा कि संशोधन को वक्फ को एक ऐसी प्रक्रिया के माध्यम से नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया है जो कार्यकारी है. वक्फ को दान दी गईं निजी संपत्तियों को केवल इसलिए छीना जा रहा है क्योंकि इनके विवाद होने का अंदेशा है या इनके मालिकाना हक को लेकर विवाद है. इस कानून को वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए डिजाइन किया गया है. स्टेट धार्मिक संस्थाओं की फंडिंग नहीं कर सकता. यदि कोई मस्जिद या कब्रिस्तान है तो स्टेट उसकी फंडिंग नहीं कर सकता, यह सब निजी संपत्ति के माध्यम से ही होना चाहिए. अगर आप मस्जिद में जाते हैं तो वहां मंदिरों की तरह चढवा नहीं होता, उनके पास 1000 करोड़, 2000 करोड़ नहीं होते.

सीजेआई बीआर गवई ने कपिल सिब्बल की दलील पर कहा- मैं दरगाह भी गया, चर्च भी गया… हर किसी के पास यह (चढ़ावे का पैसा) है. सिब्बल ने कहा- दरगाह दूसरी बात है, मैं मस्जिदों की बात कर रहा. 2025 का कानून पुराने कानून से बिल्कुल अलग है. इसमें दो अवधारणाएं हैं- उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ बनाई गईं संपत्तियां और इनका समर्पण. बाबरी मस्जिद मामले में भी इसे मान्यता दी गई थी. उपयोगकर्ता द्वारा बनाए गए कई वक्फ सैकड़ों साल पहले बनाए गए थे. वे कहां जाएंगे? सीजेआई ने पूछा- क्या पहले के कानून में पंजीकरण की आवश्यकता थी? सिब्बल ने कहा- हां.. इसमें कहा गया था कि इसे पंजीकृत किया जाएगा. सीजेआई ने पूछा- सूचना के तौर पर हम पूछ रहे हैं कि क्या पुराने कानून के तहत वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण का प्रावधान अनिवार्य था या सिर्फ ऐसा करने का निर्देश था?

कन्फ्यूज हुए कपिल सिब्बल तो सीजेआई ने ली चुटकी

कपिल सिब्बल ने कहा- पुराने अधिनियमों में ‘Shall’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था. CJI ने कहा- केवल ‘Shall’ शब्द के प्रयोग से पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं हो सकता, ऐसा नहीं करने पर परिणाम क्या होगा इसका कोई प्रावधान था? कपिल सिब्बल ने कहा- पुराने एक्ट में सिर्फ इतना कहा गया है कि जो मुत्तवल्ली ऐसा नहीं करता, वह अपना अधिकार खो देता है. बस इतना ही है. सीजेआई ने कहा कि हम यह पूछ रहे हैं कि क्या प्रासंगिक समय के अधिनियमों के तहत वक्फ घोषित की गई संपत्ति का पंजीकृत होना अनिवार्य या आवश्यक था? कपिल सिब्बल ने कहा कि 1954 के बाद वक्फ कानून में जितने भी संशोधन हुए, उनमें वक्फ प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य था.

अदालत ने पूछा- क्या वक्फ बाय यूजर में भी पंजीकरण अनिवार्य था. सिब्बल ने हां में जवाब दिया. अदालत ने कहा- तो आप कह रहे 1954 से पहले उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ का पंजीकरण आवश्यक नहीं था और 1954 के बाद यह आवश्यक हो गया. सिब्बल ने कहा- इस बारे में कुछ भ्रम है, यह 1923 हो सकता है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा- बहुत दबाव है, सिर्फ हम पर ही नहीं बल्कि आप पर भी. सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से कहा कि हम आपकी इस दलील को दर्ज करेंगे कि पुराने अधिनियम के तहत पंजीकरण की आवश्यकता थी, लेकिन ऐसा नहीं करने पर क्या होगा इसका कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए पंजीकरण न कराने पर कुछ नहीं होने वाला था.

CJI के राइट टू वर्शिप और ASI पर सिब्बल से सवाल

कपिल सिब्बल की दलीलें सुनने के बाद सीजेआई बीआर गवई ने कहा- खजुराहो में एक मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, फिर भी लोग वहां जाकर पूजा-प्रार्थना कर सकते हैं. सिब्बल ने कहा- नया कानून कहता है कि अगर कोई संपत्ति एएसआई संरक्षित है तो यह वक्फ नहीं हो सकती. सीजेआई ने पूछा- क्या इससे आपका अपने धर्म का पालन करने का अधिकार छिन जाता है? क्या आप वहां जाकर प्रार्थना नहीं कर सकते? सिब्बल ने कहा- हां, इस कानून में कहा गया है कि वक्फ संपत्ति को रद्द माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने उनसे फिर पूछा- क्या इससे आपका धर्म पालन का अधिकार भी छिन जाता है?

सिब्बल ने कहा- अगर किसी प्रॉपर्टी की वक्फ मान्यता ही खत्म हो जाती है, तो मैं वहां कैसे जा सकता हूं? सीजेआई ने कहा- मैंने एक एएसआई संरक्षित मंदिर का दौरा किया; मैंने देखा कि भक्त वहां जाकर प्रार्थना कर सकते हैं. तो क्या इस तरह की घोषणा से आपका प्रार्थना करने का अधिकार छिन जाता है? सिब्बल- अगर आप कहते हैं कि वक्फ मान्यता रद्द की जाती है तो इसका मतलब अब वह प्रॉपर्टी वक्फ नहीं है. मेरा कहना है कि यह प्रावधान अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है. न्यायालय के रिकॉर्ड पर लिया कि याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है और नागरिकों से उनकी धार्मिक प्रथाओं को जारी रखने का अधिकार छीन लिया जाएगा.

वक्फ कानून पर सुनवाई के दौरान औरंगाबाद का जिक्र

कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम के उस प्रावधान पर आपत्ति जताई जिसमें कहा गया है कि कम से कम 5 साल से मुस्लिम धर्म का पालन करने वाला ही अपनी संपत्ति वक्फ के रूप में दान कर पाएगा. सिब्बल ने दलील दी कि मैं क्यों बताऊं कि मैं प्रैक्टिसिंग मुस्लिम हूं. मुझे पांच साल का इंतजार क्यों करना चाहिए? यह संविधान के आर्टिकल 14, 25 और 26 का उल्लंघन है. इस पर सीजेआई बीआर गवई ने कहा- आपके मुताबिक संशोधित वक्फ कानून की धारा 3 के प्रावधान के तहत अगर कोई विवाद उठाया जाता है, तो आपकी संपत्ति वक्फ होना बंद हो जाएगी. इस पर सिब्बल ने कहा कि हां, वो भी किसी भी स्थानीय अथॉरिटी के द्वारा. सीजेआई ने कहा- महाराष्ट्र के औरंगाबाद में भी वक्फ संपत्तियों को लेकर कई विवाद हैं. इस पर सिब्बल ने कहा कि हां, अड़ंगा लगाना हमारे डीएनए में है. नए प्रावधान के अनुसार कोई भी ग्राम पंचायत या निजी व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकते हैं और संपत्ति वक्फ नहीं रह जाती. क्योंकि सरकारी अधिकारी ही आरोपों की जांच करेगा और फैसला देगा. यानी वह मामले में वकील और जज खुद ही होगा. संशोधित कानून का यह प्रावधान नागरिक अधिकारों का हनन करता है. यह अन्यायपूर्ण और मनमाना है.

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