भारत ने चरम मौसम स्थितियों से निपटने के लिए जलवायु-अनुकूल कृषि विकसित की
ICAR, through a network project on National Innovations in Climate Resilient Agriculture (NICRA), has developed and promoted climate-resilient agriculture to address vulnerable areas of the country to cope up with extreme weather conditions like droughts, floods, frost, heat waves, etc.
नयी दिल्ली। भारत सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) के माध्यम से जलवायु-अनुकूल कृषि प्रौद्योगिकियों को विकसित करने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। आईसीएआर ने जलवायु-अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचारों (एनआईसीआरए) पर नेटवर्क परियोजना के माध्यम से देश के संवेदनशील क्षेत्रों को सूखा, बाढ़, पाला, लू आदि जैसी चरम मौसम स्थितियों से निपटने के लिए जलवायु-अनुकूल कृषि विकसित की है और बढ़ावा दिया है। इसके तीन घटक हैं- रणनीतिक अनुसंधान, प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और क्षमता निर्माण।
यह जानकारी आज लोकसभा में लिखित उत्तर में कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री भागीरथ चौधरी ने दी। उन्होंने सदन को बताया कि आईसीएआर चरम मौसम स्थितियों के लिए उपयुक्त जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों के विकास, सर्वाधिक संवेदनशील जिलों/क्षेत्रों की पहचान, अनुकूलन और शमन के लिए प्रबंधन प्रथाओं और जलवायु-अनुकूल पशुधन, मत्स्य पालन और मुर्गी पालन प्रथाओं के विकास पर भी काम करता है। डीएएंडएफडब्ल्यू अपनी योजनाओं अर्थात प्रति बूंद अधिक फसल, वर्षा आधारित क्षेत्र विकास तथा मृदा स्वास्थ्य एवं प्रबंधन के माध्यम से कृषि को बदलती जलवायु के प्रति अधिक लचीला बनाने के लिए सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमएसए) को कार्यान्वित करता है।
आईसीएआर 25 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एकीकृत कृषि प्रणालियों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान कार्यक्रम (एआईसीआरपी-आईएफएस) लागू करता है, जिसके माध्यम से फसल विविधीकरण के लिए वैकल्पिक कुशल फसल प्रणालियों का विकास और प्रचार किया जाता है।
पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रधानमंत्री-राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत डीए एंड एफडब्ल्यू फसल विविधीकरण कार्यक्रम चला रहा है। ताकि पानी की अधिक खपत करने वाली धान की फसल के क्षेत्र को दलहन, तिलहन, मोटे अनाज, पोषक अनाज, कपास और कृषि वानिकी जैसी वैकल्पिक फसलों की ओर मोड़ा जा सके। इस कार्यक्रम को आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे तंबाकू उत्पादक राज्यों में विस्तारित किया गया है, ताकि तंबाकू उत्पादक किसानों को वैकल्पिक फसलों/फसल प्रणाली की ओर स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
डीएएंडएफडब्लू ने 2023-24 से कृषि उन्नति योजना के तहत फसल विविधीकरण के लिए आईसीएआर के एआईसीआरपी-आईएफएस कार्यक्रम के माध्यम से 17 राज्यों के 75 चिन्हित जिलों में एक और पायलट परियोजना लागू की है, ताकि मौजूदा फसलों को दलहन, तिलहन और बाजरा जैसी कम पानी वाली फसलों के साथ विविधता प्रदान की जा सके। इस परियोजना के कार्यान्वयन में कुल 19 राज्य कृषि विश्वविद्यालय और 5 आईसीएआर संस्थान शामिल हैं।
निक्रा परियोजना के अंतर्गत कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मूंगफली और सरसों के साथ धान और गेहूं की फसल विविधीकरण; मध्यम अवधि के काले चने के साथ मक्का; बाढ़ प्रवण क्षेत्रों के लिए उच्च मूल्य वाली सब्जियां; सूखा प्रवण क्षेत्रों में जोखिम न्यूनीकरण के लिए शहतूत-रेशम की खेती; और अरहर, कपास, सूरजमुखी और ज्वार की वैकल्पिक फसल के रूप में कम अवधि की फॉक्सटेल बाजरा किस्मों को बढ़ावा दिया जाता है।
सरकार 2015-16 से देश में प्रति बूंद अधिक फसल (पीडीएमसी) नामक केंद्र प्रायोजित योजना लागू कर रही है। पीडीएमसी मुख्य फसलों सहित विभिन्न फसलों को कवर करते हुए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली जैसी सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती है। इस योजना के तहत सूक्ष्म सिंचाई की स्थापना के लिए सरकार छोटे और सीमांत किसानों के लिए 55% और अन्य किसानों के लिए 45% की दर से वित्तीय सहायता प्रदान करती है। आईसीएआर-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान ने 26 नेटवर्क केंद्रों के माध्यम से ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन कार्यक्रम विकसित किए हैं जो किसानों तक पहुँचाए जा रहे हैं।
देश भर में फ्रंट लाइन प्रदर्शन योजना के माध्यम से किसानों के खेतों पर स्थान-विशिष्ट लचीली प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करके जलवायु लचीलापन चुनौतियों का सामना करने के लिए सभी 731 कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) में कई गतिविधियाँ चलाई जाती हैं। एनआईसीआरए के माध्यम से 28 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों में फैले जोखिम वाले जिलों के 151 केवीके में प्रयासों को और अधिक तीव्र किया गया है।
केवीके में ग्राम स्तर की संस्थाएँ भी हैं जैसे कि ग्राम जलवायु जोखिम प्रबंधन समितियाँ, बीज और चारा बैंक तथा कस्टम हायरिंग केंद्र, जो किसानों को समय पर कृषि कार्य करने में मदद करते हैं। केवीके किसानों को विषम मौसम स्थितियों से निपटने के लिए कृषि-सलाह जारी करने में भी शामिल हैं। इसके अलावा, आईसीएआर संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय किसानों को आगे प्रसार के लिए जलवायु लचीलापन कृषि पर ज्ञान को उन्नत करने के लिए केवीके के विषय विशेषज्ञों को तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं।