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न्यायमूर्ति केशव चंद्र धूलिया द्वितीय स्मृति व्याख्यान 24 नवम्बर को देहारादून में

By- Usha Rawat
देहरादून, 4  अक्टूबर। कर्मभूमि फाउंडेशन उत्तराखंड का न्यायमूर्ति केशव चंद्र धूलिया द्वितीय स्मृति व्याख्यान एवं बाद विवाद / निबंध पुरस्कार समारोह 24 नवम्बर को  देहारादून में आयोजित होगा।  बल इस समरोह में विख्यात कानूनविद  व्याख्यान देंगे । गत वर्ष के समारोह में भारत के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ मुख्य अतिथि थे।
संस्था के सचिव हिमांशु धुलिया ने यह जानकारी देते हुए बताया कि द्वितीय बाद विवाद प्रतियोगिता 13 नवम्बर को दून लाइब्ररी देहारादून में बायोजित होगी। निबंध प्रतियोगिता दून लाइब्ररी देहारादून एवं सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा में 13 नवम्बर को आयोजित की जाएंगी। इस में उत्तराखंड विश्वविद्यालयों और कालेजों के कानून के छात्र प्रतियोगताओं में भाग ले सकेंगे।
बाद – विवाद और निबंध प्रतियोगताओं के विजेता छात्रों को ट्रॉफी, मेडल एवं पुरस्कार 24 नवम्बर व्याख्यान समारोह के दौरान मुख्य अतिथि द्वारा दी जाएंगी।
न्याय मूर्ति केशव चंद्र धूलिया का जन्म 13 नवम्बर 1929 को पौड़ी जिले के मदनपुर ग्राम में एक संपन्न पुरोहितों के परिवार में हुआ था । पिता पंडित भैरव दत्त धूलिया एक जाने माने स्वतंत्रता सेनानी थे। उनकी प्राइमरी शिक्षा गांव के समीप बनकंडी स्कूल में हुई। इसके पश्चात वह आगे की शिक्षा के लिए डाडामंडी के मटयाली स्कूल में दाखिले के लिए गये लेकिन, क्योंकि उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे तो प्रिंसिपल ने दाखिले से इनकार कर दिया और उन्हें अन्य आसपास के स्कूलों ने भी दाखिला नहीं दिया । लेकिन  वह चलते गए और फिर चेलूसैण  के ईसाई मिशनरी स्कूल के हेडमास्टर पीटर ने उन्हें दाखिला दिया।
भारत की आज़ादी के बाद जब उनके पिता जेल से रिहा हुए तब उन्होंने अपनी उच्च  शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से की और बी ए एम ए (अर्थ शास्त्र ) और कानून शास्त्र की डिग्री ग्रहण की। इस दौरान उनका संपर्क उस दौर के कई उच्च श्रेणि के शिक्षकों एवम स्वतंत्रता सेनानियों से हुआ और उन्होंने उन्हें प्रभावित् किया। वह खुद एक सक्रिय  छात्र नेता थे और नये भारत में छात्रों की आकांक्षाओं  और समस्याओं  को लेकर आगे रहते थे। इसके उपरांत बह लैंसडाउन गढ़वाल वापस आये वकालत करने और और अपने पिता का साप्ताहिक अखबार ‘कर्मभूमि’ में हाथ बंटाने लगे  । कुछ वर्षों बाद वह इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत करने चले गए। वह इलाहाबाद सन् 1965  में एक छोटा लोहे के ट्रंक के साथ इलाहबाद गए और कई वर्ष संघर्ष तक वहां  किया। वह हाई कोर्ट इलाहाबाद के ‘चीफ स्टेडिंग काउंसल ‘ नियुक्त हुए और बाद में जज बने ।
उनके दिल का दौरा पड़ने से 15  जनवरी 1985 को अकस्मात् मृत्यु से उनके परिवार, मित्र और सहयोगियों को गहरा सदमा पहुंचा। वह एक सजग और खुले विचार के व्यक्ति थे जिन्होंने विपरीत परस्थितियों के बावजूद एक मुकाम हासिल किया। उन्होंने बतौर जज कई महत्वपूर्ण फैसले दिये ।  वह मुकदमों को तेजी में निपटा लेने में निपुण थे। वह दूसरे व्यक्ति थे गढ़वाल से जो हाई कोर्ट जज बने और पहले गढ़वाली वकील जो इस ओहदे पर पहुंचे। वह एक ईमानदार, सच्चे, व्यक्ति थे  जो कमज़ोर और मज़लूम के हिमायती थे । वह इस क्षेत्र में अपनी यादें और विरासत छोड़ गए।
इन बार्षिक स्मृति व्याख्यान का उद्देश्य है न्यायमूर्ति धूलिया के विचारों और आदों का अनुसरण करना और उन्हें जीवित रखना।

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