सड़कों पर अराजकता, इन्हें कौन सिखाएगा अनुशासन
–अनूप नौटियाल–
रात के 10:00 बज चुके हैं (28 दिसंबर 2024)। कुछ देर पहले घर लौटा हूं। हम सब की अपनी अपनी आदतें होती हैं। पता नहीं मैं ऐसा क्यों करता हूं, मुझे नहीं मालूम। जब मैं गाड़ी चलाता हूं तो मेरी नज़रें बाहर की दुनिया में कुछ ना कुछ देखती रहती हैं, टटोलती रहती हैं। ये एक किस्म का रिफ्लेक्स एक्शन है, मैं इसके लिए कोई एक्स्ट्रा एफर्ट नहीं करता। मेरी नजरों में कई बार सड़क पर घूमते हुए वंचित लोग आते हैं, ऐसे लोग जिन्हें दुनिया शायद नोटिस ही नहीं करती है। होर्डिंग के डिजाइन, सड़कों पर फैला हुआ कूड़ा, किसी मंत्री, बड़े आदमी/औरत की बेहद इरिटेट करती बेसुरे हूटर वाली सफेद गाड़ी, ट्रैफिक का कोई वायलेशन, ये मेरी आंखों के आगे तैरते रहते हैं। यह तो हुई मेरी बात, अब कुछ और बात करते हैं।
पिछले बहुत सालों से मेरी नजर उन सब भी पढ़ती है जो अपने टू व्हीलर पर या तो बहुत तेज चलते हैं यह तीन लोग बैठकर चलते हैं या दो लोग भी बैठे हो तो बिना हेलमेट के चलते हैं। आज 9:30 बजे मेरी नजर तीन ऐसे युवाओं पर पड़ी जिन्होंने सड़क पार करने के लिए अपने स्कूटर को अपने हाथ में ही उठा लिया। यह नजारा देहरादून की राजपुर रोड के सिल्वर सिटी मॉल के सामने का था। थोड़ी देर आगे चला तो बिना हेलमेट के दो हीरो zoom zoom करते हुए अपनी बाइक पर किसी जादूगर की तरह ओझल हो गये।
यह सब सीन देहरादून की सड़कों पर आम है। इन्हीं आम बातों से काम की बातों को कुछ और आगे बढ़ाते हैं। जब इस किस्म के लोग कुछ सुनने, सीखने को तैयार ही नहीं है तो हमारी उत्तराखंड पुलिस और देहरादून पुलिस इन पर अनुशासन का चाबुक तेजी से क्यों नहीं चलाती? इस वर्ग को अवेयरनेस, एजुकेशन या हैंड होल्डिंग की जरूरत नहीं है। ये तो सिर्फ तभी सुधरेंगे जब इनके ऊपर 5-5 या 10, 20 हजार के फाइन लगेंगे या इनकी गाड़ियां 6 महीने के लिए जब्त होंगी। ध्यान रहे कि हल्के-फुल्के बदलावों से कोई बदलाव नहीं आने वाला है। आमूल चूल परिवर्तन करने के लिए और शहर और राज्य को व्यवस्थित बनाने के लिए सरकार, शासन, प्रशासन और पुलिस महकमे को इन हुड़दंगियों के साथ सख्त, कड़क अप्रोच की जरूरत है। उम्मीद करुंगा की आने वाले नए साल में एक नई रणनीति के साथ हमारा पूरा महकमा सड़कों पर उतरेगा और इस अराजकता को दूर करेगा। अगर दूर ना भी करें तो कुछ कम जरुर करेगा। हैप्पी न्यू ईयर इन एडवांस।
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