संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारत की विरासत: नेतृत्व, प्रतिबद्धता और बलिदान
India’s role in UN peacekeeping reflects its deep commitment to global peace, security, and multilateralism. From its early involvement in the Korean War to its ongoing deployments in conflict zones worldwide, India has consistently upheld the principles of the UN Charter. As one of the largest troop-contributing nations, India’s contributions go beyond numbers—it provides critical services, leadership, and a strong commitment to gender parity in peacekeeping. Rooted in its foreign policy and cultural values, India’s approach to peacekeeping is guided by its belief in nonviolence, dialogue, and cooperation. Indian peacekeepers have served with distinction, from the battlefields of Korea to the shores of Liberia, earning global respect for their professionalism, courage, and dedication. However, peacekeeping is not without challenges. Indian troops operate in volatile environments, risking their lives to protect civilians and uphold peace. The sacrifices of nearly 180 fallen Indian peacekeepers stand as a testament to this profound commitment. Beyond deployments, India actively strengthens UN missions through training, capacity-building, and technological support. As a pioneer in deploying women peacekeepers, India champions a more inclusive and effective approach to conflict resolution. By fostering cooperation and empowering communities, India continues to illuminate the path toward a more peaceful and secure world, inspiring the global community with its unwavering dedication.
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की स्थापना 1945 में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के प्राथमिक लक्ष्य के साथ की गई थी। अपनी स्थापना के बाद से, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना देशों को संघर्ष से शांति की ओर चुनौतीपूर्ण मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद करने के लिए एक मूल्यवान उपकरण बन गया है। भारत वैश्विक शांति और सुरक्षा में एक प्रमुख योगदानकर्ता रहा है, जिसके 2,90,000 से अधिक शांति सैनिक 50 से अधिक संयुक्त राष्ट्र मिशनों में सेवा दे रहे हैं। वर्तमान में, 5,000 से अधिक भारतीय शांति सैनिक 9 सक्रिय मिशनों में तैनात हैं, जो अंतरराष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने के लिए चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को ब्लू हेलमेट के नाम से जाना जाता है, इनका नाम संयुक्त राष्ट्र के झंडे के हल्के नीले रंग से लिया गया है। 1947 में, संयुक्त राष्ट्र ने इस रंग पर फैसला किया, क्योंकि नीला रंग शांति का प्रतीक है, जबकि लाल रंग को अक्सर युद्ध से जोड़ा जाता है। यह हल्का नीला रंग तब से संयुक्त राष्ट्र का प्रतीक बन गया है।
2023 में, भारत को संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च शांति सम्मान, डाग हैमरशॉल्ड पदक मिला, जो भारतीय शांति सैनिकों शिशुपाल सिंह और सांवला राम विश्नोई और नागरिक संयुक्त राष्ट्र कार्यकर्ता शबर ताहिर अली को कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में उनके बलिदान के लिए मरणोपरांत प्रदान किया गया।
24 से 25 फरवरी 2025 तक, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र (सीयूएनपीके) ने नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में ‘वैश्विक दक्षिण महिला शांति सैनिक सम्मेलन’ की मेजबानी की। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में 35 देशों की महिला शांति सैनिकों ने शांति स्थापना अभियानों में महिलाओं की बदलती भूमिका और उनकी भागीदारी बढ़ाने की रणनीतियों पर चर्चा की। सम्मेलन में लैंगिक समानता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और समावेशी और प्रभावी शांति स्थापना अभियानों को बढ़ावा देने में इसके नेतृत्व को रेखांकित किया गया।
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना क्या है
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक प्रमुख तंत्र है। यह संघर्ष की रोकथाम, शांति स्थापना, शांति प्रवर्तन और शांति निर्माण सहित संयुक्त राष्ट्र के अन्य प्रयासों के साथ काम करता है।
इसमें क्या शामिल है
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन युद्ध विराम और शांति समझौतों का समर्थन करने के लिए तैनात किए जाते हैं। हालांकि, आधुनिक शांति स्थापना का काम एक बहुआयामी प्रयास के रूप में विकसित हुआ है, जो सैन्य उपस्थिति से परे है। इसमें शामिल हैं:
- राजनीतिक प्रक्रियाओं को सुगम बनाना: वार्ताओं और शासन संबंधी ढांचों को समर्थना देना।
- नागरिकों की सुरक्षा: संघर्ष क्षेत्रों में कमजोर आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- निरस्त्रीकरण, सैन्य वापसी और पुनः एकीकरण (डीडीआर): पूर्व लड़ाकों को नागरिक जीवन जीने में सहायता प्रदान करना।
- चुनाव सहायता: स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के आयोजन एवं देखरेख में सहायता करना।
- मानवाधिकार और कानून का शासन: न्याय, जवाबदेही और शासन सुधार को बढ़ावा देना।
शांति स्थापना की भूमिका
वर्तमान समय में शांति स्थापना अक्सर शांति स्थापना और शांति निर्माण के साथ जुड़ी होती है और इस वजह से संघर्षों को संबोधित करने में लचीलेपन वाले रवैए की आवश्यकता होती है। जबकि मुख्य रूप से शांति बनाए रखने के लिए तैनात किए गए शांति रक्षक संघर्ष समाधान और शुरुआती रिकवरी प्रयासों में भी सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। कुछ मामलों में, उन्हें नागरिकों की रक्षा करने, मैंडेट लागू करने और सुरक्षा बनाए रखने के लिए बल का उपयोग करने का अधिकार है, जहां मेजबान देश ऐसा करने में असमर्थ है।
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना की शुरुआत 1948 में पश्चिम एशिया में युद्ध विराम की निगरानी के लिए संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम पर्यवेक्षण संगठन (यूएनटीएसओ) की स्थापना के साथ हुई थी। शुरू में, शांति स्थापना मिशन निहत्थे थे तथा निरीक्षण और मध्यस्थता पर केंद्रित थे। शीत युद्ध के दौरान, भू-राजनीतिक तनावों के कारण मिशन सीमित रहे, लेकिन 1990 के दशक में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद शांति स्थापना अभियानों की संख्या और दायरे दोनों में महत्वपूर्ण विस्तार हुआ। संयुक्त राष्ट्र ने बहुआयामी मिशनों की तैनाती शुरू की, जिसमें सैन्य, राजनीतिक और मानवीय प्रयासों को शामिल किया गया, नागरिक संघर्षों को संबोधित किया गया, शासन का समर्थन किया गया और मानवाधिकारों की रक्षा की गई।
1967 में स्वेज नहर पर संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम पर्यवेक्षण संगठन (यूएनटीएसओ) के साथ काम करते सैन्य पर्यवेक्षक
समय के साथ, शांति स्थापना में राष्ट्र निर्माण, चुनावी सहायता और हिंसक उग्रवाद का मुकाबला करने जैसे जटिल कार्य शामिल हो गए। रवांडा और बोस्निया में मिशन विफलताओं जैसी चुनौतियों ने सुधारों को प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप ब्राहिमी रिपोर्ट (2000) सामने आई, जिसमें मजबूत मैंडेट और बेहतर संसाधनों पर बल दिया गया। सुरक्षा की जिम्मेदारी (आर2पी) संबंधी सिद्धांत ने हस्तक्षेपों को और आकार दिया, जबकि आधुनिक मिशन नागरिक सुरक्षा, लैंगिक समावेशन और क्षेत्रीय भागीदारी पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। वर्तमान समय में, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना उभरते वैश्विक सुरक्षा खतरों के साथ पारंपरिक भूमिकाओं को संतुलित करते हुए अनुकूलन करना जारी रखे हुए है।
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारत का योगदान
भारत का संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में सेवा करने का एक लंबा और प्रतिष्ठित इतिहास है, जो 1953 में कोरिया में संयुक्त राष्ट्र अभियान में इसकी भागीदारी से शुरू होता है। अहिंसा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता, जो इसके दर्शन में निहित है और जिसका महात्मा गांधी ने समर्थन किया था, वैश्विक शांति को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र के दृष्टिकोण के अनुरूप है। यह प्रतिबद्धता भारत के ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ (पूरा विश्व मेरा परिवार है) के प्राचीन सिद्धांत से आती है, जो मानवता के परस्पर संबंध और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के महत्व पर जोर देती है।
1950 के दशक से, भारत ने दुनिया भर में 50 से अधिक मिशनों में 290,000 से अधिक शांति सैनिकों को भेजा है, जिससे यह संयुक्त राष्ट्र शांति प्रयासों में सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया है। वर्तमान में, 5,000 से अधिक भारतीय सैनिक ग्यारह सक्रिय मिशनों में से नौ में सेवारत हैं, ये अक्सर खतरनाक और शत्रुतापूर्ण क्षेत्रों में होते हैं, जो वैश्विक शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए समर्पित होते हैं। इस महान कार्य में, लगभग 180 भारतीय शांति सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान दिया है – ऐसे नायक जिनकी वीरता और प्रतिबद्धता को हमेशा याद रखा जाएगा। |
29 मई 2024 तक नौ संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन, जिनमें भारतीय सशस्त्र बल शामिल थे:
मिशन का नाम | जगह | भारत का योगदान |
संयुक्त राष्ट्र डिसइंगेजमेंट पर्यवेक्षक बल (यूएनडीओएफ) | गोलान हाइट्स | रसद सुरक्षा के लिए 188 कर्मियों वाली रसद बटालियन |
लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (यूएनआईएफआईएल) | लेबनान | 762 कार्मियों और 18 स्टाफ अधिकारियों वाला इन्फैंट्री बटालियन समूह |
संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम पर्यवेक्षण संगठन (यूएनटीएसओ) | पश्चिम एशिया | सैन्य पर्यवेक्षक और सहायक स्टाफ |
साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (यूएनएफआईसीवाईपी) | साइप्रस | अधिकारियों की स्टाफ और सैन्य पर्यवेक्षक के रूप में तैनाती |
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन (एमओएनयूएससीओ) | कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य | इन्फैंट्री बटालियन, चिकित्सा इकाइयां और सहायक स्टाफ |
दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएमआईएसएस) | दक्षिण सूडान | इन्फैंट्री बटालियन, चिकित्सा कर्मी, और अभियांत्रिकी इकाइयां |
अबेई के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतरिम सुरक्षा बल (यूएनआईएफएसए) | अबेई | सैन्य पर्यवेक्षक और स्टाफ अधिकारी |
मध्य अफ्रीकी गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी एकीकृत स्थिरीकरण मिशन (यूआईएनयूएससीए) | मध्य अफ्रीकी गणराज्य | गठित पुलिस इकाइयां (एफपीयू) और सैन्य पर्यवेक्षक |
पश्चिमी सहारा में जनमत संग्रह के लिए संयुक्त राष्ट्र मिशन (एमआईएनयूआरएसओ) | पश्चिमी सहारा | सैन्य पर्यवेक्षकों की तैनाती |
1953 में कोरिया जाते हुए भारत और अमेरिका के पैराट्रूपर्स
भारत वैश्विक दक्षिण राष्ट्रों को उनकी शांति स्थापना क्षमताओं को मजबूत करने में मदद करने के लिए समर्पित है। संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र के जरिए, भारत महिला शांति सैनिकों के लिए विशेष पाठ्यक्रमों सहित प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम प्रदान करना जारी रखे हुए है, जैसा कि 2023 में आसियान देशों के लिए किया गया था। शांति स्थापना भारत की विदेश नीति के मूल में है, जो संवाद, कूटनीति और वैश्विक सहयोग द्वारा संचालित है। यह प्रतिबद्धता दक्षिण-दक्षिण सहयोग के महत्व और विकासशील दुनिया में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने में एक नेता के रूप में इसकी भूमिका में भारत के विश्वास को दर्शाती है। भारतीय शांति सैनिकों ने विविध और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम किया है और विभिन्न क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
निम्नलिखित तालिका में कुछ प्रमुख संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों का सारांश दिया गया है, जिनमें भारत शामिल रहा है :
मिशन का नाम | जगह | वर्ष | भारत का योगदान | |
मध्य अफ्रीकी गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (एमआईएनयूएससीए) | मध्य अफ्रीकी गणराज्य | 2014-वर्तमान | गठित पुलिस इकाइयां (एफपीयू) और सैन्य पर्यवेक्षक | |
दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएमआईएसएस) | दक्षिण सूडान | 2012 वर्तमान | इन्फैंट्री बटालियन, चिकित्सा कर्मी, और अभियांत्रिकी इकाइयां | |
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन (एमओएनयूएससीओ) | डी.आर. कांगो | 2010-वर्तमान | इन्फैंट्री बटालियन, चिकित्सा इकाइयां और सहायक स्टाफ | |
गोलान हाइट्स में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनडीओएफ) | गोलान हाइट्स | 2006 से | रसद सुरक्षा के लिए 188 कर्मियों वाली रसद बटालियन | |
सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएमआईएस/यूएनएमआईएसएस) | सूडान/दक्षिण सूडान | 2005-अब तक | बटालियन समूह, इंजीनियर कंपनी, सिग्नल कंपनी, अस्पताल, सैन्य पर्यवेक्षक (एमआईएलओबी) और स्टाफ अधिकारी (एसओ) | |
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र संगठन मिशन (एमओएनयूसी/एमओएनयूएससीओ) | डी.आर. कांगो | 2005-अब तक | इन्फैंट्री ब्रिगेड ग्रुप (आरडीबी सहित तीन बटालियन), अस्पताल, एमआईएलओबी, एसओ और दो एफपीयू | |
लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (यूएनआईएफआईएल) | लेबनान | 1998-वर्तमान | 762 कार्मियों और 18 स्टाफ अधिकारियों वाला इन्फैंट्री बटालियन समूह | |
लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएमआईएल) | लाइबेरिया | 2007-16 | पुरुष और महिला दोनों एफपीयू तैनात किए गए | |
इथियोपिया और इरिट्रिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएमईई) | इथियोपिया-इरिट्रिया | 2006-08 | एक इन्फैंट्री बटालियन समूह, एक इंजीनियर कंपनी और एक फोर्स रिजर्व कंपनी का योगदान दिया | |
हैती में संयुक्त राष्ट्र स्थिरीकरण मिशन (एमआईएनयूएसटीएएच) | हैती | 2004-17 | विभिन्न पुलिस बलों से गठित पुलिस इकाइयों (एफपीयू) का योगदान दिया गया | |
सिएरा लियोन में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएएमएसआईएल) | सेरा लिओन | 1999-2001 | इन्फैंट्री बटालियन, इंजीनियर कंपनियां और अन्य सपोर्ट एलिमेंट्स की तैनाती की गई | |
संयुक्त राष्ट्र अंगोला सत्यापन मिशन (यूएनएवीईएम) | अंगोला | 1989-99 | सैन्य पर्यवेक्षक और स्टाफ अधिकारी उपलब्ध कराए गए | |
रवांडा के लिए संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमआईआर) | रवांडा | 1994-96 | चिकित्सा कर्मी और रसद सहायता प्रदान की गई | |
सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र अभियान (यूएनओएसओएम II) | सोमालिया | 1993-94 | एक सेना ब्रिगेड समूह और चार नौसेना युद्धपोतों को तैनात किया गया | |
कांगो में संयुक्त राष्ट्र अभियान (ओएनयूसी) | कांगो | 1960-64 | अलगाववाद का मुकाबला करने और देश को पुनः एकीकृत करने के लिए दो ब्रिगेड की तैनाती की गई | |
संयुक्त राष्ट्र आपातकालीन बल (यूएनईएफ I) | पश्चिम एशिया | 1956-67 | एक इन्फैंट्री बटालियन और अन्य सपोर्ट एलिमेंट्स के लिए योगदान दिया | |
इंडो-चाइना का नियंत्रण | इंडो-चाइना (वियतनाम, कंबोडिया, लाओस) | 1954-70 | युद्ध विराम की निगरानी और युद्धबंदियों के प्रत्यावर्तन के लिए एक इन्फैंट्री बटालियन और सहायक स्टाफ प्रदान किया गया | |
कोरिया में संयुक्त राष्ट्र अभियान | कोरिया | 1950-54 | संयुक्त राष्ट्र बलों को चिकित्सा कवर प्रदान किया, तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग की अध्यक्षता की | |
भारत ने संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख शांति स्थापना अभियानों में स्टाफ ऑफिसर, मिशन के विशेषज्ञ, सैन्य पर्यवेक्षक और स्वतंत्र पुलिस अधिकारी तैनात किए हैं, जिनमें कोट डी आइवर में संयुक्त राष्ट्र अभियान (यूएनओसीआई), अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र एसोसिएशन मिशन (यूएनएएमए), साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (एफआईसीवाईपी), संयुक्त राष्ट्र संघर्ष विराम पर्यवेक्षण संगठन (यूएनटीएसओ), पश्चिमी सहारा में जनमत संग्रह के लिए संयुक्त राष्ट्र मिशन (एमआईएनयूआरएसओ) और अबेई के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतरिम सुरक्षा बल (यूएनआईएसएफए) शामिल हैं। ये तैनातियां वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भारत की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
भारत क्षमता निर्माण प्रयासों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र, मेजबान देशों और साझेदार देशों को मजबूत बनाने में अग्रणी रहा है। संयुक्त राष्ट्र की पहलों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध, भारत ने शांति सेना में लैंगिक समानता को बढ़ावा देते हुए अत्यधिक अनुकूलनीय शांति सेना इकाइयां, उन्नत प्रशिक्षण, रसद सहायता और प्रौद्योगिक उन्नयन प्रदान किए हैं। तैनाती से परे, भारत प्रशिक्षण, बुनियादी ढांचा विकास और नागरिक-सैन्य समन्वय (सीआईएमआईसी) कार्यक्रमों की पेशकश करके मेजबान राष्ट्रों की सक्रिय रूप से मदद करता है। उल्लेखनीय रूप से, भारतीय सेना की पशु चिकित्सा टुकड़ियों ने विभिन्न संयुक्त राष्ट्र मिशनों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है, जो दुनिया भर में मानवीय और शांति स्थापना प्रयासों के लिए भारत के समर्पण को दर्शाता है।
संयुक्त राष्ट्र मिशनों में भारतीय टुकड़ियों की कार्यकुशलता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, भारतीय सेना ने अत्याधुनिक, स्वदेश निर्मित उपकरण और वाहन तैनात किए हैं। भारत में निर्मित इन उन्नत प्रणालियों ने सबसे दुर्गम भू-भागों, सबसे कठोर जलवायु और सबसे चुनौतीपूर्ण परिचालन स्थितियों में अपने लचीलेपन को साबित किया है, जिससे वैश्विक शांति स्थापना के लिए भारत की प्रतिबद्धता और मजबूत हुई है।
शांति स्थापना में महिलाएं
महिलाएं संघर्ष समाधान, सामुदायिक सहभागिता और शांति स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, अक्सर स्थानीय आबादी, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों तक बेहतर पहुंच प्राप्त करती हैं। उनकी उपस्थिति यौन हिंसा को रोकने में भी मदद करती है, समुदायों के बीच विश्वास का निर्माण करती है और अधिक समावेशी और स्थायी शांति प्रक्रियाओं को बढ़ावा देती है। फिर भी, इन लाभों के बावजूद, शांति अभियानों में उनकी भागीदारी अनुपातहीन रूप से कम है।
वैश्विक प्रयासों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र के 70,000 वर्दीधारी शांति सैनिकों में से अभी भी महिलाओं की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम है, जिसमें सैन्य कर्मी, पुलिस अधिकारी और पर्यवेक्षक शामिल हैं। अधिक लैंगिक समावेशिता की आवश्यकता को पहचानते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने अपनी समान लैंगिक समानता रणनीति के तहत महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जिसका लक्ष्य 2028 तक सैन्य टुकड़ियों में 15 प्रतिशत और पुलिस इकाइयों में 25 प्रतिशत महिलाओं को शामिल करना है। |
महिलाओं के अधिक प्रतिनिधित्व के लिए प्रयास 2000 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 के साथ शुरू हुआ, जिसने संघर्ष की रोकथाम, शांति वार्ता और संघर्ष के बाद पुनर्निर्माण में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को औपचारिक रूप से मान्यता दी। इसके बाद महिला, शांति और सुरक्षा (डब्ल्यूपीएस) प्रस्तावों की एक श्रृंखला आई – जिसमें 1820, 1888, 1889, 2122 और 2242 शामिल हैं – जिसने शांति प्रयासों में महिलाओं के नेतृत्व की आवश्यकता को और मजबूत किया और संघर्ष से संबंधित यौन हिंसा के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाया।
2022 में, फील्ड मिशन में सभी वर्दीधारी कर्मियों में महिलाओं की संख्या 7.9 प्रतिशत थी – जो 1993 में सिर्फ 1 प्रतिशत थी। इसमें सैन्य टुकड़ियों में 5.9 प्रतिशत, पुलिस बलों में 14.4 प्रतिशत और न्याय और सुधार भूमिकाओं में 43 प्रतिशत शामिल थीं। नागरिक कर्मियों में, 30 प्रतिशत महिलाएं थीं, नेतृत्व के पदों पर उनकी संख्या बढ़ रही थी, जिससे मिशन के प्रमुखों और उप प्रमुखों के बीच लैंगिक समानता हासिल हुई। |
महिला शांति सैनिक क्यों महत्वपूर्ण हैं?
मजबूत शांति स्थापना : विविध और समावेशी टीमें अधिक प्रभावी शांति अभियानों की ओर ले जाती हैं, जिससे नागरिक सुरक्षा और शांति निर्माण में सुधार होता है।
बेहतर पहुंच और विश्वास : महिला शांति सैनिक स्थानीय समुदायों, विशेषकर महिलाओं के साथ जुड़ाव बढ़ाती हैं, विश्वास का निर्माण करती हैं और पहुंच का विस्तार करती हैं।
विविध नेतृत्व और निर्णय-निर्माण : जेंडर-संतुलित टीमें व्यापक दृष्टिकोण लाती हैं, निर्णय-निर्माण को मजबूत बनाती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके अभियान उन समुदायों को प्रतिबिंबित करें जिनकी वे सेवा करती हैं।
परिवर्तन के लिए आदर्श : महिला शांति सैनिक पारंपरिक मानदंडों को चुनौती देकर तथा महिलाओं और लड़कियों को उनके अधिकारों की वकालत करने के लिए सशक्त बनाकर भावी पीढ़ियों को प्रेरित करती हैं।
लैंगिक समानता को बढ़ावा देना : समानता और गैर-भेदभाव को कायम रखना संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मूल सिद्धांतों के अनुरूप है।
हालांकि प्रगति हुई है, लेकिन सही मायने में लैंगिक संतुलन हासिल करने के लिए दुनिया भर के देशों की ओर से और मजबूत प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र लगातार बदलाव के लिए प्रयास कर रहा है, शांति स्थापना में महिलाओं की मौजूदगी बढ़ाना सिर्फ संख्या के बारे में नहीं है – यह ज्यादा प्रभावी, समावेशी और स्थायी शांति बनाने के बारे में है।
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारतीय महिलाएं: बाधाओं को तोड़ना, शांति का निर्माण करना
भारत संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में महिलाओं की भागीदारी का प्रबल समर्थक रहा है तथा संघर्ष समाधान और शांति स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देता रहा है। सैन्य और पुलिस से लेकर नागरिक भूमिकाओं तक, भारतीय महिला शांति सैनिक अग्रिम पंक्ति में हैं, स्थानीय समुदायों के साथ जुड़ रही हैं, कमजोर समूहों की रक्षा कर रही हैं और संवाद को बढ़ावा दे रही हैं।
ग्लोबल साउथ के देश संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना की रीढ़ हैं, जिसमें भारत सबसे बड़ा सैन्य योगदान देने वाला देश है। भारत के पास सैन्य और पुलिस दोनों भूमिकाओं में महिलाओं को तैनात करने का गौरवशाली इतिहास है। यह विरासत 1960 के दशक में शुरू हुई, जब भारतीय महिला चिकित्सा अधिकारियों को कांगो भेजा गया, जिसने महिला शांति स्थापना में देश की अग्रणी भूमिका को चिन्हित किया।
भारत महिलाओं को संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में शामिल करने में एक मार्गदर्शक रहा है, जिसने दूसरों के लिए अनुकरणीय मानक स्थापित किए हैं। 2007 में, भारत ने लाइबेरिया में पहली बार केवल महिलाओं से बनी पुलिस यूनिट तैनात की, एक ऐसा कदम जिसने न केवल स्थानीय सुरक्षा को बढ़ाया, बल्कि लाइबेरियाई महिलाओं को अपने देश के सुरक्षा क्षेत्रों में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए सशक्त भी बनाया। इस अग्रणी पहल ने पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया है।
फरवरी 2025 तक, भारत 150 से अधिक महिला शांति सैनिकों के साथ इस विरासत को जारी रखा है, जो छह महत्वपूर्ण मिशनों में काम कर रही हैं, जिनमें कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, दक्षिण सूडान, लेबनान, गोलान हाइट्स, पश्चिमी सहारा और अबेई शामिल हैं। ये तैनातियां लैंगिक समानता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और वैश्विक शांति और सुरक्षा में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती हैं।
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय द्वारा मेजर राधिका सेन को ‘‘वर्ष 2023 की सैन्य जेंडर अधिवक्ता’’ नामित किया गया है, जो संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना प्रयासों में भारतीय महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान को मान्यता देता है। |
अपने योगदान के बावजूद, भारतीय महिला शांति सैनिकों को गहरी जड़ें जमाए हुए लैंगिक पूर्वाग्रहों और सुरक्षा जोखिमों से लेकर रसद संबंधी बाधाओं तक की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन बाधाओं को दूर करने के लिए लचीले रवैए, मजबूत समर्थन प्रणालियों और नीतियों की आवश्यकता होती है, जो उनकी सुरक्षा और प्रभावशीलता सुनिश्चित करती हैं। फिर भी, उनका प्रभाव निर्विवाद है। रूढ़िवादिता को तोड़कर और संघर्ष क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाकर, भारतीय महिला शांति सैनिक विश्वास का निर्माण करती हैं, जेंडर आधारित हिंसा को संबोधित करती हैं और बदलाव को प्रेरित करती हैं। उनकी उपस्थिति केवल प्रतीकात्मक नहीं है – यह परिवर्तनकारी है, जो वैश्विक शांति स्थापना के लिए एक अधिक समावेशी और प्रभावी दृष्टिकोण को आकार देती है।
भारतीय महिला शांति सैनिक अंतरराष्ट्रीय मंच पर मिसाल बन गई हैं और अपनी लगन और पेशेवराना अंदाज से दूसरों को प्रेरित कर रही हैं। उनके योगदान ने न केवल शांति स्थापना अभियानों की प्रभावशीलता को बढ़ाया है, बल्कि दुनिया भर में शांति प्रक्रियाओं में महिलाओं की अधिक भागीदारी का मार्ग भी प्रशस्त किया है।
प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण
भारतीय सेना द्वारा नई दिल्ली में स्थापित भारत का संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र (सीयूएनपीके), संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना प्रशिक्षण के लिए राष्ट्र के केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करता है। यह प्रतिवर्ष 12,000 से अधिक सैनिकों को प्रशिक्षित करता है तथा भावी शांति सैनिकों और प्रशिक्षकों के लिए कंटिंजंट प्रशिक्षण से लेकर विशेष राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों तक के कार्यक्रमों की एक श्रृंखला प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, सीयूएनपीके संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना प्रशिक्षण क्षमताओं को बढ़ाने के लिए मित्र देशों में मोबाइल प्रशिक्षण दल भेजता है।
उत्कृष्टता केंद्र के रूप में मान्यता प्राप्त, सीयूएनपीके पिछले दो दशकों में अनुभव और सर्वोत्तम प्रथाओं के भंडार के रूप में विकसित हुआ है। यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और संयुक्त प्रशिक्षण पहलों का संचालन करने के लिए विदेशी प्रतिनिधिमंडलों की मेजबानी करता है। उदाहरण के लिए, 2016 में, सीयूएनपीके ने अफ्रीकी भागीदारों के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना पाठ्यक्रम (यूएनपीसीएपी-01) को शुरू किया, जो अमेरिका के सहयोग से आयोजित तीन सप्ताह का कार्यक्रम था, जिसका उद्देश्य अफ्रीकी देशों के बीच शांति स्थापना क्षमताओं को बढ़ाना था।
फरवरी 2025 में, सीयूएनपीके ने नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में ‘वैश्विक दक्षिण महिला शांति सैनिक सम्मेलन’ की मेजबानी की। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में 35 देशों की महिला शांति सैनिकों ने शांति स्थापना अभियानों में महिलाओं की बदलती भूमिका और उनकी भागीदारी बढ़ाने की रणनीतियों पर चर्चा की। सम्मेलन में लैंगिक समानता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता तथा समावेशी और प्रभावी शांति स्थापना अभियानों को बढ़ावा देने में इसके नेतृत्व को रेखांकित किया गया।
मानेकशॉ सेंटर में ‘वैश्विक दक्षिण महिला शांति सैनिक सम्मेलन’
इन पहलों के जरिए, सीयूएनपीके प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण को बेहतर कर, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर तथा शांति मिशनों में लैंगिक समावेशिता को बढ़ावा देकर वैश्विक शांति प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारत की भूमिका वैश्विक शांति, सुरक्षा और बहु-पक्षवाद के प्रति इसकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। कोरियाई युद्ध में अपनी शुरुआती भागीदारी से लेकर दुनिया भर में संघर्ष वाले क्षेत्रों में अपनी निरंतर तैनाती तक, भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों को कायम रखा है। सबसे अधिक सैन्य योगदान देने वाले देशों में से एक के रूप में, भारत का योगदान संख्या से कहीं अधिक है – यह शांति स्थापना में महत्वपूर्ण सेवाएं, नेतृत्व और लैंगिक समानता के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता प्रदान करता है। अपनी विदेश नीति और सांस्कृतिक मूल्यों में निहित, शांति स्थापना के लिए भारत का दृष्टिकोण अहिंसा, संवाद और सहयोग में इसके विश्वास से निर्देशित होता है। भारतीय शांति सैनिकों ने कोरिया के युद्धक्षेत्रों से लेकर लाइबेरिया के तटों तक, अपने पेशेवराना, साहस और समर्पण के लिए वैश्विक सम्मान अर्जित करते हुए विशिष्टता के साथ सेवा की है। हालांकि, शांति स्थापना चुनौतियों से रहित नहीं है। भारतीय सैनिक अस्थिर वातावरण में काम करते हैं, नागरिकों की रक्षा करने और शांति बनाए रखने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं। लगभग 180 शहीद भारतीय शांति सैनिकों का बलिदान इस प्रबल प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
तैनाती से परे, भारत प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिक सहायता के जरिए संयुक्त राष्ट्र मिशनों को सक्रिय रूप से मजबूत करता है। महिला शांति सैनिकों की तैनाती में पहल करने वाले के रूप में, भारत संघर्ष समाधान के लिए एक अधिक समावेशी और प्रभावी दृष्टिकोण का समर्थन करता है। सहयोग को बढ़ावा देने और समुदायों को सशक्त बनाने के जरिए, भारत ने एक अधिक शांतिपूर्ण और सुरक्षित दुनिया की ओर ले जाने वाले मार्ग को रोशन करना जारी रखा है और अपने अटूट समर्पण से वैश्विक समुदाय को प्रेरित करता है।