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इजरायल-ईरान टकराव: वैश्विक संकट की आग

                                                      Aftermath of Iran’s retaliatory strikes on Israel

In this gripping article, Jay Singh Rawat delves into the volatile Israel-Iran conflict, unraveling its dangerous trajectory toward a global crisis. What began as a shadow war of covert operations and proxy battles has, by 2025, erupted into brazen military confrontations, driven by Iran’s nuclear ambitions and Israel’s unrelenting countermeasures. Rawat explores how this escalating clash threatens to ignite a multi-front war, destabilize global energy markets, and fracture international alliances, underscoring the urgent need for diplomacy in a world teetering on the edge of chaos.–Admin

 


-जयसिंह रावत –

इजरायल और ईरान के बीच का तनाव, जो वैचारिक और भू-राजनीतिक मतभेदों से शुरू हुआ, अब एक वैश्विक संकट का रूप ले चुका है। यह संघर्ष, जो कभी गुप्त अभियानों और प्रॉक्सी युद्धों तक सीमित था, अब खुले सैन्य टकराव में बदल गया है। 2019 से 2025 तक, यह छाया युद्ध एक खतरनाक प्रत्यक्ष टकराव में तब्दील हो चुका है। ईरान की क्षेत्रीय शक्ति और वैश्विक प्रभाव इसे एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाते हैं, जिसके साथ टकराव के परिणाम मध्य पूर्व तक सीमित नहीं रहेंगे। क्षेत्रीय युद्ध, परमाणु दौड़, और वैश्विक अस्थिरता के जोखिमों के बीच कूटनीति और संयम की सख्त जरूरत है, लेकिन दोनों पक्ष अभी भी आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: शांति से टकराव तक

1979 की इस्लामी क्रांति से पहले, शाह के शासनकाल में ईरान और इजरायल के बीच तनावमुक्त संबंध थे। क्रांति के बाद, अयातुल्ला खोमैनी ने इजरायल को “अवैध” घोषित किया और हमास, हिजबुल्लाह, और हाउथी जैसे समूहों का समर्थन शुरू किया। ईरान का परमाणु कार्यक्रम इजरायल के लिए अस्तित्वगत खतरा बन गया। जवाब में, इजरायल ने गुप्त अभियानों, साइबर हमलों (जैसे 2010 का स्टक्सनेट वायरस), और लक्षित हत्याओं के जरिए ईरान को कमजोर करने की रणनीति अपनाई।

 

2019-2023: छाया युद्ध से प्रत्यक्ष टकराव

2019 में इजरायल ने सीरिया, इराक, और लेबनान में ईरान समर्थित ठिकानों पर हवाई हमले तेज किए। 2020 में अमेरिका द्वारा ईरान के शीर्ष कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या और ईरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसन फखरीजादेह की हत्या (जिसके लिए इजरायल को जिम्मेदार ठहराया गया) ने तनाव को और बढ़ाया। 2021 में समुद्री हमलों की श्रृंखला ने दोनों पक्षों को आमने-सामने ला दिया। 2022 में इजरायल और अमेरिका ने ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने की संयुक्त रणनीति बनाई।

7 अक्टूबर 2023 को हमास के इजरायल पर हमले (1,200 से अधिक मौतें) ने गाजा में बड़े पैमाने पर युद्ध को जन्म दिया। ईरान समर्थित हिजबुल्लाह और हाउथी समूहों ने इजरायल पर हमले किए, जिससे क्षेत्रीय तनाव और गहरा हुआ। दिसंबर 2023 में इजरायल ने सीरिया में ईरान के एक वरिष्ठ कमांडर को मार गिराया।

2024: संघर्ष का चरम

2024 में तनाव अभूतपूर्व स्तर पर पहुंचा। अप्रैल में इजरायल ने दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर हमला किया, जिसके जवाब में ईरान ने इजरायल पर 300 से अधिक ड्रोन और मिसाइलें दागीं। जुलाई में हमास नेता इस्माइल हनियाह की तेहरान में हत्या और सितंबर में हिजबुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की बेरूत में हत्या ने स्थिति को और विस्फोटक बना दिया। अक्टूबर 2024 में ईरान ने इजरायल पर 180 मिसाइलों से दूसरा बड़ा हमला किया। जवाब में, इजरायल ने लेबनान में हिजबुल्लाह के खिलाफ जमीनी अभियान शुरू किया।

2025: परमाणु ठिकानों पर हमला और बढ़ता संकट

12 जून 2025 को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने ईरान को परमाणु दायित्वों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया। अगले दिन, 13 जून 2025 को इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों (नटanz और फोर्डो) और सैन्य सुविधाओं पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए। तेहरान और इस्फहान में विस्फोटों की खबरें आईं, और ईरान की हवाई रक्षा प्रणाली को भारी नुकसान पहुंचा। ईरान ने जवाबी कार्रवारी की धमकी दी, लेकिन उसकी सैन्य क्षमता सीमित दिख रही है।

हालांकि, नवीनतम जानकारी के अनुसार, ईरान ने हिजबुल्लाह और हाउथी जैसे प्रॉक्सी समूहों के जरिए जवाबी हमले तेज किए हैं। नवंबर 2024 में लाल सागर में हाउथी हमलों ने वैश्विक व्यापार मार्गों को बाधित किया, जिससे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गईं। दिसंबर 2024 में हिजबुल्लाह ने उत्तरी इजरायल में रॉकेट हमले बढ़ाए, जिससे हजारों नागरिक विस्थापित हुए। जनवरी 2025 में ईरान ने साइबर हमलों के जरिए इजरायल की बुनियादी ढांचे (पावर ग्रिड और संचार) को निशाना बनाया, जिसे इजरायल ने “डिजिटल आतंकवाद” करार दिया।

दीर्घकालिक प्रभाव: वैश्विक और क्षेत्रीय जोखिम

ईरान एक ऊर्जा महाशक्ति है, जिसके पास विशाल तेल और गैस भंडार, मजबूत वैचारिक आधार, और क्षेत्रीय प्रभाव है। इजरायल के हमले उसके परमाणु कार्यक्रम को अस्थायी रूप से कमजोर कर सकते हैं, लेकिन यह ईरान को गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित करने के लिए और प्रेरित कर सकता है। इससे सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश भी परमाणु दौड़ में शामिल हो सकते हैं, जिससे मध्य पूर्व में अस्थिरता बढ़ेगी।

वैश्विक ऊर्जा संकट: ईरान के तेल क्षेत्रों पर हमले और लाल सागर में हाउथी हमलों ने वैश्विक तेल कीमतों को 2025 में 110-120 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचा दिया है। यह भारत, चीन, और यूरोप जैसे आयातक देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भारी दबाव डाल रहा है।

क्षेत्रीय युद्ध का खतरा: हिजबुल्लाह, हाउथी, और अन्य ईरान समर्थित समूहों के हमले लेबनान, सीरिया, और यमन में बहु-मोर्चा युद्ध को जन्म दे सकते हैं। क्षेत्र पहले से ही शरणार्थी संकट और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है।

वैश्विक ध्रुवीकरण: अमेरिका और उसके सहयोगी (यूके, यूरोपीय संघ) इजरायल का समर्थन कर रहे हैं, जबकि रूस और चीन ईरान के साथ हैं। इससे संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर कूटनीतिक गतिरोध बढ़ गया है। फरवरी 2025 में रूस ने ईरान को उन्नत हथियारों की आपूर्ति शुरू की, जिससे पश्चिमी देशों में चिंता बढ़ी है।

भारत और एशिया के लिए निहितार्थ

भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों का 85% आयात करता है, इस संकट से सीधे प्रभावित है। तेल की कीमतों में उछाल ने भारत के चालू खाता घाटे (CAD) को 3.5% तक बढ़ा दिया है, और मुद्रास्फीति 7% के पार पहुंच गई है। खाड़ी क्षेत्र में 85 लाख भारतीय प्रवासी कामगारों की सुरक्षा खतरे में है। भारत के लिए यह एक कूटनीतिक चुनौती है, क्योंकि वह इजरायल और अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करता है, लेकिन ईरान से ऊर्जा और भू-राजनीतिक हित भी बनाए रखना चाहता है।

चीन, जो मध्य पूर्व से तेल आयात करता है, ने ईरान के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को गहरा किया है। मार्च 2025 में चीन ने ईरान के साथ $10 बिलियन का तेल समझौता किया, जिससे अमेरिका-चीन तनाव और बढ़ गया है।

भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां

इजरायल-ईरान संघर्ष अब केवल द्विपक्षीय विवाद नहीं है; यह वैश्विक ऊर्जा, व्यापार, और सुरक्षा को प्रभावित करने वाला संकट बन चुका है। ईरान की जवाबी कार्रवारी की क्षमता, खासकर प्रॉक्सी समूहों और साइबर हमलों के जरिए, क्षेत्रीय युद्ध को भड़का सकती है। कूटनीति के रास्ते लगभग बंद हो चुके हैं, क्योंकि ईरान परमाणु प्रतिबंधों को खारिज करता है और इजरायल आक्रामक रणनीति पर कायम है।

वैश्विक समुदाय के लिए यह जरूरी है कि इस संकट को केवल “इजरायल बनाम ईरान” का मामला न मानकर सक्रिय हस्तक्षेप किया जाए। भारत जैसे देशों को, जो मध्य पूर्व में आर्थिक और सामरिक हित रखते हैं, तटस्थ लेकिन रचनात्मक भूमिका निभानी होगी। संयुक्त राष्ट्र या अन्य मंचों पर बहुपक्षीय वार्ता, क्षेत्रीय शांति के लिए एकमात्र रास्ता हो सकता है। अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो यह संघर्ष एक चिंगारी की तरह पूरे क्षेत्र और विश्व को अस्थिर कर सकता है।

(The views expressed and facts presented in the article are the author’s own. -Admin)

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