वन्यजीव संसार के लिये भी विनाशकारी हैं हीटवेब
वैश्विक स्तर पर वर्ष 2023 तो सबसे गर्म वर्ष माना ही गया, मगर 2024 में स्थितियां और भी विकट लग रही हैं। भारतीय मौसम विभाग की पूर्व में दी गयी चेतावनी 2024 में सच साबित हो रही है और चरम हीटवेब या गर्म लहरों से भारत का अधिकांश हिस्सा झुलस रहा है। इस साल दिल्ली के मुंगेशपुर इलाके में अधिकतम् तापमान 52.9 डिग्री तक उछल चुका है। राजस्थान में बीएसएफ के एक जवान को खुली रेत में पापड़ तलने का वायरल वीडियो सारे देश ने देखा। सेंटर फॉर सांइस एण्ड एन्वार्नमेंट (सीएसई) के एक अनुमान के अनुसार गर्मी से जून की शुरुआत तक भारत में कम से कम 219 लोगों की मौत हो गयी थी। मृतकों में राजस्थान में बीएसएफ का एक जवान भी शामिल था। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में ये गर्म लहरें अब लंबी, अधिक तीव्र और लगातार होती जायेंगी। ऐसी हाहाकार की स्थिति निििश्चत ही बहुत चिन्ता का विषय है। लेकिन दूसरी चिन्ता का विषय हमारी चिन्ता का दायरा है जो केवल मानवों तक ही सीमित है। जबकि ये विकट परिस्थियां वन्यजीवों तथा पादप प्रजातियों के लिये भी समान रूप से घातक हैं।
मौसम विभाग विभाग का हीटवेब घोषित करने का अपना एक मानक होता है। जब किसी स्थान पर खास दिन उस क्षेत्र में सामान्य से 4.5 से लेकर 6.4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ जाता है तो मौसम विभाग हीटवेब की घोषणा करता है। जब किसी स्थान का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस पार कर जाता है तो विभाग हीटवेब घोषित करता है और जब तापमान 47 डिग्री सेल्सियस पार कर जाता है तो गंभीर हीटवेब की चेतावनी जारी कर दी जाती है।
भारत एक उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्र है जहां जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। यह स्थिति निरन्तर गहराती जा रही है। असहनीय गर्मी से मनुष्यों के साथ ही जीव जन्तुओं की मौतें भी बढ़ रही हैं, हालांकि हमारे पास उसका कोई रिकार्ड नहीं है। हिमालय से लेकर महासागर तक के भूभाग में विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न प्रकार की जीव और पादप प्राजतियां अस्तित्व में रहती है। इनमें कुछ जीव और पादप ऐसे हैं जो अत्यंत ठंड या बर्फीले इलाके में जीवित रहते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो कि गर्म इलाकों में जीवित रह सकते हैं। लेकिन गर्मी और ठंड के सन्तुलन की जो प्राकृतिक व्यवस्था विद्यमान है उसमें गड़बड़ी या असन्तुलन हो जाने से जीवधारियों के साथ ही पादपों का जीवन भी संकट में पड़ जाता है।
गर्मी बेजुबान वन्यजीवों के लिये गंभीर संकट पैदा करती है। कई जानवर, विशेष रूप से वे जो अत्यधिक गर्मी के अनुकूल नहीं हैं वे अधिक गर्मी से पीड़ित होते हैं। अत्यधिक गर्मी से उनमें निर्जलीकरण, हाइपरथर्मिया जैसी समस्या से उनकी मृत्यु हो जाती है। देखा गया है कि वन्यजीव अक्सर गर्मी से बचने के लिए अपने व्यवहार को बदल देते हैं। वे दिन की गर्मी से बचने के लिए रात में अधिक सक्रिय हो जाते हैं जिससे उनका भोजन और सहवास पैटर्न बाधित हो सकता है। गर्मी के कारण जल श्रोत सूखने से उनके लिये पानी की कमी होती है। जिस कारण जानवरों को पानी की तलाश में लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। इससे शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष का खतरा बढ़ जाता है। उच्च तापमान और वर्षा की कमी से वनस्पति भी सूख जाती है, जिससे शाकाहारी जानवरों और परिणामस्वरूप उन उन पर निर्भर मांसाहारी जानवरों के लिए भोजन की उपलब्धता कम हो जाती है। जंगलों से बाहर बस्तियों में भीषण गर्मी से तोते, गौरैया, नीले पत्थर के कबूतर, खलिहान उल्लू, काली चील, पतंगे, भारतीय भेड़िया, साँप, छिपकली, नेवले, शाही, चूहा, सियार, सिवेट, बंदर और गिलहरी जैसे कई जीव प्रभावित होते हैं।
गर्म तापमान परजीवी और रोगजनकों में भी वृद्धि करता है। लंबे समय तक गर्मी के तनाव से जानवरों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है, जिससे वे संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। पक्षियों और सरीसृपों के लिए, अत्यधिक गर्मी के कारण अंडे ज्यादा गर्म हो सकते हैं और घोंसलों में गर्मी से उनकी मृत्यु दर बढ़ जाती है। कुछ प्रजातियों को ठंडे क्षेत्रों में पलायन करती हैं जिससे प्रजातियों के वितरण में बदलाव और स्थानीय प्रजातियों के साथ संघर्ष की नौबत आती है। जो प्रजातियाँ जल्दी से पलायन या अनुकूलन नहीं कर सकती हैं, उनकी लोकल विलुप्ति का खतरा रहता है।
जीवों में भी कुछ ऐसे जीव होते हैं जिन पर गर्म लहरों का ज्यादा असर माना जाता है। पक्षी विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में गर्मी के गंभीर जोखिम का सामना करते हैं। उनमें निर्जलीकरण और गर्मी से थकावट आम है। ऐसी स्थिति में उनके घोंसले ज्यादा गरम हो सकते हैं, जिससे चूजे मर सकते हैं। कई सरीसृप एक्टोथर्मिक होने के बावजूद, ज्यादा गरम हो सकते हैं और अगर उन्हें छाया या ठंडा क्षेत्र नहीं मिलता है तो वे मर जाते हैं। हाथी और बाघ जैसे बड़े स्तनधारी भी आवास, भोजन और पानी की तलाश में मानव बस्तियों के करीब आ जाते हैं। जिससे मानव जीव संघर्ष बढ़ जाता है। वन्यजीवों को विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में भी वन्यजीवों को गंभीर कष्ट का सामना करना पड़ा।
वन्यजीवों के संरक्षण के लिये मनुष्यों की ही तरह विज्ञान और प्रोद्योगिकी का उपयोग होना चाहिये। संरक्षण के लिये जरूरी है कि वन्यजीवों पर गर्मी के दीर्घकालिक प्रभावों को समझने और शमन रणनीतियों को विकसित करने के लिए विस्तृत अध्ययन और सर्वेक्षण किया जाय। स्थानीय समुदायों और स्वयंसेवकों को चरम मौसम की घटनाओं के दौरान वन्यजीवों की मौतों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है ताकि अधिक व्यापक डेटाबेस बनाया जा सके। संरक्षण की दिशा में वन्यजीव अभ्यारण्यों के भीतर जल स्रोतों का निर्माण और रखरखाव करना जरूरी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जानवरों को गर्मी में पानी मिल सके। उनके पर्यावास के लिये पेड़ लगाना और जानवरों को गर्मी से बचाने के लिए छायादार क्षेत्र बनाना भी जरूरी है। अत्यधिक गर्मी की घटनाओं के दौरान समय पर हस्तक्षेप को लागू करने के लिए वन्यजीव स्वास्थ्य और व्यवहार की निरंतर निगरानी की व्यवस्था होनी चाहिये।