आपदा/दुर्घटना

उत्तराखण्ड को आपदा-सुरक्षित राज्य बनाने हेतु एनडीएमए का आश्वासन

देहरादून, 12 सितम्बर। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के विभागाध्यक्ष एवं सदस्य श्री राजेंद्र सिंह ने आज उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) का दौरा कर मानसून से हुई क्षति की विस्तृत समीक्षा की। उन्होंने आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं बचाव कार्यों की स्थिति का जायजा लिया और भविष्य में आपदा प्रबंधन को और प्रभावी बनाने के लिए कई सुझाव दिए।

श्री सिंह ने कहा कि एनडीएमए “बिल्ड बैक बेटर” की थीम पर उत्तराखण्ड को आपदा-सुरक्षित राज्य बनाने के लिए हर स्तर पर सहयोग को तैयार है। उनके अनुसार आपदा प्रबंधन केवल संकट से निपटने का माध्यम नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण के दौरान टिकाऊ और पर्यावरण-संवेदनशील विकास सुनिश्चित करने का अवसर भी है।

बैठक में हाल ही में हुई आईएमसीटी (इंटर मिनिस्टीरियल सेंट्रल टीम) की रिपोर्ट और आगामी पीडीएनए (पोस्ट डिज़ास्टर नीड्स असेसमेंट) पर चर्चा हुई। श्री सिंह ने कहा कि आपदा के बाद व्यवस्थित आकलन जरूरी है, जिससे क्षति, प्रभावित जनसंख्या, बुनियादी ढांचे और आजीविका पर प्रभाव का वैज्ञानिक मूल्यांकन हो सके। उन्होंने स्पष्ट किया कि पीडीएनए टीम जल्द ही उत्तराखण्ड आएगी और आकलन के आधार पर केंद्र से अतिरिक्त आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।

उन्होंने सचिव आपदा प्रबंधन श्री विनोद कुमार सुमन को निर्देश दिए कि राहत एवं बचाव कार्यों में आई चुनौतियों और अनुभवों का दस्तावेजीकरण करें ताकि भविष्य की नीति, प्रशिक्षण और संसाधन योजना में उनका उपयोग हो सके। सचिव श्री सुमन ने बताया कि इस वर्ष आपदाओं ने लोगों की आजीविका को गहरा प्रभावित किया है और राज्य को पुनर्निर्माण एवं न्यूनीकरण कार्यों के लिए एनडीएमए से सहयोग की अपेक्षा है। इस अवसर पर प्रशासनिक और तकनीकी अधिकारी भी उपस्थित थे।

राहत एवं बचाव अभियानों की सराहना करते हुए श्री सिंह ने कहा कि प्रभावित लोगों को 24 से 72 घंटे के भीतर राहत राशि उपलब्ध कराना प्रशासन की तत्परता और संवेदनशीलता को दर्शाता है। उन्होंने जोर दिया कि आपदा पीड़ितों के साथ मानवीय संवेदना से जुड़ना और उनके पुनर्वास में सहयोग करना प्रशासन की सर्वोच्च जिम्मेदारी है।

जोशीमठ में चल रहे कार्यों की जानकारी लेते हुए उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय राज्य में भूस्खलन, ग्लेशियर झील फटना और अतिवृष्टि जैसी चुनौतियाँ गंभीर हैं। उन्होंने नदी किनारे बसे कस्बों की मैपिंग और जोखिम आकलन (रिस्क असेसमेंट) करने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कर समय रहते सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकें।

श्री सिंह ने यह भी कहा कि आपदाओं के कारण पलायन न हो, इसके लिए व्यापक कार्ययोजना जरूरी है। यह केवल आजीविका का प्रश्न नहीं, बल्कि राज्य की सामरिक स्थिति और पर्यटन-निर्भर अर्थव्यवस्था के लिए भी अनिवार्य है।

उन्होंने राज्य के वैज्ञानिक एवं शोध संस्थानों के साथ समन्वय बढ़ाने पर जोर दिया और कहा कि उनके अनुभव व तकनीकी संसाधनों से आपदा पूर्व तैयारी को मजबूत किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि सुरक्षित पर्यटन और चारधाम यात्रा को आपदा-जोखिम से मुक्त बनाना राज्य की प्राथमिकता होनी चाहिए।

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