जानकारी के आभाव में किसान की आय दोगुनी करने में सक्षम कोदे झंगोरे का पूरा उत्पादन नहीं हो पा रहा है
-गौचर से दिग्पाल गुसांईं-
पहाड़ी क्षेत्र के परंपरागत अनाज कोदा झिंगोरा को भले ही मिलेट फसल में शामिल किसन किया गया हो लेकिन जानकारी के अभाव में लोग इन फसलों का ठीक से उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। इन फसलों को धान की तर्ज पर रोपाई विधि से उगाया जाय तो दोगुना उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
पहाड़ी क्षेत्रों के परंपरागत अनाज कोदा झिंगोरा,कौणी को मोटा अनाज भी कहा जाता है। 80 के दशक से पूर्व गेहूं धान से ज्यादा इन्हीं परंपरागत अनाज को उगाने पर जोर दिया जाता था। इन अनाजों के सेवन से हार्ट अटैक,सूगर जैसी बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती थी। यही नहीं उस दौर की गरीबी में गुजर बसर करने का सबसे बड़ा साधन भी हुआ करता था।
हालांकि बाजरे का उत्पादन पहाड़ी क्षेत्रों में न के समान होता था। सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों में मैदानी भागों के बाजरे का वितरण किया जाता था। अलग राज्य बनने के बाद भी कोदा झिंगोरे की कीमत न के समान हुआ करती थी। 2014 -15 में हरीश रावत की सरकार द्वारा पहाड़ के इन परंपरागत फसलों को प्रोत्साहन देने का ही नतीजा रहा है कि कोदे के आटे के भाव 40 से 50 रूपए किलो तथा झिंगोरे के चावल 100 रुपए किलो तक बिकने लगा है।
केंद्र सरकार ने भी इन फसलों को मिलेट का दर्जा देकर कास्तकारों को प्रोत्साहित करने का काम किया है। लेकिन जानकारी के अभाव में इन फसलों की उत्पादन क्षमता गति नहीं पकड़ पा रही है। इन फसलों की रोपाई धान की रोपाई के तर्ज पर की जाय तो उत्पादन क्षमता दोगुनी की जा सकती है।
ऐसा नहीं है कि लोग इन फसलों को रोपाई नहीं करते हैं लेकिन रोपाई के उन पौधों की की जाती जहां पर घने पौधों रहते हैं उन्हें उखाड़कर खाली स्थान पर रोप दिया जाता है। इससे पौधों की बढ़वार भिन्न हो जाती है। अगर सभी पौधों को एक साथ उखाड़कर एक साथ रोपाई की जाय तो उत्पादन क्षमता दोगुनी हो सकती है।
बंदरखंड निवासी प्रगतिशील कास्तकार विजया गुसाईं का कहना है कि पिछले साल उन्होंने कोदा व झिंगोरे की फसल की रोपाई धान की रोपाई की तर्ज पर की तो उन्हें पहले से दोगुना उत्पादन प्राप्त हुआ है। उनके इस प्रयास की अन्य कास्तकारों ने भी सराहना की है।