आपदा/दुर्घटनाब्लॉग

आतताई बंदर और लंगूर मजबूर कर रहे हैं लोगों को पलायन के लिए

According to the forest department, Uttarakhand is home to around 1.5 lakh monkeys and their population is increasing 36% every year. The ones causing menace in the state are the rhesus macaque (Macaca mulatta), which is in the Red List of IUCN’s threatened species.

गौचर से दिग्पाल गुसांईं-

अलग राज्य बने 23 साल बीत गए हैं लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में बंदरों, सुअरों, लंगूरों के अलावा जंगली जानवरों की समस्या से आज तक निजात नहीं मिल पाई है। हालात ऐसे हो गए हैं कि बंदर व लंगूर भी जंगली जानवरों की प्रवृत्ति पर उतर आए हैं। इससे पहाड़ का आम जनमानस दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं।

अलग राज्य बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों की समस्याओं का समाधान आसानी से हो जाएगा। लेकिन शासन सत्ता जिस भी दल के हाथों में रही हो किसी ने भी पहाड़ वासियों की समस्याओं का समाधान करने के ठोस उपाय नहीं किए हैं। नतीजतन पलायन में ही लोगों ने अपनी भलाई समझी है।

पिछले कई सालों से पहाड़ी क्षेत्रों में बंदरों, लंगूरों व जंगली जानवरों ने कास्तकारी को भारी नुक़सान पहुंचाने के साथ ही जानमाल को खतरा पहुंचाया है। पहाड़ का कास्तकार किसी तरह हाड़तोड़ मेहनत कर फसलें उगाता है लेकिन फल मिलने से पहले ही उत्पाती बंदर, लंगूर व सुअर उनकी मेहनत में पानी फेर दे रहे हैं। अब तो बंदर व लंगूर हिंसक प्रवृत्ति पर उतर आए हैं। इससे लोग दहशत के साए में जीने को मजबूर हो गए हैं।

सरकारों ने कभी काश्तकारों की आय दोगुनी करने तो कभी बंदरों के बधिया करण करने के साथ ही सुअरों को मारने के आदेशों को खूब प्रचारित किया लेकिन हकीकत तो यह है कि इन आदेशों पर कहीं भी अमल होता नहीं दिखाई दे रहा है। गौचर नगर पालिका क्षेत्र के पनाई गांव में लंगूर द्वारा एक महिला पर हमला करने का मामला प्रकाश में आया है।

दिनेश चंद्र शैली ने बताया कि उनकी पत्नी शक्ति शैली अपने घर पर खेत में काम कर रही थी। लंगूर ने उन पर झपटा मारने की कोशिश की जिससे वे चोटिल हो गई हैं। इसकी शिकायत वन विभाग व पालिका से भी की गई लेकिन शासनादेश का हवाला देकर एक दूसरे की जिम्मेदारी बताकर टालमटोल पर उतर आए हैं। दरअसल गौचर क्षेत्र में लंबे समय से बंदरों व लंगूरों ने कास्तकारों के साथ ही आम जनता का जीना मुश्किल कर दिया है।

व्यापार संघ अध्यक्ष राकेश लिंगवाल का कहना है कि इस समस्या से वे कई बार सी एम हेल्पलाइन पर शिकायत कर चुके हैं लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। बंदरखंड की महिलाएं भी कुछ समय पहले वन विभाग व पालिका का घेराव कर चुकी हैं। लेकिन आजतक किसी के कान में जूं तक नहीं रेंगा है।

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