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उत्तराखण्ड का मछली व्यवसाय मानसून ने किया तबाह

 

 

 

  • OUT OF A TOTAL STREAM LENGTH OF 2686 KM, 725 KM IS SUITABLE FOR FOOD AND GAME FISH.
  • THE AVAILABLE AREA OF LAKES IN UTTARAKHAND IS 297 HECTARES.IT IS
  • PROPOSED TO INSTALL AROUND 248 CAGES IN THE STATE TO AUGMENT FISH PRODUCTION.
This data was given to Surendra Singh Sajawan, president of Kisan Sabha UK by the Department of Fishery

जयसिंह रावत

जलवायु परिवर्तन का प्रकोप उत्तराखण्ड के उभरते मत्स्यपालन व्यवसाय पर भी साफ नजर आने लगा है। अनिश्चित और अत्यधिक बारिश के कारण नदी नालों में आ रही त्वरित बाढ़ के कारण राज्य का मछली व्यवसाय उभरने के बजाय घाटे का सौदा होता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण इस साल का मानसून है जिसमें अब तक राज्य की लगभग 100 सहकारी समितियों की 39.92 करोड़ मूल्य की  लगभग 1597.32 कुन्तल मछलियां नष्ट हो गयीं।

राज्य गठन से पूर्व केवल 3 थीं हैचरियां

एक जमाना था जबकि उत्तराखण्ड में व्यवसायिक तौर पर उत्तरकाशी के कालद्यानी, और चमोली के तलवाड़ी तथा बैरांगना में ट्राउट मछलियों की हैचरियां थीं। धीरे धीरे मछलियों की मांग बढ़ने तथा इस व्यवसाय में अच्छी आमदनी की संभावनाओं के चलते लोग निजी तौर पर भी और सहकारी संस्थाओं के माध्यम से भी मछली पालन में जुड़ते गये। आज कम से कम सौ सहकारी समितियां और बाकी हजारों निजी व्यवसायी इस व्यवसाय में जुड़े हुये हैं। राज्य गठन के 23 साल बाद भी राज्य के बड़े जलाशयों की मछलियां अभी तक उत्तराखण्ड के हिस्से में नहीं आ पायी।

340 करोड़ की मछलियां हो गयी तबाह

अतिवृष्टि के कारण आने वाली त्वरित बाढ़ के कारण यह व्यवसाय अति जोखिमपूर्ण होता जा रहा है। राज्य मत्स्य निदेशालय द्वारा अखिल भारतीय किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेन्द्रसिंह सजवाण को दी गयी लिखित जानकारी के अनुसार 2023 की मानसूनी आपदा में उत्तरकाशी की 19, चमोली की 4, टिहरी की 6, चम्पवात की 5 पिथौरागढ़ की 4, हरिद्वार की 49 और देहरादून की 12 मत्स्यपालक सहकारी समितियों की विभिन्न प्रजातियों की 1597.32 कुंतल मछलियां नष्ट हो गयीं जिनका मूल्य लगभग 399.28 लाख रुपये आंका गया। इनमें से अकेले चमोली के मत्स्य पालक पानसिंह बिष्ट को 96 लाख का नुकसान हुआ है। पहाड़ों में अत्यधिक ढाल के कारण नालों में अक्सर त्वरित बाढ़ आने के कारण वे बहुत विकराल रूप धारण कर अपने नियमित मार्ग से भी काफी दूर तक भारी नुकसान करते है। जबकि हरिद्वार में इस बार कई गावों के जलमग्न होने के साथ ही हैचरियों में बाढ़ का पानी भरने से मछलियां जीवित या मृत बाढ़ के पानी में समा गयीं। हरिद्वार में इस बार हैचरियों से लगभग 1373 कुंतल मछलियां नष्ट हो गयीं।

जितना लाभप्रद उतना ही जोखिम भरा है मछली पालन

हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड पर्वत श्रृंखलाओं और जंगलों से भरापूरा है, जिसमें बड़ी नदियों, सहायक नदियों, पहाड़ी झरनों, झीलों और जलाशयों के रूप में विविध जलीय संसाधन हैं। इतने विशाल और विविध ठंडे पानी के संसाधनों के साथ, इस राज्य के पास इस क्षेत्र के लिए स्थानीय मछली जर्मप्लाज्म और स्थानिक प्रजातियां हैं। अधिक ऊंचाई पर ट्राउट, विशेष रूप से रेनबो प्रजाति, स्नो ट्राउट, ब्राउन ट्राउट के साथ-साथ महासीर और विदेशी कार्प जैसी ‘‘कम मात्रा, उच्च मूल्य वाली प्रजातियों’’ के विकास की जबरदस्त गुंजाइश है। लेकिन उत्तराखण्ड में भैगोलिक परिस्थतियां मत्स्यपालन के लिये जितनी अनुकूल हैं उतनी ही प्रतिकूल भी हैं। इसलिये यह व्यवसाय जितना लाभप्रद और उतना ही जोखिम भरा भी है।

उत्तराखण्ड में मछलियों की कुल 132 मछली प्रजातियों

भारत सरकार के आंकणों के अनुसार विश्व स्तर पर विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों से मछलियों की कुल 21,723 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं। भारत में मछलियों की 2,513 प्रजातियाँ पाई गई हैं, जो विश्व की मछली आबादी का 11.1 प्रतिशत हैं। जिनमें से 1,580 समुद्री और 933 मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में पाई जाती हैं। देवी प्रसाद उनियाल और मनीषा उनियाल के एक शोध पत्र ‘‘ फिश फौना ऑफ उत्तराखण्ड, प्रजेंट स्टेटस, डाइवर्सिटी एण्ड कन्जर्वेशन’’ के मुताबिक उत्तराखण्ड में 27 परिवारों और 8 गणों से संबंधित मछलियों की कुल 132 प्रजातियों पायी गई है। इनमें मछली के जिलेवार वितरण में सबसे अधिक 101 प्रजातियाँ नैनीताल से, इसके बाद देहरादून से 81 प्रजातियाँ, हरिद्वार से 75, उधमसिंहनगर से 73, पौड़ी गढ़वाल से 59, रुद्रप्रयाग से 37, अल्मोडा से 36, चमोली से 35, बागेश्वर से 34, पिथौरागढ़ और चंपावत से 32 और उत्तरकाशी और टिहरी गढ़वाल से 29-29 प्रजातियाँ शामिल हैं।  इनके अलावा 10 प्रजातियाँ लुप्तप्राय की श्रेणी में हैं, जबकि 10 प्रजातियाँ प्रकृति में विदेशी हैं और 11 प्रजातियाँ उत्तराखंड राज्य के लिए स्थानिक हैं। उत्तराखंड में ट्राउट मछली पालन न केवल एक लाभदायक व्यवसाय है, बल्कि क्षेत्र के कई लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है। मछली पकड़ने के आधार पर ऊपरी क्षेत्र (पहाड़ी क्षेत्र) में प्रमुख प्रजातियाँ स्किजोथोरासिन प्रजातियाँ हैं और मैदानी इलाकों में प्रमुख प्रजातियाँ बैरिलियस प्रजातियाँ हैं।

मछली के शैकीन बहुत कम हैं उत्तराखण्ड में

मछली का भोजन स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त लाभकारी होने के बावजूद अभी उत्तराखण्ड में इसकी खपत काफी कम है। मछली ओमेगा-3 फैटी एसिड और विटामिन जैसे डी और बी2 (राइबोफ्लेविन) से भरपूर होती है। मछली कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होती है और आयरन, जिंक, आयोडीन, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे खनिजों का एक बड़ा स्रोत है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन स्वस्थ आहार के हिस्से के रूप में प्रति सप्ताह कम से कम दो बार मछली खाने की सलाह देता है। फिर भी उत्तराखण्ड में मछली का आहार अभी तक काफी कम है। वर्ष 2021 में लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सरकार की ओर से बताया गया था कि लक्ष्यदीप में जहां प्रति वर्ष औसतन प्रति व्यक्ति 105.6 किग्रा, निकाबार में 59 किग्रा और 25.45 किग्रा मछली का आहार करता है वहीं उत्तराखण्ड में औसतन एक व्यक्ति प्रतिवर्ष केवल 700 ग्राम और राजस्थान में 860 ग्राम मछली खाता है।

कम खपत की भी पूर्ति नहीं हो पा रही

उत्तराखण्ड में मछली की कम खपत के बावजूद राज्य का मछली उत्पादक क्षेत्र अवाश्यकतानुसार आपूर्ति भी नहीं कर पा रहा है। जीबी पन्त विश्वविद्यालय के अनिल शर्मा और आशुतोष मिश्रा के शोध पत्र के अनुसार  2018-19 के दौरान, उत्तराखंड राज्य ने 4320 टन मछली और 65.56 मिलियन मछली बीज ) का उत्पादन किया, जो वास्तविक मांग से बहुत कम है। वर्ष 2022 में उत्पादन 6000 टन तक पहंुचा फिर भी मांग की पूर्ति के लिये बाहरी राज्यो ंसे मछली आयात करनी पड़ी। यहा मछली उत्पादन में मुख्य बाधाओं में से एक आवश्यक मात्रा में गुणवत्तापूर्ण मछली बीज की उपलब्धता मानी जा रही है।

 

 

 

 

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