मस्क के खिलाफ जियो – एयरटेल साथ साथ
Milind Khandekar
मुकेश अंबानी और सुनील भारती मित्तल टेलीकॉम मार्केट पर क़ब्ज़े के लिए एक दूसरे से खूब लड़े है. अंबानी के जियो ने न केवल मित्तल के एयरटेल को पीछे छोड़ा बल्कि बाक़ी कंपनियों को बाज़ार से लगभग बाहर कर दिया. अब बाज़ार पर इन दो बड़ी कंपनियों का क़ब्ज़ा है. ये दोनों कंपनियाँ अब एलन मस्क को रोकने के लिए साथ आ रही है. मस्क Star link के ज़रिए सेटेलाइट से इंटरनेट देना चाहते हैं और ये दोनों कंपनियाँ रास्ते में रोड़े डाल रही है. फिर भी सरकार मस्क का साथ देने के मूड में है.
एलन मस्क दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति हैं. उनकी चर्चा X यानी ट्विटर का मालिक होने के कारण ज़्यादा होती रहती है लेकिन Tesla, Space X या Star link जैसी कंपनियों ने टेक्नॉलजी के क्षेत्र में में झंडे गाड़े हैं. Star link सेटेलाइट के ज़रिए इंटरनेट देती है. यह बाक़ी कंपनियों से अलग है जो फ़ाइबर ऑप्टिक केबल के ज़रिए या फिर मोबाइल टॉवर के ज़रिए इंटरनेट दे रही है. इसे Terrestrial इंटरनेट कहते है. भारत में हमें इसी तरह से इंटरनेट मिल रहा है. इसके लिए फ़ाइबर का जाल बिछाना पड़ता है या फिर जगह जगह टॉवर खड़े करना पड़ते हैं. Star link के पास अपने सेटेलाइट है आपको सिर्फ़ एक डिश लगानी है. इससे इंटरनेट मिल जाएगा.
सुनील मित्तल और मुकेश अंबानी भी सेटेलाइट से इंटरनेट देना चाहते हैं लेकिन मस्क की कंपनी तो बाक़ी दुनिया में पहले से सर्विस दे रही है. अंबानी और मित्तल का कहना है कि मस्क को Star link के लिए स्पैक्ट्रम नीलामी में ख़रीदना चाहिए जैसे टेलीकॉम कंपनियों को ख़रीदना पड़ता है. सुनील मित्तल ने तो यहाँ तक कह दिया कि लाइसेंस भी लेना चाहिए अगर वो शहरी क्षेत्रों और ग्राहकों को सीधे सर्विस दे रहे हैं. सरकार ने पिछले साल पारित क़ानून का हवाला देकर कहा कि स्पैक्ट्रम आवंटित होगा, नीलाम नहीं. यह आवंटन होते ही मस्क अपनी सर्विस शुरू कर सकेंगे.
स्पैक्ट्रम क्या है?
आप इस वक़्त ये लेख पढ़ पा रहे हैं तो इसके लिए स्पैक्ट्रम को शुक्रिया कहिए. स्पैक्ट्रम अदृश्य रेडियो तरंगें है जो संदेश एक जगह से दूसरी जगह तक पहुँचाती है. चाहे आप फ़ोन पर बात कर रहे हो या मेसेज भेज रहे हो या कोई वीडियो देख रहे हैं. ये सारी बातें रेडियो स्पैक्ट्रम के ज़रिए संभव है. ये इलेक्टरो मैगनेटिक स्पैक्ट्रम का हिस्सा है जो प्राकृतिक संपदा है. हर देश की सरकार इसे अपने हिसाब से रेग्यूलेट करती है. आपने कभी रेडियो चलाया हो तो आपको स्टेशन पकड़ने के लिए बटन को ऊपर या नीचे घूमाना पड़ता है तब गाना सुनाई देता है. उसी तरह आप बटन को ऊपर या नीचे घूमाते रहे तो अलग अलग फ़्रीक्वेंसी पर अलग-अलग काम होते है. कुछ बैंड मोबाइल सेवा के लिए होते है, कुछ सेटेलाइट के लिए तो कुछ पर सेना अपना कम्यूनिकेशन करती है. एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल ATC भी इसी के ज़रिए हवाई यातायात को नियंत्रित करती है. ये सारा स्पैक्ट्रम सरकार ट्रैफ़िक पुलिस की तरह नियंत्रित करती है. एक सेवा दूसरे के बैंड में चली जाती है तो कम्यूनिकेशन ठप हो सकता है. वैसे ब्लू टूथ भी स्पैक्ट्रम की वजह से ही चलता है. बस , सरकार उसे कंट्रोल नहीं करती है. मोबाइल सेवा के लिए सरकार स्पैक्ट्रम की नीलामी करती है, जिसे जियो, एयरटेल जैसी कंपनियाँ ख़रीदती है और फिर मोबाइल फ़ोन सेवा देती है. अब यही बात वो सेटेलाइट इंटरनेट पर भी लागू करना चाहते हैं. हालाँकि भारत में सेटेलाइट इंटरनेट कितना सफल होगा यह अभी कहना मुश्किल है क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बेहतर मानी जाती है जहां नेटवर्क पहुँचना मुश्किल है.यह Terrestrial के मुक़ाबले महंगा भी है. फिर भी रिलायंस या एयरटेल कोई चांस नहीं लेना चाहते हैं