म्यूचुअल फंड सही है …..
By- Milind Khandekar
दिल्ली में आज से क़रीब 30 साल पहले UTI के Master Gain 93 म्यूचुअल फंड के फ़ॉर्म बंट रहे थे तो भीड़ को सँभालने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा था, कुछ ऐसा ही सीन मुंबई में Morgan Stanley के फंड के ऑफ़र के लिए देखने मिला था. अब आपको म्यूचुअल फ़ंड ख़रीदने के लिए कहीं लाइन में नहीं लगाना पड़ता है. आपके फ़ोन में एक एप ही ख़रीदने बेचने का काम कर देता है. पिछले हफ़्ते सारे म्यूचुअल फंड की संपत्ति 50 लाख करोड़ रुपये पार कर गई. दस साल पहले तक यह आँकड़ा 10 लाख करोड़ रुपये था. हिसाब किताब में चर्चा इस बड़े बदलाव की.
पहले समझ लेते हैं कि म्यूचुअल फंड होता क्या है? इसके नाम से साफ़ है कि सबका मिलाजुला फंड है. कंपनी बाज़ार में फंड लाती है. लोग इसके यूनिट ख़रीदते हैं. NFO यानी न्यू फंड ऑफ़र में यूनिट ख़रीद सकते हैं या फिर बाज़ार से NAV यानी नेट असेट वैल्यू पर. NAV एक यूनिट की क़ीमत होती है. निवेशकों के पैसे फंड बाज़ार में लगाता है. उसके रिटर्न के आधार पर NAV तय होता है. मोटे तौर पर तीन तरह के फंड होते हैं. शेयर बाज़ार में सारे पैसे लगाने वाली इक्विटी फंड, बांड बाज़ार में पैसे लगाने वाला डेट फंड और दोनों बाज़ार में पैसे लगाने वाला हाइब्रिड फंड. इक्विटी में रिस्क ज़्यादा है और रिटर्न भी जबकि डेट फंड में रिस्क और रिटर्न दोनों कम है.
भारत में पहला फंड यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) ने 1964 में लाँच किया था. यह सरकार की कंपनी थी . इसका US 64 काफ़ी लोकप्रिय था. क़रीब 25 साल तक UTI की मोनोपॉली थी. 1987 में बाक़ी सरकारी कंपनियों जैसे LIC, SBI को भी फंड लाने की अनुमति दी गई. असली खेल बदला 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद. देश विदेश की प्राइवेट कंपनियों को फंड खोलने की अनुमति दी गई. निवेशकों की संख्या बढ़ना शुरू हुई. 2014 तक म्यूचुअल फंड की कुल संपत्ति दस लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गई.
दस साल पहले यह आँकड़ा आकर रुक गया था. शेयर बाज़ार के साथ साथ SEBI म्यूचुअल फंड की देखरेख भी करता है. उसने पाया कि निवेशक दो कारण से नहीं बढ़ पा रहे है. 85% निवेशक दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में है यानी फंड छोटे शहरों तक पहुँच नहीं पा रहे हैं. शेयर बाज़ार में उतार चढ़ाव के कारण भी लोग डरते थे.
शेयर बाज़ार पर किताबें लिख चुके गौतम बैद ने मुझे बताया था कि म्यूचुअल फंड सही है विज्ञापन से फ़र्क़ पड़ा. यह विज्ञापन म्यूचुअल फंड कंपनियों की संस्था AMFI ने 2017 में निकाला था. म्यूचुअल फंड में निवेश का एक तरीक़ा तो है कि आपने एकमुश्त ख़रीद लिए. दूसरा तरीक़ा है Systematic Investment Plan (SIP) . निवेशक हर महीने ₹500 से SIP शुरू कर सकता है. 2016 में हर महीने 7 हज़ार करोड़ रुपये SIP से बाज़ार में लगते थे. पिछले महीने यह आँकड़ा 17 हज़ार करोड़ रुपये तक पहुँच गया. 50 लाख करोड़ की संपत्ति में से SIP की हिस्सेदारी लगभग 10 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गई है. यह निवेशक बाज़ार के उतार-चढ़ाव से डर नहीं रहा है. बड़े 30 शहरों से अब 83% निवेश हो रहा है यानी धीरे धीरे छोटे शहरों में जागरूकता बढ़ रही है.
SIP क्रांति ने शेयर बाज़ार का खेल ही बदल डाला है. पहले विदेशी निवेशकों के भरोसे पर ही बाज़ार चलता था. कहा जाता था कि वो छींक भी दें तो बाज़ार धड़ाम हो जाता था. अब उनका असर पहले से कम हुआ है. 2015 में विदेशी निवेशक FII और देशी निवेशक कंपनी DII के बीच शेयरों का अंतर 50% से ज़्यादा था. पिछले साल सितंबर में वो घट कर वो 13% रह गया. प्राइम डेटा बेस का अनुमान है कि आने वाले समय में DII के पास FII से ज़्यादा शेयर होंगे. DII में म्यूचुअल फंड की बड़ी हिस्सेदारी है. इसके अलावा इंश्योरेंस कंपनी भी शामिल है.
भारत में म्यूचुअल फंड के बढ़ने का स्कोप अभी बहुत है. फंड के पैसे लगाने वालों की संख्या अब भी 4 करोड़ है. पिछले पाँच साल में यह आँकड़ा दोगुना हुआ है. सेविंग के लिए हम लोगों का भरोसा अब भी बैंक पर है. सेविंग 100 रुपये हो रही है तो बैंक में ₹52 रखे हैं, इंश्योरेंस में ₹24 और म्यूचुअल फंड में ₹13. बाक़ी दुनिया के मुक़ाबले भी हमारे यहाँ निवेश कम है. फंड की कुल संपत्ति 50 लाख करोड़ रुपये हो गई है. हमारी GDP के अनुपात में संपत्ति 14% है जबकि विकसित देशों में यही आँकड़ा 100% से ज़्यादा है.
म्यूचुअल फंड में आपने पैसे लगाने शुरू नहीं किए हैं तो SIP के रास्ते सोच सकते हैं. इस चेतावनी के साथ बात ख़त्म कते हैं कि निवेश जोखिम भरा है. आपका मूल धन लौटने की गारंटी भी नहीं है. निवेश का नियम भी यही है जितना ज़्यादा रिस्क उतना रिटर्न. आप अपनी रिस्क प्रोफ़ाइल के आधार पर फंड चुन सकते हैं.