नीति आयोग ने न्याय तक त्वरित पहुंच के लिए ऑनलाइन विवाद समाधान पर जोर दिया

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नीति आयोग ने विवाद से बचने, रोकथाम और ऑनलाइन समाधानके लिए आज ‘डिजाइनिंग द फ्यूचर ऑफ डिसप्यूट रिजॉल्युशनः द ओडीआर पॉलिसी प्लान फॉर इंडिया’ रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में उल्लिखित सिफारिशों के लागू होने से भारत को तकनीक के इस्तेमाल से और हर व्यक्ति के लिए न्याय की प्रभावी पहुंच के लिए ऑनलाइन विवाद समाधान (ओडीआर) के माध्यम से नवाचार में भारत को वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने में सहायता मिल सकती है।

यह रिपोर्ट 2020 में कोविड संकट के दौरान नीति आयोग द्वारा ओडीआर पर गठित समिति द्वारा तैयार कार्ययोजना कापरिणाम है और इसकी अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) ए के सीकरी ने की है।

रिपोर्ट भारत में ओडीआर फ्रेमवर्क को अपनाने से जुड़ी चुनौतियों से पार पाने के लिए तीन स्तरीय उपायों की सिफारिश करती है। ढांचागत स्तर पर यह डिजिटल साक्षरता, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार और ओडीआर सेवाओं के वितरण के लिए पेशेवरों को तटस्थ रूप में प्रशिक्षित करने की दिशा में काम करने का सुझाव देती है। व्यवहारगत स्तर पर, रिपोर्ट सरकारी विभागों और मंत्रालयों से जुड़े विवादों के समाधान के लिए ओडीआर को अपनाने की सिफारिश करती है। नियामकीय स्तर पर, रिपोर्ट ओडीआर प्लेटफॉर्म और सेवाओं के विनियमन के लिए नरम रुख अपनाने की सिफारिश करती है। इसमें इकोसिस्टम में विकास को प्रोत्साहन और नवाचारों को बढ़ावा देते हुए स्व-विनियमन के उद्देश्य से ओडीआर सेवा प्रदाताओं को मार्गदर्शन के लिए डिजाइन और नैतिक सिद्धांतों का निर्धारण शामिल हैं। रिपोर्ट कानूनों में जरूरी संशोधन करके ओडीआर के लिए मौजूदा विधायी ढांचे को मजबूत बनाने पर भी जोर देती है। रिपोर्ट भारत में ओडीआर के लिए चरणबद्ध कार्यान्वयन के फ्रेमवर्क की पेशकश करती है।

ओडीआर क्या है?

ओडीआर डिजिटल प्रौद्योगिकी और पंच निर्णय, सुलह व मध्यस्थता जैसे एडीआर के उपायों के इस्तेमाल से विशेष रूप से लघु और मध्यम मूल्य के मामलों से जुड़े विवादों का समाधान है। यह पारम्परिक अदालती व्यवस्था के बाहर विवाद से बचने, रोकथाम और संकल्प के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की प्रक्रिया का उल्लेख करती है।विवाद समाधान के माध्यम के रूप में यह सार्वजनिक अदालती व्यवस्था के विस्तार और उससे इतर दोनों के तौर पर प्रदान किया जा सकता है। दुनिया भर में, विवाद समाधान की क्षमता विशेष रूप से प्रौद्योगिकी के माध्यम से पहचानी जा रही है। ओडीआर को कोविड-19 के कारण पैदा बाधाओं से निपटने के लिए सरकार, व्यवसायों और यहां तक ​​कि न्यायिक प्रक्रियाओं को प्रोत्साहन मिला है।

हमें ओडीआर की क्यों जरूरत है?

कोविड-19 महामारी के चलते समाज का एक बड़ा तबका समय से न्याय हासिल करने में नाकाम रहा है। महामारी के चलते पहले से लंबी अदालती प्रक्रियाओं पर और अधिक बोझ बढ़ाने वाले विवादों की बाढ़ आ गई है। भारत सरकार के प्रमुख नीतिगत थिंकटैंक के रूप में, नीति आयोग ने उन लोगों को किफायती, प्रभावी और समयबद्ध न्याय दिलाने में सहायता के उद्देश्य से प्रौद्योगिकी और नवाचार का उपयोग करने के लिए एक परिवर्तनकारी पहल की, जिनको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। ओडीआर में अदालत के बोझ को कम करने में सहायता करने और मामलों की विभिन्न श्रेणियों के कुशलतापूर्वक समाधान की पूरी क्षमता है। इसे ई-लोकअदालत के माध्यम से अदालत से जुड़े वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) केंद्रों में तकनीक के एकीकरण के माध्यम से न्यायपालिका को समर्थन देने के लिए एकीकृत भी किया जा सकता है और इसे आंतरिक विवादों के लिए सरकारी विभागों के भीतर भी पेश किया जाना चाहिए।

नीति आयोग द्वारा तमाम हितधारकों के साथ मिलकर 20 हितधारक परामर्श और संस्थागत व व्यक्तिगत स्तर पर लगभग 100 संवादों सहित व्यापक चर्चा कराई गई। विचार-विमर्श के दौरान जनता से भी राय मांगी गई थी।

न्यायपालिका (उच्चतम न्यायालय के वर्तमान और पूर्व न्यायाधीशों), अटॉर्नी जनरल, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, उद्योग के प्रतिनिधियों, शैक्षणिक संस्थानों और सिविल सोसायटी के संगठनों के अलावा अन्य घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय विधिक और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ परामर्श किया गिया।

इस पहल को समर्थन के लिए व्यापक सहमति थी। वास्तव में, इन विचार विमर्शों में एक के दौरान उच्चतम न्यायालय की ई-समिति के प्रमुख न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने मानाः

“हर अदालत के सामने आने वाले विविध मुकदमों में, बेहद मौलिक और बहुत छोटे नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण विवादों का समूह होता है, जिन्हें अदालत के सामने नहीं आना चाहिए। मोटर दुर्घटना दावे, चेक बाउंस के मामले, व्यक्तिगत आघात के दावे जैसे मामले और ऐसे मामले जो निपटारे के लिए ओडीआर के पास जा सकते हैं, इनमें शामिल हैं। नीति आयोग की ओडीआर पहल सराहनीय है और मसौदा रिपोर्ट को सावधानीपूर्वक संकलित कर लिया गया है। यह विवाद समाधान और तकनीक के बीच इंटरफेस व भारत में इसके लिए संभावनाओं का अनूठा विश्लेषण है।”

समिति के सदस्यों में नीति आयोग के सीईओ, विधिक मामलों के विभाग में सचिव, न्याय विभाग में सचिव, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम उपक्रम मंत्रालय में सचिव, उपभोक्ता मामलों के विभाग में सचिव, उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग में सचिव, कॉरपोरेट कार्य विभाग में सचिव शामिल हैं। यह रिपोर्ट एक सहयोगात्मक और समावेशी अभ्यास का निष्कर्ष है और इसे बड़े पैमाने पर ओडीआर को लागू करने में भारत को ग्लोबल लीडर बनाने की दीर्घकालिक योजना के एक शुरुआती बिंदु के रूप में काम करना चाहिए। ओडीआर को कैसे विवाद से बचाव, रोकथाम के लिए शुरुआती संपर्क बिंदु के रूप में आगे बढ़ाया जा सकता है और समाधान कब लागू होगा, यह रिपोर्ट इसके लिए रोडमैप निर्धारित करती है।

‘डिजाइनिंग द फ्यूचर ऑफ डिसप्यूट रिजॉल्युशनः द ओडीआर पॉलिसी प्लान फॉर इंडिया’ को न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए के सीकरी, नीति आयोग के वीसी डॉ. राजीव कुमार, सदस्यों प्रो. रमेश चंद, डॉ. वी के सारस्वत और डॉ. वी के पॉ, सीईओ अमिताभ कांत, सचिव (विधि) ए के मेंदीरत्ता और नीति आयोग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में जारी किया गया।

रिपोर्ट के विमोचन के समय न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए के सीकरी ने मानाः “ओडीआर एक ऐसा विचार है जिसका समय आ गया है, मैं सही समय पर इस विशेषज्ञ समिति के गठन की नीति आयोग की पहल की सराहना करता हूं। रिपोर्ट खासी महत्वपूर्ण है और प्रभावशाली होगी, जिसके लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका सहित सभी हितधारकों के साथ परामर्श किया गया है।”

नीति आयोग के वीसी डॉ. राजीव कुमार ने कहा, “नीति आयोग ने उन उपायों पर खासा काम किया है, जो न्याय की मांग करने वाले हर व्यक्ति के लिए न्याय की दक्षता और उसकी पहुंच बढ़ाने में सहायता कर सकती है। ओडीआर को विवादों के समाधान में लंबा सफर तय करना होगा और रिपोर्ट को तेजी से लागू करने की जरूरत है।”

नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा, “ओडीआर रिपोर्ट के माध्यम से, हमारा उद्देश्य एक टिकाऊ फ्रेमवर्क तैयार करना है- जो सक्रिय रूप से दावों की विविध श्रेणियों के लिए पहले उपाय के रूप में वक्त की कसौटी पर खरा उतरने के लिए सामंजस्य स्थापित करता है और बना रहता है।”

सचिव (विधि) अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा, “मैं इस रिपोर्ट के लिए नीति आयोग को बधाई देता हूं, जो भारत में विवाद समाधान के परिदृश्य को बदलने में सहायक होगी। ओडीआर तंत्र को मजबूत बनाने के लिए पहले ही कदम उठाए जा चुके हैं।”

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