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वैज्ञानिकों ने किया खुलासा : भीमबेटका में प्राचीनतम जंतुओं के जीवाश्म नहीं बल्कि मधुमक्खी के छत्ते थे

Two independent groups of scientists—one from India and another from the United States—have found that ‘an iconic fossil of a 550 million-year-old early life form’ found at the world heritage site Bhimbetka, about 50kms from Bhopal, is actually a ‘leftover impression of a fallen/decayed beehive’

 

 

-uttarakhandhimalaya.in-

भारतीय वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय डिकिनसोनिया जीवाश्म जिसे मूल रूप से संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूएनईएससीओ–यूनेस्को) के विश्व धरोहर स्थल भीमबेटका गुफा आश्रय में से 2021 में किए गए एक शोध के बाद प्राप्त हुआ  बताया गया था, वह वास्तव में वास्तविक न होकर  टूट कर गिरे हुए एक मधुमक्खी के छत्ते की छाप थी ।

इस पृथ्वी के एक अरब से अधिक वर्षों के इतिहास का एक संग्रह- विंध्य सुपरग्रुप, विश्व की  सबसे बड़े बेसिन है और कई ऐसे जीवाश्मों की खोजों का स्थल है जिनसे यह ज्ञात होता है कि इस पृथ्वी पर जीवन सबसे पहले कैसे उत्पन्न हुआ और फिर उसमें विविधता आई।

अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा इस क्षेत्र में एक एडियाकरन जीवाश्म की सूचना दिए जाने के बाद ने बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान (बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेलियोसाइंसेज- बीएसआईपी) में एडियाकरन जीवाश्म विज्ञानियों के एक समूह को एक खोज पर विचार करने और ऐसे ही अन्य जीवाश्मों का पता लगाने के लिए प्रेरित किया।

ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि एडियाकरन जीवाश्मों को लगभग 55 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी पर अस्तित्व में आने वाले प्रारंभिक जन्तुओं के रूप में माना गया थाI इसलिए विकास प्रक्रिया पर कार्य कर रहे जीवविज्ञानियों और जीवाश्म विज्ञानियों को इस बारे में बहुत उत्सुकता हुई। प्रीकैम्ब्रियन युग (अर्थात पृथ्वी के इतिहास के 400-53.8 करोड़ वर्ष) के जीवाश्मों की खोजों ने पृथ्वी पर जीवन में हुए विकासवादी परिवर्तनों के बारे में जानने का दावा किया है। पृथ्वी पर जीवन के विकास की हमारी समझ पर उनके प्रभाव के कारण, इनमें से कई खोजों को अब भी  अनुसरण किया जाता है और कुछ शोधकर्ता उन पर आगे शोध कार्य करते रहते है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान (बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेलियोसाइंसेज- बीएसआईपी) के एक शोधार्थी समूह ने इस खोज के स्थान की यात्रा की और यूनेस्को से 2021 में विश्व विरासत स्थल भीमबेटका गुफा आश्रय से अधिसूचित किए गए एक महत्वपूर्ण एडियाकरन जीवाश्म डिकिनसोनिया टेनुइस की जांच की। विंध्य बेसिन के मैहर बलुआ पत्थर (सैंड स्टोन) से कथित जीवाश्म की जैविक जनन प्रक्रिया (बायोजेनिसिटी) अर्थात उसकी रासायनिक एवं/अथवा  रूपात्मक हस्ताक्षररित  चट्टानों, खनिजों, एवं बर्फ में अथवा धूल के ऐसे कण जो विशिष्ट रूप से कालाती हो चुके या वर्तमान जीवों द्वारा निर्मित होते हैं, में स्थानिक पैमानों की एक सीमा पर संरक्षित हो चुके अवशेषों का पता लगाने के लिए इस क्षेत्र की फिर से जांच की गई।  जर्नल ऑफ द जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक क्षेत्रीय (फील्ड) अवलोकन में पृथ्वी की सतह से बाहर निकली चट्टानों की विशेषताओं (आउटक्रॉप फीचर्स) और उनके विस्तृत प्रयोगशाला विश्लेषण (एक्सआरडी, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी) ने इस जीवाश्म की जैविक जनन प्रक्रिया (बायोजेनिसिटी) और उसके समकालीन समय में संलग्न चट्टान के रूप में गठित रचना (सिनजेनसिटी) का समर्थन नहीं किया और उसको एक टूट कर गिरे हुए मधुमक्खी के छत्ते के अवशेष चिन्ह के रूप में निरूपित  किया है। ऐसे में यह अध्ययन प्रसिद्ध अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा दी गई व्याख्या का खंडन करता है।

जिन शोधकर्ताओं ने यह जीवाश्म मिलने का दावा किए गए स्थान का एक क्षेत्र अध्ययन किया था, उन्होंने अपनी जांच में यह पाया कि अन्य जीवाश्मों के विपरीत, जो हमेशा रॉक स्ट्रैटा के पटल तल (बेडिंग प्लेन) पर संरक्षित होते हैं, यह नमूना पूरी तरह से बेडिंग प्लेन पर संरक्षित नहीं था। इसका एक भाग बेडिंग प्लेन पर और दूसरा भाग मैहर बलुआ पत्थर (सैंड स्टोन) आउटक्रॉप के बाहरी भाग के आड़े-तिरछे कटे हुए फलक वाले भाग की सतह पर संरक्षित पाया गया था। एक ही पटल तल (बेडिंग प्लेन) में ताजा और सड़े हुए मधुमक्खी के छत्ते भी देखे गए। वहां इस छत्ते के साथ ही एपिस डोरसाटा मधुमक्खियों का एक बहुत बड़ा एवं जीवंत  मधुमक्खी का छत्ता भी पाया गया। उसमें मधुकोश (ह्नीकाम्ब) की संरचना भी देखी गई। इस साक्ष्य से पता चलता है कि वर्णित जीवाश्म को डिकिन्सोनिया के रूप में गलत समझ लिया  गया था।

इसके अलावा, लेजर रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और एक्स-रे विवर्तन (डीफ्रेक्शन) अर्थात (एक्सआरडी) ने छत्ते बनाने में लगी मधुमक्खियों की गतिविधि के कारण प्राप्त सामग्री में शहद और मोम की उपस्थिति की पुष्टि की है।

इस तरह की गलत व्याख्याएं बहुत कम मिलती हैं, अब विकास प्रक्रिया के परिशुद्ध अवशिष्ट चिन्हों का पता लगाने और भारतीय भूगर्भ विज्ञान के सही अध्ययन के लिए उन्हें पर्याप्त  परिश्रम के साथ सही रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

प्रकाशन लिंक : https://doi.org/10.1007/s12594-023-2312-2

 

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चित्र  3. (ए) रिटालैक  एवं अन्य (ईटी एल) द्वारा प्रकाशित (?) मार्च 2020 में खींचा गया डिकिनसोनिया का चित्र (2021), (बी) 10 अप्रैल 2022 को वर्तमान लेखकों द्वारा  लिए गए चित्र  (बाईं ओर से मोम का क्षरण); (सी) 22 अगस्त 2022 को उसी मधुमक्खी के छत्ते की फिर से जांच की गई और फिर से छायांकन किया गया  (देखें अतिरिक्त भाग को हटा  दिया गया है); (डी) रिटालैक ईटी एल द्वारा ‘डिकिन्सोनिया’ का पुनर्निर्माण। (2021); (ई) जो वर्तमान लेखकों द्वारा बनाए गए रेखांकन  (स्केच)  से मेल नहीं खाता; (एफ) एक केंद्रीय धुरी के साथ अलग पूर्वकाल और पीछे के छोरों के साथ ‘डिकिन्सोनिया’ का रैखिक चित्रण (कार्टून)  (जिसे इवांत्सोव और ज़करेवस्काया, के बाद 2022 में फिर से तैयार किया गया)।

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ए) प्रेक्षागृह (ऑडिटोरियम) गुफा का प्रवेश बिंदु: पीला बिंदीदार घेरा (सर्किल) पटल  के भ्रंश तल (फ्रैक्चर प्लेन) में संरक्षित (?) डिकिन्सोनिया ‘को दर्शाता है। पीला तीर गुफा के बायीं और दायीं ओर के उन पटल तलों  को दर्शाता है, जहां संस्तर के स्पर्शरेखीय तल (टेंजेंशियल प्लेन) पर (?)जीवाश्म संरक्षित है। यह भी देखें कोण >90° है; बी) (?)डिकिन्सोनिया को आंशिक रूप से बेडिंग प्लेन पर संरक्षित किया गया है और उसका एक हिस्सा मैहर सैंडस्टोन आउटक्रॉप के आड़े-तिरछे  कटे फलक (ट्रांसवर्सली कट फेस) पर अभिलिखित  किया गया है (बी 1) में एक निकटवर्ती (क्लोज-अप)  दृश्य देखें); सी एक ही सतह पर ताजे  और सड़ चुके  दोनों  प्रकार के मधुमक्खियों के छत्ते (सड़े हुए मधुमक्खी के छत्ते का क्लोज-अप दृश्य)  (?) सी  1 में डिकिनसोनिया के समान हैं ;( डी )  मधुमक्खी के छत्ते (बीहाइव) से जुड़े हुए असंख्य एपिस डोरसाटा मधुमक्खियों का विशाल एवं जीवंत  सक्रिय छत्ता ( यहां  सफेद  तीर छत्ते के एक हिस्से का   क्षय दिखाता है)); ई ) एक ही मधुमक्खी के छत्ते में ताजा और सड़े हुए दोनों भाग (अलग-अलग बचे हुए भाग  का चिन्ह  (?) डिकिन्सोनिया के समान है: मधुकोष (हनीकोम्ब)  संरचना को क्लोज-अप दृश्य में भी  देखें); एफ,जी,एच) मोम के साथ बचे हुए अवशेषों  के साथ विभिन्न आकृतियों में सड़े हुए मधुमक्खी के छत्ते एक आदर्श उदाहरण हैं।

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(ए) मोम और संबंधित वर्णक्रम (स्पेक्ट्रा) की सान्द्रता (कन्सेंट्रेशन) को दर्शाती मोमसामग्री का माइक्रो-रमन स्पेक्ट्रा। नमूना संख्या बीएसआईपी 42249 है; (बी) मधुकोशीय मोम के एक्स-रे विवर्तन अभिलेखों (डिफ्रेक्टोग्राम्स) में हेक्साडेकेनोइक एसिड (पामिटिक एसिड) मिला है।

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