राजनीति

केदारनाथ उप चुनाव सवाल धाम की अस्मिता का

– डा0 योगेश धस्माना-

वर्तमान समय में जब सरकार ने शिक्षा कला,संस्कृति ,धर्म अध्यात्म को बाजार के हवाले कर बद्री केदार धामों को बाहरी कारोबारियों के लिए शहर बनानी की ठान ली है।उस वक्त केदार नाथ का विधान उप चुनाव धाम की अस्मिता के साथ जुड़ गया है।

सनातन धर्म की मान्यताओं और परंपराओं को तार तार कर केदारनाथ को भोगवादी पर्यटक केंद्र बनाने से भौगोलिक और पर्यावरणीय संकट भी आ खड़ा हुआ है।इस बरसात में गौरीकुंड से केदारनाथ तक कुल 27 स्थानों पर भूस्खलन से 30 से अधिक लोगों की मौत,हिमालय की संवेदनशीलता को दर्शाती हैं। मंदिर समिति से जुड़ी अर्थ व्यवस्था और स्थानीय जनता के हक हकूक छीनने का षड्यंत्र के विरुद्ध भी पूर्व विधायक सैला रानी रावत ने मुख्य मंत्री से मिल कर अनशन करने तक की धमकी तक दे डाली थी।

आज इन मूल समस्याओं से हटकर धाम को सिर्फ राजनीतिक नफा नुकसान से सभी राजनीतिक दल एक ही चश्मे से देख रहे है।गोवा विधानसभा की तरह इस विधान सभा चुनाव मे पूंजीवादी ताकते बाहर से आकर अपने उम्मीदवारों पर दाव लगाने के लिए तैयार है।

93 हजार मतदाताओं की विधान सभा में लगभग 45 हजार महिला मतदाता है।बाजार वाद की ताकते कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों को उतार कर बीजेपी और कांग्रेस दोनों का खेल बिगाड़ने की जुगत में दिखाई देती है।दोनो प्रमुख दलों के बागी और निर्दलीय उम्मीदवारों को मिला कर कुल 15से अधिक उम्मीदवार मैदान में दिखाई दे सकते है।ऐसे में जो उम्मीदवार लगभग 20हजार वोटो का यदि जुगाड कर ले तो जीत का ताज पहनने में सफल हो सकता है।

इसमें संदेह नहीं कि धन और शराब को हथियार बनाकर उमीदवार इस धाम की पवित्रता के साथ खिलवाड़ करते नजर आएंगे।केदारनाथ उप चुनाव में बीजेपी के सामने मंदिर से स्वर्ण घोटाला परिसर में क्यूआर कोड के जरिए धन घोटाला ,सहित केदारनाथ से दिल्ली में शिला लेजाकर मंदिर निर्माण जैसे विवादों के बीच केदारपुरी के पुर्ननिर्माण में हक हकूक धारियों की उपेक्षा से जनता में गहरा रोष है।

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस हमेशा की तरह गलत फहमी में है, कि जनता उसे थाल में जीत सजा कर उसके के लिए तैयार है।अंतर कलह से जूझ रही कांग्रेस में भी अनेक गुट सक्रिय है।पार्टी प्रभारी शैलजा आज तक उत्तराखंड में देहरादून आकर होटल से बाहर तक निकल कर कार्यकर्ताओं से अब तक नहीं मिली टिकट के दावेदार दिल्ली दरबार में जाकर अपनी पैरवी करने में लगे है।

काग्रेस आज भी संगठन स्तर पर बीजेपी के सामने बहुत कमजोर है।इस चुनाव में पूर्व पार्टी अध्यक्ष गणेश गोदियाल और वर्तमान अध्यक्ष करण मेहरा के बीच वर्चस्व की लड़ाई जारी है,चुनावी जीत तो दूर की बात है।प्रत्याशी मनोज रावत को लेकर पार्टी अध्यक्ष सहमत नहीं है।वहीं यदि हरक सिंह रावत को टिकट मिलता है,तो दल के भीतर दूसरा गुट हरक के विरुद्ध काम शुरू कर देगा। बीजेपी के भीतर दावेदारों में आशा नौटियाल और कर्नल अजय कोठियाल आगे दिखाई दे रहे है।

दोनो दलों में भीतरघात की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।आखिरी समय में दोनों दल किसी अप्रत्याशित व्यक्ति को भी टिकट दे सकते है। इस राजनीतिक घमासान के बीच निर्दलीय उम्मीदवारों की उपस्थिति से जीत हार के समीकरण बिगड़ सकते है।कुल मिलकर धाम की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए कोई भी दल गंभीर नहीं दिखाई दे रहा है।

मुख्यमंत्री द्वारा केदारनाथ उप चुनाव में आचार संहिता लगने से पूर्व ६०० करोड़ रुपए के विकास योजनाओं की घोषणा से स्पष्ट है कि सरकार केदारनाथ की जनता से डरी हुई है।अब तक के राजनीतिक इतिहास में इस तरह की बम्पर घोषणाओं का का यह पहला अवसर है। बीजेपी में टिकट की दौड़ में लगे कांग्रेसी और आप पार्टी के गोत्र के व्यक्ति को टिकट मिलने की संभावनाएं कम ही दिखाई देती है।
यदि कांग्रेस से मनोज रावत को टिकट मिलता है,तो बीजेपी जातीय रणनीति के तहत कुलदीप रावत को भी चुनावी मैदान में उतार सकती है।

डॉ योगेश धस्माना

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!