सुरक्षा

रानीखेत में भारतीय सेना की संगोष्ठी : “साझा हिमालयी विरासत” पर गहन विमर्श

रानीखेत, 3 सितम्बर । भारतीय सेना की सेंट्रल कमान ने बुधवार को रानीखेत स्थित कुमाऊं रेजिमेंटल सेंटर में एक दिवसीय विशेष संगोष्ठी “Interwoven Roots: Shared Himalayan Heritage” (साझा हिमालयी विरासत) का आयोजन किया। इस अवसर पर सेना के वरिष्ठ अधिकारी, विद्वान, राजनयिक और सुरक्षा विशेषज्ञ बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

साझा संस्कृति और सुरक्षा पर चर्चा

कार्यक्रम का उद्देश्य हिमालयी क्षेत्रों की साझा संस्कृति और सभ्यता को समझना तथा यह देखना था कि इसका सीमावर्ती इलाकों की सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है। वक्ताओं ने बताया कि भारत और उसके पर्वतीय पड़ोसियों का रिश्ता केवल सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सदियों पुरानी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक साझेदारी पर आधारित है। पुराने तीर्थ मार्गों, हिमालय पार व्यापार, नदियों और परंपराओं ने हमेशा इन क्षेत्रों को जोड़े रखा है। आज जब सीमाओं की निगरानी और सहयोग की बात होती है, तब इस सांस्कृतिक समझ की अहमियत और भी बढ़ जाती है।

सैन्य दृष्टिकोण

सेंट्रल कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता ने कहा कि—
“रणनीति तैयार करते समय सांस्कृतिक और सभ्यतागत समझ भी उतनी ही ज़रूरी है। सरहदों की रक्षा केवल फौजी ताकत से नहीं, बल्कि वहां की परंपराओं और पहचान को बचाए रखने से भी होती है।

विशेषज्ञों के विचार

संगोष्ठी में डॉ. माया जोशी, मेजर जनरल (सेनि) एस.बी. अस्थाना, प्रो. अनिल जोशी, डॉ. मेधा बिष्ट सहित अनेक विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। चर्चा के प्रमुख विषयों में बौद्ध संस्कृति, पारवर्ती व्यापार, जल कूटनीति और सांस्कृतिक विरासत पर फोटो प्रस्तुतियाँ शामिल थीं। कार्यक्रम का संचालन ब्रिगेडियर (सेनि) रूमेल डहिया ने किया।

समापन

समापन सत्र में लेफ्टिनेंट जनरल डी.जी. मिश्रा, जीओसी उत्तर भारत क्षेत्र, ने कहा कि—
“देश की सीमाओं की सुरक्षा केवल हथियारों से नहीं, बल्कि सोच और समझ से भी होती है।”
उन्होंने वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए इसे सांस्कृतिक और रणनीतिक सोच का उत्कृष्ट संगम बताया।

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