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नौकरी पर सरकारी आँकड़े कितने सच्चे हैं ?

By- Milind Khandekar

पिछले हफ़्ते भर में गुजरात और मुंबई से नौकरी के लिए युवाओं की भीड़ के वीडियो वायरल हुए थे. गुजरात में वॉक इन इंटरव्यू के लिए इतनी भीड़ लग गई थी कि होटल की रैलिंग टूट गई जबकि मुंबई में उम्मीदवारों से कहा गया कि CV देकर  चले जाएँ. इस सबके बीच रिज़र्व बैंक ने दावा किया कि पिछले साल चार करोड़ से ज़्यादा लोगों को रोज़गार मिला. सवाल यह है कि चार करोड़ लोगों को काम मिला तो नौकरी को लेकर इतनी मार क्यों मची है?

यह समझने के लिए  इन आँकड़े पर नज़र डालिए 

  • रिज़र्व बैंक ने कहा कि अब 64 करोड़ लोगों के पास काम है.
  • इन 64 करोड़ में सैलरी पाकर नौकरी करने वाले 12 करोड़ लोग ही है.
  • इन 12 करोड़ में सरकारी नौकरी में सिर्फ़ 1.5 करोड़ लोग ही है.

सारी मार इन सैलरी वाली नौकरियों को लेकर है. सरकार के अनुसार 4 करोड़ से ज़्यादा छात्र कॉलेज में पढ़ रहे हैं. इनमें से मान लीजिए एक करोड़ छात्र भी हर साल बाज़ार में नौकरी खोजने आते हैं तो उनके लायक़ काम नहीं मिलता है. फिर हमें ख़बर पढ़ने मिलती है कि फ़लाँ नौकरी के लिए पोस्ट ग्रेजुएट या बीटेक उम्मीदवार अर्ज़ी लगा रहे हैं. रेलवे में 1 लाख पदों के लिए दो करोड़ से ज़्यादा अर्ज़ियाँ आ गई.

सिटी बैंक के अनुसार देश में ज़रूरत हर साल 1.20 करोड़ रोज़गार की है लेकिन मिल रहा है 80-90 लाख.उस रोज़गार में भी क्वालिटी का इश्यू है. देश में 100 लोगों को काम मिला है उसमें से 46 लोग खेती के काम में लगे हैं. खेती का देश की GDP में योगदान 20% से कम है यानी 100 में 46 लोग जो काम कर रहे हैं उससे कमाते हैं सिर्फ़ 20 रुपये. जब तक खेती के बाहर रोज़गार पैदा नहीं होगा तब तक आमदनी भी नहीं बढ़ेगी.

हल क्या है?

हमारे जैसी जनसंख्या वाले देश चीन ने कारख़ाने से लोगों को काम दिया. हम इसमें पीछे रह गए. हमारे यहाँ 100 में से 11 लोगों को कारख़ाने में काम मिला है. सरकार ने अब मेक इन इंडिया को बढ़ावा देना शुरू किया है. हमारी GDP का आधे से अधिक हिस्सा सर्विस से आता है जैसे IT कंपनियाँ, बैंकिंग, होटल , कंस्ट्रक्शन लेकिन यहाँ उतने लोगों की ज़रूरत नहीं है.Artificial Intelligence (AI) इस बीच नई चुनौती बन रहा है. हर सेक्टर में रोज़गार पर असर डालेगा. रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि भारत को सर्विसेज़ के एक्सपोर्ट पर ध्यान देना चाहिए. मैन्युफ़ैक्चरिंग में हम चीन से पीछे रहेंगे. पिछले कुछ सालों में भारत में Global Capability Centre (GCC) का चलन बढ़ा है. दुनिया की बड़ी कंपनियाँ हमारे देश में अपना अलग अलग काम करती है. इससे 30 लाख लोगों को नौकरी मिली है. हमारी ज़रूरत की हिसाब से यह आँकड़ा भी कम ही है.

समाधान तभी खोज सकते है जब सरकार यह माने कि बेरोज़गारी समस्या है वरना आँकड़े खेल सकते हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक़ अगर कोई व्यक्ति हफ़्ते में एक घंटा भी काम करेगा तो सरकारी आँकड़े में रोज़गार माना जाएगा. एक साल में 30 दिन काम करने पर पूरे साल में बेरोज़गारी में नहीं गिना जायेगा.इसे पढ़ कर अदम गोंडवी की पंक्तियाँ याद आ गई

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