क्या धरती का वज़न बढ़ रहा है या घट रहा है?
धरती हल्की हो रही है—लेकिन यह इतना मामूली है कि कोई खास फर्क नहीं पड़ता।
हर साल लगभग 50,000 से 1,00,000 टन तक हल्की गैसें जैसे हाइड्रोजन और हीलियम धरती के ऊपरी वायुमंडल से बाहर निकल जाती हैं। किसी गैस में किसी दिए गए तापमान पर अणु अलग-अलग गति से चलते हैं। इनमें से कुछ सबसे तेज अणु इतनी तेज़ी से चलते हैं कि वे धरती के गुरुत्वाकर्षण (11 किलोमीटर प्रति सेकंड) से भी बचकर निकल जाते हैं।
हल्की गैसें ज़्यादा तेज़ गति से चलती हैं और उनमें ऐसे अणुओं का अनुपात अधिक होता है जो इस वेग से आगे बढ़कर अंतरिक्ष में निकल सकते हैं। ऊपरी वायुमंडल में पराबैंगनी (अल्ट्रावॉयलेट) प्रकाश पानी के अणुओं को तोड़कर हाइड्रोजन बनाता है, जिनमें से कुछ वायुमंडल से बाहर निकल जाते हैं। हीलियम का उत्पादन धरती के अंदर रेडियोधर्मी विघटन से लगातार होता रहता है और यह भी अंतरिक्ष में निकल सकता है।
इस नुकसान की आंशिक भरपाई अंतरिक्ष से आने वाले उल्कापिंडों और धूल-कणों के कारण होती है। हर साल लगभग 40,000 से 50,000 टन वज़न धरती में जुड़ जाता है। इसके बावजूद सालाना कुल 60,000 टन तक का नुकसान होता है, जो बहुत ज्यादा लगता है।
लेकिन, जब से धरती का निर्माण लगभग 4.54 अरब साल पहले हुआ, तब से अब तक का यह कुल नुकसान धरती के वज़न का सिर्फ 45 भाग प्रति अरब (पार्ट्स पर बिलियन) ही है। अगर इसे धरती की मानव आबादी (लगभग 8 अरब) के हिसाब से समझें तो यह करीब 360 लोगों के बराबर होगा — यानी दो बोइंग 737-800 विमानों को भरने लायक, या फिर उतनी ही संख्या जितने लोग धरती पर हर 3 मिनट में जन्म लेते हैं।
बेशक, यह स्थिति तब की है जब धरती का निर्माण हुआ था और उस पर ‘थीया’ नामक मंगल आकार का एक पिंड आकर टकराया था। इस टक्कर से चांद का निर्माण हुआ और अनुमान है कि इस टक्कर ने धरती के वज़न में लगभग 10% की वृद्धि कर दी थी।
हमारे अंतरिक्ष मिशन भी धरती के वज़न को थोड़ा कम कर देते हैं। हर साल धरती का वज़न लगभग 65 टन कम हो जाता है क्योंकि अंतरिक्ष में भेजे गए यान (स्पेसक्राफ्ट) हमेशा के लिए बाहर रह जाते हैं। हालांकि जो उपग्रह कक्षा में घूमते हैं, वे अंततः धरती पर वापस गिर जाते हैं।
(माइक फॉलोज़ और एलेक्स मैकडॉवेल, न्यू साइंटिस्ट से, ट्रिब्यून कंटेंट एजेंसी द्वारा वितरित)
