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मियावाकी विधि: कम समय में घने जंगल का निर्माण

-उषा रावत –

मियावाकी वृक्षारोपण विधि एक ऐसी तकनीक है जिसे जापानी वनस्पतिशास्त्री डॉ. अकिरा मियावाकी ने विकसित किया। यह विधि तेजी से घने, जैव-विविध और स्व-स्थायी जंगल विकसित करने के लिए जानी जाती है। पारंपरिक वृक्षारोपण की तुलना में यह 10 गुना तेजी से बढ़ता है और 30 गुना अधिक घना होता है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए यह विधि उपयोगी साबित हो रही है।

मियावाकी विधि की प्रक्रिया

मियावाकी विधि का आधार स्थानीय प्रजातियों का उपयोग करके प्राकृतिक जंगल की प्रक्रिया को तेज करना है। इसकी प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:

मिट्टी की तैयारी

सबसे पहले मिट्टी की गुणवत्ता का विश्लेषण किया जाता है। जैविक खाद, कम्पोस्ट और अन्य प्राकृतिक सामग्रियों जैसे भूसी या कोको पीट का उपयोग कर मिट्टी को उपजाऊ बनाया जाता है। मिट्टी को ढीला और हवादार किया जाता है ताकि पौधों की जड़ें बेहतर विकसित हो सकें।

स्थानीय प्रजातियों का चयन

क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुकूल स्थानीय पेड़-पौधों की प्रजातियों का चयन किया जाता है। इसमें छायादार, मध्यम ऊँचाई और छोटे पौधों को शामिल किया जाता है ताकि एक बहु-स्तरीय जंगल बन सके। सामान्यतः 50 से 100 विभिन्न प्रजातियों का उपयोग होता है।

उच्च घनत्व में रोपण

पौधों को प्रति वर्ग मीटर 3 से 5 की दर से बहुत करीब लगाया जाता है। इससे जंगल जैसा घना माहौल बनता है, जो प्राकृतिक जंगलों की नकल करता है। पौधों को बेतरतीब ढंग से रोपा जाता है ताकि जैव-विविधता बनी रहे।

मल्चिंग और देखभाल

रोपण के बाद मिट्टी को नमी बनाए रखने और खरपतवार को रोकने के लिए मल्चिंग की जाती है, जिसमें पुआल, सूखी पत्तियाँ या लकड़ी के चिप्स का उपयोग होता है। पहले 2 से 3 वर्षों तक नियमित पानी और देखभाल की आवश्यकता होती है। इसके बाद जंगल स्व-स्थायी हो जाता है।

लाभ

मियावाकी विधि के कई लाभ हैं। यह पेड़ों को तेजी से बढ़ने में मदद करती है, जिससे 2 से 3 साल में घना जंगल तैयार हो जाता है। स्थानीय प्रजातियों के उपयोग से जैव-विविधता बढ़ती है, जो पक्षियों और कीटों के लिए आवास प्रदान करती है। यह कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण, मिट्टी संरक्षण और स्थानीय तापमान को कम करने में सहायक है। शहरी क्षेत्रों में छोटे भूखंडों पर भी घने जंगल बनाए जा सकते हैं। शुरुआती देखभाल के बाद जंगल को लंबे समय तक रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती।

चुनौतियाँ

इस विधि में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। प्रारंभिक लागत अधिक हो सकती है, क्योंकि मिट्टी की तैयारी और स्थानीय प्रजातियों के चयन में निवेश की आवश्यकता होती है। शुरुआती वर्षों में नियमित पानी की जरूरत होती है, जो जल-कमी वाले क्षेत्रों में कठिन हो सकता है। साथ ही, कई क्षेत्रों में इस विधि के बारे में जागरूकता और प्रशिक्षण की कमी है।

भारत में उपयोग

भारत में मियावाकी विधि को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अपनाया जा रहा है। मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों में कई छोटे मियावाकी जंगल बनाए गए हैं। गैर-सरकारी संगठन जैसे ‘अफोरेस्ट’ और ‘सयट्रीज़’ इस विधि को बढ़ावा दे रहे हैं। ये जंगल स्थानीय जैव-विविधता को बढ़ाने और पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहे हैं।

निष्कर्ष

मियावाकी वृक्षारोपण विधि एक प्रभावी और स्थायी समाधान है जो कम समय में घने और जैव-विविध जंगल विकसित कर सकती है। यह शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भारत जैसे देश में, जहां हरियाली की आवश्यकता बढ़ रही है, यह विधि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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