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द्रौपदी चीर हरण देखने उमड़ पड़ा जन सैलाब बमोथ गांव

 

गौचर, 10 जनवरी (गुसाईं)। बमोथ गांव में आयोजित पांडव लीला के तहत द्रौपदी चीर हरण के दृश्य को देखने के लिए लोगों का रेला उमड़ पड़ा।

 

द्युत  क्रीड़ा से लेकर वनवास तक का मंचन ख़ासा आकर्षण का केंद्र बना रहा। युद्ध श्रेत्र में दुर्योधन के गुस्से का बदला चुकाने के लिए मामा शकुनि द्वारा चलाई गई चाल के अनुसार दुर्योधन धर्मराज युधिष्ठिर से आग्रह करता है कि कौरवों व पांडवों के बीच ध्यूत क्रीड़ा का आयोजन करवाया जाय ताकि सभी भाईयों के बीच भाईचारे का व्यवहार बना रहे। लेकिन युधिष्ठिर को शकुनि की चाल का पता नहीं चलता है। आखिर उन्हें मामा शकुनि के आग्रह को स्वीकार करना पड़ता है। इस ध्यूत क्रीड़ा में शकुनि के फांसों के आगे युधिष्ठिर अपना सारा राजपाठ हारने के बाद द्रौपदी को ही दांव पर लगा देते हैं और हार जाते हैं। कौरवों की ओर द्रौपदी को महल में आने को कहा जाता है लेकिन द्रौपदी यह कहकर मना कर देती है कि पुरुषों के होते हुए वह महल में नहीं आ सकती है। तो उन्हें सूचना दी जाती है कि युधिष्ठिर ने तुम्हें भी जुवे में हार दिया है अब तुम कौरवों की दाशी बन गई हो। फिर वह आने से मना करती है तो दुर्योधन दुशासन को द्रौपदी के केश खींचकर लाने को कहता है। चीर हरण से पहले द्रौपदी पांडवों को एक एक करके उनकी शक्ति याद दिलाती है लेकिन धर्मराज युधिष्ठिर के आगे सभी मौन रहते हैं।

इसके पश्चात द्रौपदी द्रोणाचार्य,कृपाचार्य, भीष्म पितामह से अपनी रक्षा की गुहार लगाती है लेकिन उन्हें कहीं से भी न्याय नहीं मिलता है तब वह अपने मुंह बोले भाई श्रीकृष्ण को पुकारती है। श्रीकृष्ण ने अपनी माया से द्रौपदी की साड़ी को इतना लंबा बना दिया कि कौरवों की सेना साड़ी का पल्लू खींचते थक जाते हैं।आखिर उन्हें कहना पड़ता है कि सारी बीच नारी या नारी बीच सारी है। जब इस चीर हरण में कौरव हार जाते हैं तो भीष्म पितामह द्रौपदी को दो वरदान मांगने को कहते हैं। जिसमें वे पांडवों का सारा राजपाट वापस मांग लेती हैं। अंत में पांडवों को चौदह वर्ष का वनवास की सजा सुनाई जाती है। इस चीर हरण में द्रौपदी का शानदार अभिनय अंशिका नेगी ने किया।

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