अपनी हरकतों और अहंकार के कारण कुर्सी गंवानी पड़ी प्रेमचंद को
-जयसिंह रावत-
देहरादून, 16 मार्च। अपनी हरकतों के कारण उत्तराखंड से वित्त और संसदीय कार्य मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल ने अपनी कुर्सी गँवा दी। लगताहै उन्हें यह पद पच नहीं रहा था। संसदीय कार्य मंत्री रहते हुए सदन में असंसदीय भाषा का उपयोग करने वाले प्रेमचंद ने अपनी छवि खराब करने के साथ ही अपनी सरकार और पार्टी को भी दागदार कर दिया था।
प्रेमचंद विवादास्पद किस्से तब शुरू हो गये थे जब वह पहली बार विधानसभा अध्यक्ष बने थे। उन्होंने अपनों को विधान सभा में नौकरियां देने के साथ ही अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर बेटे को भी उपनल के जरिये जल संस्थान में नौकरी दिला दी। विवाद होने पर बेटे ने नौकरी तो छोड़ दी मगर निर्माण के नये व्यवसाय् में नया विवाद खड़ा कर दिया।
जब मंत्री बने तो हीरोपंथी करने के लिए स्वयं सड़कों पर मारपीट करने लगे । एक मंत्री के साथ सुरक्षा कर्मी होते हैं लेकिन सारी मर्यादाएं त्याग कर प्रेमचंद एक बार खुद कार से उतर कर एक युवक को पीटने लगे। उसी समय जाहिर हो गया था कि ये व्यक्ति मंत्री बनने के लायक नहीं है और उसकी हरकतें गुंडे मवाली जैसी हैं, लेकिन दुर्भाग्य से प्रेमचंद की पार्टी और सरकार ने उसका ऐसा ही बचाव किया जैसा अब पहाड़ियों को ‘साले‘ बोलने पर कर रहे थे।
यही नहीं प्रेमचंद का अहंकार सदैव सातवें आसमान पर रहता था। विधानसभा में अवैध नियुक्तियों को लेकर जब विवाद आसमान पर था और प्रेमचंद निशाने पर थे तो वह अपने अवैध निनायों में RSS पार्टी नेताओं और मंत्रियों को भी शामिल बता कर विदेश चले गये। उनके द्वारा कु गयी नियुक्तियाँ रद्द हो गयीं मगर प्रेमचंद का बाल बांका तक नहीं हुआ। तब भी पार्टी उनका बचाव करती रही। उनकी हरकतें एक नहीं अनेक हैं। भाजपा और सरकार उनके साथ खड़ी रही, तो फिर उन्हें कुर्सी से हटाने की जरूरत क्या थी।
धामी जी के अधिकांश मंत्री इसी तरह अहंकार में डूबे हुए हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री के स्टॉफ भी सत्ता का दुरूपयोग कर रहे हैं । मुख्य मंत्री के अपने स्टाफ का कर्मचारी पत्रकारों को तक धमकाने की जुर्रत करता है और मुख्यमंत्री जी समझते हैं कि चारों तरफ उनका इक़बाल बुलंद हो रहा है।
(नोट-ये लेखक के अपने निजी विचार हैं -एडमिन)