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स्थापना दिवस पर विशेष : वीरता और समर्पण के प्रतीक है भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी)

 

The Indo-Tibetan Border Police (ITBP) Force was raised on 24 October 1962. At present, the ITBP guards 3,488 km long India-China borders ranging from the Karakoram Pass in Ladakh to Jachep La in Arunachal Pradesh. Apart from this, the Force also has important roles in many internal security duties and operations against the Left Wing Extremism in the state of Chhattisgarh. The Force has a glorious history of the past 6 decades in which the jawans of the ITBP have made many sacrifices in the line of duty and in the service of the Nation. Most of the ITBP’s Border Out Posts (BOPs) are located at altitudes ranging from 9,000 ft to 18,800 ft where temperatures drop to minus 45 degrees Celsius in extreme winters.

-उषा रावत –

भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) देश के अर्ध सैनिक बलों में से एक बेहतरीन बल माना जाता है जो कि तिब्बत से लगी सीमा की रखवाली करने के साथ ही विभिन्न अन्य क्षेत्रों में भी देश के काम आ रही है। बेहद कठिन हिमाच्छादित सीमाओं पर तैनात रहने के कारण इस बल के जवानों को हिमवीर के नाम से पुकारा जाता है। यह बल वीरता और समर्पण के प्रतीक के रूप में हमेशा कार्य करता है। वे सबसे चुनौतीपूर्ण इलाकों और कठिन जलवायु परिस्थितियों में भी हमारी रक्षा करते हैं। इसके अलावा, प्राकृतिक आपदाओं और बचाव कार्यों के दौरान उनके प्रयास लोगों में बेहद गर्व की भावना पैदा करते हैं।

भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल की स्थापना 24 अक्टूबर, 1962 को हुई थी। वर्तमान में आईटीबीपी लद्दाख में काराकोरम दर्रे से अरुणाचल प्रदेश में जाचेप ला तक 3,488 किमी. लंबी भारत-चीन सीमा की सुरक्षा के लिए तैनात है। इसके अलावा बल कई आंतरिक सुरक्षा कर्तव्‍यों एवं छत्‍तीसगढ में वामपंथ उग्रवाद के विरूद्ध अभियानों में भी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

बल की अधिकांश सीमा चौकियां 9,000 फीट से 18,800 फीट तक की ऊंचाइयों पर स्थित हैं जहां तापमान शून्‍य से 45 डिग्री सेल्शियस तक नीचे चला जाता है। आईटीबीपी राष्‍ट्र का एक विशेष सशस्‍त्र पुलिस बल है जो अपने जवानों को गहन सामरिक प्रशिक्षण के अलावा पर्वतारोहण और स्कीइंग समेत अन्‍य कई विधाओं में प्रशिक्षित करता है जिससे बल की एक विशिष्‍ट छवि है।

आईटीबीपी हिमालय क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं के लिए ‘फर्स्‍ट रेस्‍पोंडर’ के रूप में राहत व बचाव अभियानों का संचालन भी करती है। इसने गत वर्षों में सैकड़ों खोज, बचाव व राहत अभियान संचालित किए हैं और हजारों नागरिकों को बचाया गया है तथा विभिन्‍न आपदाओं में मदद पहुंचाई है। बल का पिछले 6 दशकों का स्‍वर्णिम इतिहास रहा है जिस दौरान बल के जवानों ने विभिन्‍न सुरक्षा दायित्‍वों में अनेकों बलिदान दिए हैं।

 

1962 के युद्ध के पहले सप्ताह में खुफिया जानकारी एकत्र करने, पारंपरिक और गुरिल्ला युद्ध लड़ने और चीनी सीमा पर भारतीय संचार प्रणालियों में सुधार के लिए 4 बटालियनों की ताकत के साथ इस बल का गठन किया गया था। इसका गठन सीआरपीएफ अधिनियम के तहत किया गया था। का गठन किया गया था। इसका गठन सीआरपीएफ अधिनियम के तहत किया गया 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के साथ-साथ 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी भाग लिया था। 1978 में बल को 9 सेवा बटालियनों, 4 विशेषज्ञ बटालियनों और 2 प्रशिक्षण केंद्रों के साथ पुनर्गठित किया गया था। इसने 1982 के एशियाई खेलों के साथ-साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन के 7वें शिखर सम्मेलन और 1983 के राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक के लिए सुरक्षा सेवाएं प्रदान कीं। 1987 में, पंजाब में उग्रवाद के अंतिम चरण में, पंजाब राज्य में बैंक डकैतियों को रोकने के लिए आईटीबीपी की 6 और बटालियनों का गठन किया गया। 1992 में, आईटीबीपी को नए आईटीबीपी अधिनियम के तहत अधिकृत किया गया, जबकि पहले इसे सीआरपीएफ अधिनियम के तहत अधिकृत किया गया था। आईटीबीपी अधिनियम के नियम 1994 में बनाए गए थे। 1989 से 2004 तक कश्मीर में उग्रवाद से निपटने के लिए आईटीबीपी की जम्मू-कश्मीर में भी एक छोटी सी मौजूदगी थी। 2004 में आईटीबीपी ने सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में असम राइफल्स की जगह लेते हुए पूरे 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा पर सीमा गश्त की जिम्मेदारी संभाली। आईटीबीपी पहले सीमा पर गश्त के लिए असम राइफल्स के साथ मिलकर काम करती थी। यह निर्णय 1999 के कारगिल युद्ध के बाद “एक सीमा, एक बल” के सिद्धांत के तहत गठित एक समिति द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर लिया गया था।

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