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भारत ने 1971 में दुनियां का राजनीतिक नक्शा भी बदला और पाकिस्तान की कमर भी तोड़ी

-जयसिंह रावत

विश्व के इतिहास में 16 दिसम्बर का दिन अमिट हो गया। उसी दिन विश्व के राजनीतिक मानचित्र पर एक नया राष्ट्र उभरा और उसी दिन भारत की सेना के समक्ष पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक सैनिकों ने अपने सेना प्रमुख जनरल नियाजी के साथ आत्म समर्पण कर एक नया इतिहास रचा। विश्व के इतिहास और राजनीतिक भूगोल को बदलने वाले महानायक इंदिरा गांधी, मानेक शॉ और जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा भले ही आज सशीर मौजूद नहीं हैं मगर जब भी नया राष्ट्र बांग्लादेश अपना स्थापना दिवस मनायेगा, तब ये दोनों महानायक जरूर याद आयेंगे और 1947 से ही भारत की सरजमीं को हड़पने का प्रयास कर रहे पाकिस्तान को 16 दिसम्बर 1971 का दिन टीस देता रहेगा। देखा जाय तो इस दिन इंदिरा गांधी ने अंग्रेजों द्वारा साम्प्रदायिक आधार पर 1905 में किये गये बंगाल विभाजन (बंग भंग)का बदला भी ले लिया और साबित कर दिया कि एक रहने के लिये धर्म से पहले संस्कृति भी होती है।

भारत और पाकिस्तान के बीच 13 दिनों तक जंग चली

भारत में 16 दिसंबर का दिन विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1971 में इसी दिन पाकिस्तानी सेना ने भारत के सामने समर्पण किया था जिसके बाद 13 दिन तक चला युद्ध समाप्त हुआ। बांग्लादेश ने नौ महीने के खूनी संघर्ष के बाद पाकिस्‍तान से आजादी पाई थी और इसमें भारत की निर्णायक  भूमिका  रही  । एक नए और स्वतंत्र  देश के रूप में भारत ने इसे तभी मान्यता दे दी थी। लेकिन बांग्लादेश को एक स्वतंत्र  व संप्रभु देश के रूप में स्वीकार  करने में पाकिस्तान को दो साल लग गए। 1971 के युद्ध के करीब दो साल बाद 1973 में ही पाकिस्तान  की संसद में इस आशय का प्रस्ताव पारित किया गया।

शेख मुजीबुर रहमान का स्वायत्ता के लिए संघर्ष कर रहे थे
बांग्लादेश की आजादी को लेकर संघर्ष के बीज तो 1952 में ही पड़ गए गए थे, जब पाकिस्‍तानी हुकूमत ने उर्दू को पूरे देश की आधिकारिक भाषा बनाने की घोषणा की थी। बांग्ला  संस्कृति  व भाषा की अलग पहचान समेटे पूर्वी पाकिस्‍तान के लिए तब हुकूमत का वह फैसला अस्मिता का सवाल बन गया, जिसकी परिणिति एक अलग व स्वतंत्र  देश के रूप में सामने आई। शेख मुजीबुर रहमान पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्ता के लिए शुरू से संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए छह सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इन सब बातों से वह पाकिस्तानी शासन की आंख की किरकिरी बन चुके थे। साथ ही कुछ अन्य बंगाली नेता भी पाकिस्तान के निशाने पर था। उनके दमन के लिए और बगावत की आवाज को हमेशा से दबाने के मकसद से शेख मुजीबुर रहमान और अन्य बंगाली नेताओं पर अलगाववादी आंदोलन के लिए मुकदमा चलाया गया। लेकिन पाकिस्तान की यह चाल खुद उस पर भारी पड़ गई। मुजीबुर रहमान इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की नजर में हीरो बन गए। इससे पाकिस्तान बैकफुट पर आ गया और मुजीबुर रहमान के खिलाफ षडयंत्र के केस को वापस ले लिया।

बहुमत के बावजूद मुजीब को पाक जनरलों ने सरकार बनाने नहीं दिया
बांग्लादेश के अस्तित्व के लिए पाकिस्तान में 1970 का चुनाव काफी अहम साबित हुआ। इस चुनाव में मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग ने जबर्दस्त जीत हासिल की। पूर्वी पाकिस्तान की 169 से 167 सीट मुजीब की पार्टी को मिली। इस तरह 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में मुजीब के पास सरकार बनाने के लिए जबर्दस्त बहुमत था। लेकिन पाकिस्तान को नियंत्रित कर रहे पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं और सैन्य लीडरों को यह मंजूर नही था कि पूर्वी पाकिस्तानी या बंगाली पाकिस्तान पर शासन करें। मुजीब के साथ इस धोखे से पूर्वी पाकिस्तान में बगावत की आग स्वाभाविक थी। पूर्वी बंगाल लोग सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने लगे। लेकिन  पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान ने पूर्वी पाकिस्तान में सेना का सहारा लेकर दमन शुरू कर दिया।

पाक सेना के हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अत्याचारों को नहीं भूलेंगे बांग्लादेशी 
पाकिस्तान के चुनावों में धोखा खाने के बाद पूर्वी पाकिस्तान में आजादी का आंदोलन दिन ब दिन तेज होता जा रहा था। पाकिस्तान की सेना ने आंदोलन को दबाने के लिए अत्याचार का सहारा लिया। मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना ने क्रूरतापूर्वक अभियान शुरू किया। पूर्वी बंगाल में बड़े पैमाने पर अत्याचार किए गए। हत्या और बलात्कार की पराकाष्टा हो गई। मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी और टॉर्चर से बचने के लिए बड़ी संख्या में अवामी लीग के सदस्य भागकर भारत आ गए। शुरू में पाकिस्तानी सेना की चार इन्फैंट्री ब्रिगेड अभियान में शामिल थी लेकिन बाद में उसकी संख्या बढ़ती चली गई। भारत में शरणार्थी संकट बढ़ने लगा। एक साल से भी कम समय के अंदर बांग्लादेश से करीब 1 करोड़ शरणार्थियों ने भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में शरण ली। इससे भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया।

मुक्ति संग्राम में भारत की निर्णायक भूमिका
बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को 30 जनवरी 1971 के एयर इंडिया के ‘‘गंगा’’नाम के विमान के अपहरण और फिर कश्मीरी अलगाव वादियों द्वारा गंगा को जला देने की घटना से भी जोड़ा जाता है। माना जाता रहा है कि विमान अपहरण की इस घटना ने इंदिरागांधी को झकझोर दिया था। उसके बाद भारतीय आकाश से पाकिस्तानी विमानों के उड़ने पर भारत ने रोक लगा दी थी जिससे पाकिस्तानी सेना का मूवमेंट काफी प्रभावित हुआ। माना जाता है कि मार्च 1971 के अंत में भारत सरकार ने मुक्तिवाहिनी की मदद करने का फैसला लिया। मुक्तिवाहिनी दरअसल पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने वाली पूर्वी पाकिस्तान की सेना थी। मुक्तिवाहिनी में पूर्वी पाकिस्तान के सैनिक और हजारों नागरिक शामिल थे। 31 मार्च, 1971 को इंदिरा गांधी ने भारतीय सांसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही थी। 29 जुलाई, 1971 को भारतीय सांसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़कों की मदद करने की घोषणा की गई। भारतीय सेना ने अपनी तरफ से तैयारी शुरू कर दी। इस तैयारी में मुक्तिवाहिनी के लड़ाकों को प्रशिक्षण देना भी शामिल था। मुक्ति वाहिनी में भारत के पैरामिलिट्री के सैनिक भी सादी वर्दी में शामिल हुये।

भारत पर हमला किया तो पाकिस्तान की कमर ही तोड़ी दी
जब पूर्वी पाकिस्तान संकट विस्फोटक स्थिति तक पहुंच गया तो पश्चिमी पाकिस्तान में बड़े-बड़े मार्च हुए और भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की मांग की गई। दूसरी तरफ भारतीय सैनिक पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर चौकसी बरते हुए थे। 23 नवंबर, 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान ने पाकिस्तानियों से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की वायु सेना ने भारत पर हमला कर दिया। भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया। इसके साथ ही 1971 के भारत-पाक युद्ध की शुरुआत हो गई। 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की सेना के आत्मसमर्पण और बांग्लादेश के जन्म के साथ युद्ध का समापन हुआ।

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