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भारत में सुपरबग्स का बढ़ता ख़तरा: सामान्य एंटीबायोटिक्स भी हो रही हैं बेअसर

— ज्योति रावत-

भारत में साधारण संक्रमणों का इलाज अब पहले से कहीं अधिक कठिन होता जा रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) की नवीनतम Antimicrobial Resistance Research & Surveillance Network (AMRSN) रिपोर्ट 2024 ने चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे हैं—देश में कई सामान्य एंटीबायोटिक्स अब बैक्टीरिया पर असर नहीं दिखा रहीं। इसका सबसे बड़ा कारण है सुपरबग्स, यानी ऐसे जीवाणु जो कई दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके हैं।

एंटीबायोटिक्स का असर घट रहा, खतरा बढ़ रहा

रिपोर्ट के अनुसार भारत में फ्लूरोक्विनोलोन वर्ग की दवाएं, जिन्हें दस्त, टाइफाइड और सामान्य संक्रमणों में वर्षों से प्रयोग किया जाता रहा है, अब 95% तक मामलों में बेअसर हो चुकी हैं। तीसरी पीढ़ी की सेफालोस्पोरिन दवाएं भी मूत्र संक्रमण (UTI) और दस्त के मामलों में प्रभावी नहीं रहीं।

सबसे चिंताजनक स्थिति कार्बापेनेम्स जैसी अंतिम पंक्ति की एंटीबायोटिक दवाओं की है।

E.coli में इन दवाओं की संवेदनशीलता गिरकर 57% रह गई है

Klebsiella में यह घटकर केवल 31–35% रह गई है

आईसीयू में सबसे अधिक खतरा

  • रिपोर्ट बताती है कि अस्पतालों के ICU में संक्रमणों पर दवाएं तेजी से अप्रभावी हो रही हैं।
  • Acinetobacter baumannii में 91% प्रतिरोध पाया गया, जो अत्यंत गंभीर स्थिति है।
  • Pseudomonas aeruginosa में कार्बापेनेम प्रतिरोध 43% तक पहुंच गया है।
  • वेंटिलेटर से जुड़े निमोनिया के 80% मामलों में यही दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया पाए गए—Acinetobacter, Klebsiella और Pseudomonas।

रक्त संक्रमणों में 72% मामले दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया से

रिपोर्ट के अनुसार देश में रक्त संक्रमण (Bloodstream Infection) के 72% मामले दवा-प्रतिरोधी ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया की वजह से होते हैं।
10% मामलों में फंगस जिम्मेदार है, जिनमें एंटीफंगल दवाओं की भी कई जगह असरहीनता देखी गई है।

सुपरबग्स की पहचान और फैलाव

ICMR द्वारा 2024 में देशभर के लगभग 10 लाख लैब-निरूपित संक्रमण नमूनों का अध्ययन किया गया। इनमें प्रमुख सुपरबग्स रहे:

  • E.coli
  • Klebsiella pneumoniae
  • Pseudomonas aeruginosa
  • Acinetobacter baumannii
  • Staphylococcus aureus

डॉक्टरों की चेतावनी—स्थिति बेहद गंभीर

विशेषज्ञों के अनुसार अस्पतालों में दवा-प्रतिरोध बढ़ने से इलाज की जटिलताएं बढ़ रही हैं।
एक वरिष्ठ डॉक्टर  के अनुसार—
भारत में इस्तेमाल होने वाली रोजमर्रा की एंटीबायोटिक्स अब प्रभाव खो रही हैं। गंभीर मरीजों का इलाज बेहद मुश्किल हो गया है।”

अस्पतालों में एंटीबायोटिक विकल्प तेजी से सीमित होते जा रहे हैं। बिना मजबूत एंटीबायोटिक्स के निमोनिया, सेप्सिस और मूत्र संक्रमण जैसे सामान्य रोग भी जानलेवा बन सकते हैं।

क्यों बढ़ रहा है प्रतिरोध?

  • एंटीबायोटिक दवाओं का अधिक या गलत उपयोग
  • बिना डॉक्टर के परामर्श के दवा लेना
  • अधूरे इलाज के कारण बैक्टीरिया का अधिक शक्तिशाली रूप में लौटना
  • अस्पतालों में संक्रमण नियंत्रण की कमजोर व्यवस्था

रोकथाम ही समाधान विशेषज्ञों का स्पष्ट संदेश है—

  • एंटीबायोटिक्स को डॉक्टर की सलाह के बिना न लें
  • निर्धारित कोर्स पूरा करें
  • अस्पतालों में संक्रमण नियंत्रण को सख्त बनाया जाए
  • ‘एंटीबायोटिक स्ट्यूर्डशिप’ कार्यक्रम को अनिवार्य किया जाए

ICMR ने साफ चेतावनी दी है—अगर अभी भी सावधानी नहीं बरती गई, तो आने वाले वर्षों में कई सामान्य संक्रमण पूरी तरह अनुपचार्य हो सकते हैं।

भारत के लिए यह खतरे की घंटी है—और समय रहते कदम उठाना ही एकमात्र विकल्प।

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