देहरादून का कबाड़ा कर रहा है नागरिकों का अपना नगर निगम
-जयसिंह रावत-
उत्तराखंड के राजधानी शहर की सुंदरता और सफाई के बारे में *स्वच्छ दून, ग्रीन दून* जैसे कशीदे कसे जाते हैं। यह शहर वास्तव में वैसा था भी, जो अब नहीं है। यह शहर कभी लघु भारत कहा जाता था। इसकी सुंदरता, स्वास्थ्य वर्धक आवोहवा से आकर्षित हो कर देश भर से लोग यहाँ आकर बसते थे। लेकिन जनसंख्या के दबाव और नागर कुप्रबंधन में कारण यह पसंदीदा शहर अपनी ख्याति खो बैठा। जहाँ तहां आपको गन्दगी के ढेर मिल जाएंगे। सीवर लाइन का पानी सड़क पर बहता नज़र आ जायेगा और नालियों से उमड़ती बदबू सिर दर्द कर देगी।
अगर आपको सच्चाई जाननी हो तो ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं । मुख्य शहर के प्रवेश द्वार रिस्पना पुल और आकाशवाणी दूर दर्शन के बीच आपको सच्चाई के दर्शन हो जाएंगे।
दूरदर्शन दूर देखता देखता है, मगर नाक के नीचे खुली सड़क पर उसे गन्दगी नजर नहीं आती। आकाशवाणी की वाणी से सरकार की तारीफ के अलावा कुछ नहीं निकलता है।
हैरानी का विषय यह कि जिस नागर निगम के पास नगर को साफ सुथरा रखने की जिम्मेदारी है, वही नगर निगम हाथ गाड़ियों में ढो कर सड़क पर कूड़ा डालता है। चुने गये लोग धर्म, जात बिरादरी और नेताओं के नाम पर चुनाव जीतते हैं, अतः उनको भी क्या पड़ी है नगर को साफ रखने की? अब कोई मोदी जी के पास शिकायत ले कर तो जायेगा नहीं कि, हुजूर हमने तो आपके नाम पर इन प्रजावत्सल लोगों को वोट दिया था।
पहले ऐसी जगहों पर बड़े बड़े कूड़ेदान हुआ करते थे और लोग उन्ही में कूड़ा डाल देते थे जो सड़क पर नहीं बिखरता था । सुबह गाडी आ कर उसे उठा कर ले जाती थी और दूर खाली कर वापस छोड़ जाती थी। उन कूड़ादानों को एक अति दूरदर्शी मुख्य सचिव ने 15दिन् में उठवाने के आदेश तो दे दिये मगर कूड़ा उठाने की व्यवस्था नहीं की। इस महान कार्य के लिए उस मुख्य सचिव को इनाम के तौर पर भारत का निर्वाचन आयुक्त बना दिया गया। शायद निर्वाचन आयोग को ऐसे ही सुधारकों की जरूरत थी।
जिन पेड़ों के नाम पर देहरादून को ‘ग्रीन दून” कहा जाता था और जो ऑक्सीजन दे कर आवोहवा को तरोताज़ा और स्वास्थ्यवर्धक रखते थे उन्हें बेरहमी से कटवा दिया। गली मोहल्लों में सडकों कि हालत खसराब है।
(नोट:-ये विचार लेखक के निजी हैं, जिनसे एडमिन का सहमत होना जरूरी नहीं है। – एडमिन)