ब्लॉगशिक्षा/साहित्य

विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं मे एक हिंदी का अपने ही देश मे विरोध

-उषा रावत –

14 सितंबर को भारत में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि 1949 में इसी दिन संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। हिंदी, जिसे दुनिया में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा का दर्जा प्राप्त है, भारत की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। फिर भी, भारत में हिंदी को लेकर विरोध के स्वर समय-समय पर सुनाई देते हैं। यह लेख हिंदी की वैश्विक स्थिति, भारत में इसकी प्राथमिकता और विरोध के कारणों पर प्रकाश डालता है।

हिंदी की वैश्विक स्थिति

विश्व स्तर पर हिंदी लगभग 60 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है, जिसके कारण यह मंदारिन और अंग्रेजी के बाद तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। भारत, नेपाल, मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों में हिंदी बोलने वालों की संख्या उल्लेखनीय है। इसके अलावा, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में प्रवासी भारतीयों ने हिंदी को जीवंत रखा है। हिंदी साहित्य, सिनेमा (बॉलीवुड), और डिजिटल मंचों के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है, जो इसकी वैश्विक लोकप्रियता को दर्शाता है।

भारत में हिंदी की स्थिति

भारत में हिंदी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, जिसे लगभग 43.6% आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार) अपनी मातृभाषा या दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करती है। संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्जा प्राप्त है, और यह 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आधिकारिक भाषा है। हिंदी साहित्य, पत्रकारिता, शिक्षा, और प्रशासन में व्यापक रूप से उपयोग होती है। इसके बावजूद, हिंदी को लेकर कुछ क्षेत्रों में विरोध देखने को मिलता है, जिसके कई सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारण हैं।

भारत में हिंदी के विरोध के कारण

  1. भाषाई विविधता और क्षेत्रीय अस्मिता: भारत एक बहुभाषी देश है, जहां 22 अनुसूचित भाषाएं और सैकड़ों बोलियां मौजूद हैं। तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, बंगाली, और अन्य भाषाओं को बोलने वाले समुदाय अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए संवेदनशील हैं। कुछ लोग हिंदी को राजभाषा के रूप में देखते हैं, जिसे वे “हिंदी थोपने” के रूप में मानते हैं, खासकर दक्षिण और पूर्वी भारत में। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में 1960 के दशक में हिंदी के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए थे, क्योंकि लोगों को लगा कि उनकी भाषा और संस्कृति पर खतरा है।

  2. अंग्रेजी का प्रभाव: भारत में अंग्रेजी को वैश्विक अवसरों, नौकरियों, और उच्च शिक्षा की भाषा के रूप में देखा जाता है। कई लोग हिंदी को अपनाने को आर्थिक और सामाजिक प्रगति में बाधा मानते हैं। शहरी क्षेत्रों में अंग्रेजी की बढ़ती लोकप्रियता और हिंदी को “पिछड़ा” मानने की मानसिकता भी विरोध का एक कारण है।

  3. राजनीतिक कारण: कुछ राजनीतिक दलों और नेताओं ने हिंदी को क्षेत्रीय अस्मिता के खिलाफ एक मुद्दा बनाकर वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा दिया है। हिंदी को “उत्तर भारत की भाषा” के रूप में चित्रित कर इसे क्षेत्रीय भाषाओं के खिलाफ खड़ा किया जाता है। यह धारणा कि हिंदी को बढ़ावा देना गैर-हिंदी भाषी राज्यों की उपेक्षा है, विरोध को हवा देती है।

  4. शिक्षा और प्रशासन में असमानता: कुछ गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिशों को शिक्षा और नौकरियों में असमानता के रूप में देखा जाता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में त्रिभाषा फॉर्मूले पर चर्चा के दौरान कुछ राज्यों ने हिंदी को अनिवार्य करने की आशंका जताई थी।

  5. सांस्कृतिक गलतफहमी: हिंदी को अक्सर हिंदू धर्म या उत्तर भारतीय संस्कृति से जोड़ा जाता है, जिसके कारण कुछ समुदाय इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान पर हमले के रूप में देखते हैं। यह धारणा ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से उत्पन्न हुई है, जो हिंदी के प्रचार-प्रसार में बाधा बनती है।

हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए सुझाव

  • समावेशी दृष्टिकोण: हिंदी को अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के साथ सह-अस्तित्व के रूप में बढ़ावा देना चाहिए, न कि उन पर थोपना। त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करते समय क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देना जरूरी है।

  • शिक्षा में लचीलापन: हिंदी को वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाया जाए, ताकि गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में इसे स्वीकार्यता मिले।

  • डिजिटल और सांस्कृतिक प्रचार: बॉलीवुड, साहित्य, और डिजिटल मंचों के माध्यम से हिंदी को आधुनिक और वैश्विक भाषा के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।

  • संवाद और जागरूकता: हिंदी को एकता की भाषा के रूप में प्रचारित करने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं के साथ संवाद बढ़ाना होगा, ताकि गलतफहमियां दूर हों।

सांस्कृतिक और भाषाई विरासत का प्रतीक

हिंदी न केवल भारत की राजभाषा है, बल्कि विश्व स्तर पर तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। यह भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विरासत का प्रतीक है। हालांकि, भारत में इसकी स्वीकार्यता को लेकर विरोध के कारण भाषाई विविधता, क्षेत्रीय अस्मिता, और ऐतिहासिक गलतफहमियां हैं। हिंदी को एकता और संवाद की भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए समावेशी और संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता है। हिंदी दिवस हमें इस दिशा में सोचने और कदम उठाने का अवसर देता है, ताकि हिंदी सभी भारतीयों के लिए गर्व का विनिष्क

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!