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ऑपरेशन मेघदूत : दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर भारत की फतह 

In the highest battlefield in the world, known for its extreme climatic conditions, IAF helicopters form the lifeline and the sole link of Indian troops with the outside world, playing a critical role in continuing the four decade old military operation; responding to emergencies, supplying essential logistics and evacuating the sick and wounded from the 78 km long glacier. Flying in such ruthless terrain, records of human endurance, flying and technical proficiency are being set by the IAF nearly every day. The  Meghdoot was launched on 13 April 1984, when the Indian Army and Indian Air Force (IAF) advanced to the Siachen glacier to secure the heights dominating the Northern Ladakh region. The operation involved the airlifting of Indian Army soldiers by the IAF and dropping them on the glacial peaks. Although the operation began in 1984, IAF helicopters were already operating in the Siachen Glacier since 1978, flying the Chetak helicopters which was the first IAF helicopter to land in the Glacier in  October 1978.

 

 

-By- Usha Rawat

दुनिया के इस सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में, जो अपनी अत्यधिक कठिन जलवायु परिस्थितियों के लिए जाना जाता है, वहां पर भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर जीवन रेखा और बाहरी दुनिया के साथ भारतीय सैनिकों को जोड़ने की एकमात्र कड़ी हैं, जो चार दशक पुराने सैन्य अभियान को जारी रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं; इनके प्रमुख कार्य आपात स्थिति में कार्रवाई करना, आवश्यक रसद की आपूर्ति करना तथा 78 किलोमीटर लंबे ग्लेशियर से बीमारों एवं घायलों को बाहर निकालना है। भारतीय वायुसेना द्वारा ऐसे क्रूर इलाके में उड़ान भरते हुए लगभग हर दिन मानव सहनशक्ति, उड़ान तथा तकनीकी दक्षता के रिकॉर्ड स्थापित किए जा रहे हैं।

 

ऑपरेशन मेघदूत को 13 अप्रैल, 1984 को उस समय शुरू किया गया था, जब भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना (आईएएफ) उत्तरी लद्दाख क्षेत्र के ऊंचाई वाले स्थानों को सुरक्षित बनाने के लिए सियाचिन ग्लेशियर की ओर बढ़ी थीं। इस महत्वपूर्ण कार्रवाई में भारतीय वायुसेना द्वारा अपने विमानों के माध्यम से भारतीय थल सेना के जवानों को एयरलिफ्ट करना और उन्हें हिमनद वाली चोटियों तक ले जाना शामिल था। हालांकि औपचारिक तौर पर यह ऑपरेशन 1984 में शुरू हुआ था, लेकिन भारतीय वायु सेना के कई हेलीकॉप्टर 1978 से ही सियाचिन ग्लेशियर में अपनी सेवाएं दे रहे थे। यहां पर चेतक हेलीकॉप्टर उड़ाए जा रहे थे और यह अक्टूबर 1978 में इस ग्लेशियर में उतरने वाला भारतीय वायुसेना का पहला हेलीकॉप्टर था।

वर्ष 1984 तक आते-आते, लद्दाख के अज्ञात क्षेत्र पर दावे संबंधी पाकिस्तान की तथ्यात्मक हेरफेर वाली आक्रामकता और सियाचिन में विदेशी पर्वतारोहण अभियानों को अनुमति देने की कवायद चिंता का कारण बन रहे थे। भारत ने इस क्षेत्र में चलने वाली पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाई के बारे में खुफिया जानकारी मिलने के बाद सियाचिन पर अपने दावे को वैध बनाने के पाकिस्तान के कुप्रयासों को विफल करने का फैसला किया। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भारतीय सेना ने अपने सैनिकों की तैनाती के साथ ही सियाचिन पर रणनीतिक महत्व वाले ऊंचे स्थानों को सुरक्षित करने के लिए ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया। इस महत्वपूर्ण प्रयास में भारतीय वायुसेना ने एक शानदार भूमिका निभाते हुए अपनी जिम्मेदारी निभाई। उसके सामरिक और रणनीतिक महत्व के वायुयानों जैसे एएन-12एस, एएन-32एस एवं आईएल-76एस ने आवश्यक रसद व सामान तथा सैनिकों को गंतव्य तक पहुंचाया और उच्च ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्रों में हवाई आपूर्ति सुनिश्चित की। इसके बाद वहां से एमआई-17, एमआई-8, चेतक और चीता हेलीकॉप्टरों ने लोगों तथा जरूरी सामग्रियों को ग्लेशियर की अत्यधिक ऊंचाई तक पहुंचाया, जो हेलीकॉप्टर निर्माताओं द्वारा निर्धारित की गई सीमा से भी कहीं अधिक था। इस तरह से जल्द ही, लगभग 300 सैनिक ग्लेशियर की रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों व दर्रों पर तैनात हो गए। जब तक पाकिस्तानी सेना ने अपने सैनिकों को आगे बढ़ाकर इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की, तब तक भारतीय सेना ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इन पर्वत चोटियों और दर्रों पर अपना कब्जा जमा लिया था, जिससे उसे सामरिक लाभ प्राप्त हुआ।

इस उजाड़ और एकाकी ग्लेशियर पर अप्रैल 1984 से अपना सैन्य प्रभुत्व बनाए रखने के लिए भारतीय थल सेना की लड़ाई में भारतीय वायुसेना ने बहुमूल्य सहयोग दिया। यहां तापमान और ऊंचाई के चरम पर भारतीय वायुसेना का अविश्वसनीय प्रदर्शन दृढ़ता एवं कौशल की एक अतुलनीय गाथा बना हुआ है। हालांकि प्रारंभिक अभियानों में वहां केवल सैनिकों तथा आवश्यक सामग्रियों को ले जाने वाले परिवहन एवं हेलीकॉप्टर विमानों का उपयोग किया जाता था, लेकिन भारतीय वायुसेना ने समय बीतने के साथ ही अपने लड़ाकू विमानों की तैनाती के अलावा इस क्षेत्र में अपनी भूमिका और उपस्थिति का विस्तार किया है। भारतीय वायुसेना के हंटर विमान ने लेह में अधिकतम ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्र से अपना लड़ाकू अभियान तब शुरू किया था, जब सितंबर 1984 में नंबर 27 स्क्वाड्रन से हंटर्स की एक टुकड़ी ने ऑपरेशन शुरू किया। अगले कुछ वर्षों में, हंटर्स ने लेह से कुल 700 से अधिक उड़ानें भरीं। जैसे-जैसे बड़ी संख्या में सैनिक बढ़ते गए तो ग्लेशियर के ऊपर से ही वायु सेना द्वारा नकली हमले किए जाने लगे, जिसने ग्लेशियर पर तैनात भारतीय सैनिकों के लिए अंतिम मनोबल बढ़ाने का काम किया और क्षेत्र में किसी भी दुस्साहस से बचने के लिए प्रतिद्वंद्वी को एक सख्त संदेश भेजा। बाद में, लेह के दक्षिण में कार त्सो में अधिकतम ऊंचाई वाली फायरिंग रेंज में वास्तविक आयुध उड़ानें भी भरी गईं। इसके बाद लड़ाकू विमानों की उड़ान के लिए जमीनी बुनियादी ढांचा अधिक अनुकूल होने के साथ ही मिग-23 और मिग-29 ने भी लेह तथा थोइस से अपना परिचालन शुरू कर दिया। भारतीय वायुसेना ने साल 2009 में ग्लेशियर में अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए चीतल हेलीकॉप्टरों को भी शामिल किया। चीतल एक चीता हेलीकॉप्टर है, जिसे बेहतर विश्वसनीयता और अधिक से अधिक ऊंचाई पर भार ले जाने की क्षमता वाले टीएम 333 2एम2 इंजन के साथ फिर से तैयार किया गया है। अभी सबसे हालिया गतिविधि में, 20 अगस्त 2013 को भारतीय वायुसेना द्वारा अपनी क्षमताओं के एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन में अपने नवीनतम अधिग्रहणों में से एक लॉकहीड मार्टिन सी-130जे सुपर हरक्यूलिस चार इंजन वाले परिवहन विमान को लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) पर उतारा था। वर्तमान समय में राफेल, सुखोई-30एमकेआई, चिनूक, अपाचे, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) एमके III और एमके IV, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (एलसीएच) प्रचंड, मिग-29, मिराज -2000, सी-17, सी-130 जे, आईएल-76 तथा एएन-32 ऑपरेशन मेघदूत के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ( Credit :  Input -PIB)

 

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