चुनावराजनीति

यही रात अंतिम, यही रात भारी…..


-दिनेश शास्त्री-
भारत की 18वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव के नतीजे मंगलवार को घोषित होने में बस एक रात की दूरी शेष है और यही रात इस पूरे चुनाव अभियान के दौरान गुजरी रातों में सबसे ज्यादा भारी है। रक्तचाप बढ़ाने और अनिंद्रा का कारक बन कर आई यह रात निसंदेह बहुत भारी है।

एक सौ चालीस करोड़ आबादी वाले मुल्क में जहां 96.8 करोड़ मतदाता हों और उनमें से 64 करोड़ लोग लोकतंत्र के महापर्व में भागीदारी करते हैं तो यह अपने आप में ऐतिहासिक ही है। इतनी तो यूरोप के कई देशों को मिलाकर भी आबादी नहीं है। उनमें से भी अकेले 31 करोड़ से अधिक महिलाएं अपने मताधिकार का इस्तेमाल अपनी पसंद की सरकार चुनने के लिए करती हैं तो यह और बड़ी बात है। यूरोप के आधा दर्जन देशों की बराबरी तो हमारी महिलाओं ने ही कर दी है किंतु इधर कुछ अप्रिय खबरें भी आने लगी हैं। अमूल और मदर डेयरी ने अचानक दूध के दाम बढ़ा दिए हैं तो टोल टैक्स की दर भी पांच फीसदी बढ़ गई है। लोकतंत्र के पर्व का यह पहला रुझान तो नहीं?

यानी दूध और यात्रा पहले झटके में महंगी हो गई। अगले दौर में रसोई गैस और पेट्रोल – डीजल आंख दिखाने लग जाएं तो हैरानी नहीं होगी। हालांकि बाजार भी अभी से झूम रहा है। दूसरी ओर एग्जिट पोल के आंकड़ों ने कई नेताओं की धड़कन बढ़ा रखी है। वैसे एग्जिट पोल के अनुमान हमेशा सटीक रहे हों, यह दावे से नहीं कहा जा सकता।

आपको याद होगा – वर्ष 2004 में इंडिया शाइनिंग की चकाचौंध में कई लोग मस्ती से झूम रहे थे लेकिन नतीजों ने ऐसा चौंकाया कि सत्तारूढ़ पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी से छह सीट कम पर अटक गई थी। सचमुच इंडिया शाइनिंग होता तो वह डेढ़ सौ सीटें पा लेती इसलिए एग्जिट पोल पर सौ फीसद भरोसा करना तो ठीक नहीं लगता। दरअसल एग्जिट पोल के इन आंकड़ों ने ही इस आखिरी रात को भारी बना दिया है।

बिन मांगी सलाह तो यही है कि, धैर्य का दामन न छोड़ें, रक्तचाप नियंत्रित रखें और इंतजार करें कल दोपहर तक का। तब तक स्थिति काफी कुछ साफ हो चुकी होगी और अंतिम वोट की गिनती का इंतजार तो करना ही होगा। इस बार तो पोस्टल बैलेट की संख्या भी ज्यादा है, लिहाजा इस रात का संयम से बीतने का इंतजार करें। जिस तरह क्रिकेट में अंतिम गेंद फेंके जाने तक मैच के नतीजे में बदलाव की संभावना बनी रहती है, ठीक उसी तरह लोकतंत्र के इस महापर्व को भी लिया जाना चाहिए। रात को भारी यानी बोझिल बिताने के बजाय प्रारब्ध और पुरुषार्थ के तराजू के हवाले कर बीपी बढ़ने से तो रोक ही सकते हैं।

उत्तराखंड के संदर्भ में तो यह बात ज्यादा गंभीर है कि कल का मंगलवार कई लोगों के लिए अमंगल भी हो सकता है। नतीजे तय करेंगे कि मंगल कितना प्रभावी रहता है।

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