आओ जीएसटी जीएसटी खेलें ……

–अरुण श्रीवास्तव
आप भी सोचते होंगे कि यह भी कोई खेल है! हैं या नहीं, पता नहीं। पर… सरकार खेल तो रही है वो भी रिमोट कंट्रोल संचालित खेल की तरह।अब जब बंदर के हाथ में उस्तरा और बच्चों के हाथ में रिमोट लग जाए तो यही होता है। बहरहाल… एक कहावत है कि,’ साहित्य में थूंक कर चाटना अगर विभत्स रस की श्रेणी में आता है तो राजनीति में यह श्रृंगार रस की श्रेणी में आना चाहिए। अब जीएसटी या इसे लागू करने वालों को किस श्रेणी में रखा जाए ये जनता पर छोड़ देते हैं। इसलिए कि हम जनता ने ही राक्षसी बहुमत देकर कानून बदलने के नाम पर ‘हम चाहें ये करें, हम चाहे वो करें मेरी मर्ज़ी … करने की खुली छूट दे रखी है जो कि अब मनमर्जी हो गई है। नित नए नियम-कानून लागू कर देना, नित नई योजना शुरू कर देना वो भी बिना पुराने की उपलब्धियां/कमियां बताए। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया और डिजिटल इंडिया आदि इसके उदाहरण हैं। ताज़ा मामला आठ साल पहले शुरू की गई चार-पांच स्लैब वाली जीएसटी को दो-तीन स्लैब कर देना।
अखबारी सुर्खियां : अमर उजाला में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल के अनुसार सरकार 2017 के बाद से ही इसके सुधारों पर काम कर रही है। करीब एक साल पहले विचार आया…’अब लोग समझने लगे हैं कि यह व्यवस्था क्या है?अब हमें मूल सिद्धांतों पर वापस जाना होगा।
सान्याल अर्थशास्त्री भी हैं और क्रांतिकारी नामक किताब के लेखक भी। तो आठ साल लगे वापस जाने में। अगर यही हाल रहा तो कौन जाने नोटबंदी 2.0 की घोषणा कर सरकार एक हज़ार और पांच सौ के पुराने नोटों को चलन में फिर ढकेल दे और मंत्री से लेकर संत्री, नौकरशाह से लेकर अमित शाह (सिर्फ तुकबंदी के लिए) और गोदी मीडिया से लेकर गोदी पत्रकार तक इसे मोदी जी का ‘मास्टर स्ट्रोक’ बताने लगें।
जीएसटी एक प्रभावी कर प्रणाली है। इस कर प्रणाली को 160 से अधिक देशों ने अपनाया है, लेकिन इसकी सफलता सरलता और कार्यान्वयन पर निर्भर करती है। न्यूजीलैंड और सिंगापुर की प्रणाली सबसे बेहतर मानी जाती है। जीएसटी का बढ़ता संग्रह रोजगार सृजन में मदद कर सकता है, बशर्ते निचले तबके को इसका लाभ मिले। कोई भी इस बात का अंदाजा लगा सकता है कि जिस देश की आधे से ज्यादा की आबादी पांच करोड़ मुफ्त राशन पर जीवन यापन कर रही है उसकी माली हालत क्या होगी?
हाल ही में अपने हाथों अपना गाल बजाया गया कि हम फलां देश को पछाड़ कर फलां स्थान पर आ गए हैं और कुछ ही सालों बाद फलां स्थान पर आ जाएंगे। पहले फ्रांस को पटकनी दी थी अब जापान को देने के मुहाने पर उसी तरह से खड़े हैं जिस तरह से विश्व गुरु बनने के मुहाने पर खड़े हैं। तो प्रति व्यक्ति आय और भारत की प्रति व्यक्ति आय में जमीन आसमान का अंतर है और किसी देश की आर्थिक सेहत का बेहतर मापक है। प्रति व्यक्ति आय भी है जो मायने रखती है।
बढ़ती जीएसटी : यह आर्थिक गतिविधियों खपत का संकेतक मात्र है। अधिक जीएसटी संग्रह से सरकार को राजस्व मिलता है, जिसे वह विकास परियोजनाओं में निवेश कर सकती है पर करती हुई दिखाई नहीं देती। हालांकि जीएसटी केवल अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा दर्शाता है।
प्रति व्यक्ति आय: यह देश के नागरिकों की आर्थिक समृद्धि और जीवन स्तर को। उच्च प्रति व्यक्ति आय से खपत, बचत और निवेश बढ़ता है, जो अर्थव्यवस्था को और मजबूत करता है। प्रति व्यक्ति आय को देश का आधार माना जाना चाहिए, क्योंकि यह लोगों की वास्तविक आर्थिक स्थिति को दर्शाता है। इसलिए बल्लियों मत उछालिए कि हमारे जीएसटी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। सवाल यह है कि हम कितना आगे बढ़ रहे हैं। (लेख में प्रकट विचार लेखक के निजी हैं -एडमिन)
