अन्ध विश्वास का मारा बेचारा लक्ष्मी वाहन उल्लू
With the celebration of Diwali, a symbol of victory of light over darkness and knowledge over ignorance, the wise and useful creature of nature, the owl, is also facing peril. Despite conservation laws, people steeped in superstitions will sacrifice owls on the new moon night dedicated to the worship of Lakshmi, in hopes of happiness, peace, and prosperity. The height of ignorance and superstition is evident: the very owl considered the vehicle of the goddess of wealth, Lakshmi, is sacrificed during her worship. Not only that, but those ensnared by ignorance also extract various parts from owls for rituals related to tantra and mantra. Some misuse owl parts on a large scale for magic and sorcery. The owl is as vital a creature in nature as humans are. Nature has assigned the owl responsibilities according to its abilities, which it fulfills diligently. However, due to superstitions, the very existence of owls is now in serious danger. Although the Wildlife Protection Act of 1972 has listed them as endangered species and provided legal protection, superstitions continue to undermine the law.—JSR
–जयसिंह रावत
अन्धकार पर उजाले और अज्ञान पर ज्ञान की विजय की प्रतीक दीपावली के साथ ही प्रकृति के एक बुद्धिमान और उपयोगी जीव उल्लू की भी शामत आ गयी। संरक्षण कानून के बावजूद अन्धविश्वास के अंधकार में डूबे लोग अपनी सुख, शांति और समृद्धि के लिये लक्ष्मीपूजा वाली
अमावश्या की रात बड़े पैमाने पर उल्लुओं की बलि चढ़ा देंगे। अज्ञानताता और अन्ध विश्वास की पराकाष्टा देखिये, कि जिस उल्लू को समृद्धि की देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है उसी लक्ष्मी की पूजा की घड़ी में उल्लुओं की बलि दी जाती है। यही नहीं अज्ञानता के घटाटोप से घिरे लोग तंत्रमंत्र की साधना के लिये उल्लुओं के विभिन्न अंगों को निकाल कर पूजाएं करते हैं। कुछ लोग बड़े पैमाने पर जादू टोने के लिये उल्लू के अंगो का दुरुपयोग करते हैंे। जबकि उल्लू प्रकृति का उतना ही महत्वपूर्ण जीवधारी है जितना कि इंसाान होता है। उल्लू को भी प्रकृति ने उसकी क्षमता और योग्यता के अनुसार जिम्मेदारियां दी हैं जिनका निर्वहन यह प्राणी इमान्दारी से करता रहता है। लेकिन अंधविश्वासों के कारण आज उल्लुओं का वंश ही गंभीर खतरे में है। वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत इसे संकटापन्न जीवों की सूची में डाल कर इसे कानूनी संरक्षण तो दिया गया है मगर अंध विश्वास कानून को भी उल्लू बना रहा है।
उल्लुओं के लिये मरण त्योहार है दीवाली
कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद, भारत में अंधविश्वास, कुलदेवता और वर्जनाओं से जुड़े रहस्यमय अनुष्ठानों और प्रथाओं के लिए बड़ी संख्या में इन पक्षियों की बलि दी जाती है, जो आमतौर पर दिवाली के त्यौहार के आसपास चरम पर होती है। लोगों की ऐसी धारणा है कि दीवाली के दिन अमावस्या की रात को उल्लू की बलि चढ़ाने से धन सम्पदा में वृद्धि होती है। कहा जाता है किअन्धविश्वास पर आधारित यह व्यवसाय इतना कमाऊ है कि जरूरतमंद को इसे हासिल करने के लिये हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं। दिल्ली जैसे महानगरों में एक उल्लू के लिये 50 हजार तक की बोलियां लग जाती हैं। उल्लू की बलि केवल लक्ष्मी को खुश करने के लिये नहीं बल्कि अंध विश्वासी लोगों द्वारा बशीकरण, शत्रुओं के मरण आदि के लिये भी की जाती है। इस बुद्धिमान जीव की बलि चढ़ा कर कुछ लोग बुद्धि की याचना भगवान से करते हैं जबकि कुछ इसे अपशकुन का प्रतीक मान कर शुभेच्छा और अपने कष्टों के अंत के लिये इसे मरवातेे हैं।
तंत्र मंत्र के लिये उल्लू के विभिन्न अंगों का उपयोग
छोटे शहरों और गांवों में उल्लू के अंग जैसे खोपड़ी, पंख, कान के छिलके, पंजे, दिल, जिगर, गुर्दे, खून, आंखें, चर्बी, चोंच, आंसू, अंडे के छिलके, मांस और हड्डियां औपचारिक पूजा और अनुष्ठानों के लिए निर्धारित हैं।यहां तक कि उल्लू के मल से भी जादू टोना किया जाता है। विभिन्न प्रदेशों में उल्लुओं को कल्लंदर पकड़ते हैं। कुछ लोग मुर्गी पालन की तरह उल्लुओं का प्रजनन करा कर उनका व्यवसाय करते हैं। इनका व्यापार अक्सर असंगठित ब्लैक मार्केट और पक्षी बाजारों में होता है जहाँ लोग इन उल्लुओं को खरीदते और बेचते हैं। साथ ही बिचौलियों और तस्करों का एक गुप्त नेटवर्क भी होता है जो छोटे शहरों और गाँवों में संचालित होने वाले संगठित वन्यजीव अपराध सिंडिकेट का हिस्सा होते हैं। इस अवैध व्यापार के हॉटस्पॉट में उत्तर और मध्य भारत, आंध्र प्रदेश, गुजरात और राजस्थान माने जाते हैं।
मूर्ख नही बल्किं एक बुद्धिमान प्राणी है उल्लू
इंसान उल्लू को मूर्खता का प्रतीक मानता है। इसीलिये इस शब्द का प्रयोग गाली के लिये भी किया जाता है जबकि उल्लू एक समझदार और बुद्धिमान प्राणी होता है। कई संस्कृतियों में उन्हें एक बुद्धिमान प्राणी माना जाता है। वे वास्तव में बहुत कुशल शिकारी होते हैं जिनके पास रात में देखने और सुनने की उत्कृष्ट क्षमता है। उनकी उड़ान बिना आवाज की की होती है। विशेषज्ञों के अनुसार उल्लू काफी बुद्धिमान होते हैं और अपनी जीवन शैली के अनुकूल होते हैं। वे शिकारी के रूप में अपने पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
अगर उल्लू नहीं रहेगा तो फिर क्या होगा?
रात को भंति-भांति की आवाजें करने वाला रहस्यमय उल्लू पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्योंकि वह छोटे स्तनधारियों, पक्षियों, मेंढकों, छिपकलियों और कीड़ों को खा कर उनकी आबादी को नियंत्रित करता हैं। चूंकि उल्लू कृतकों का भोजन करता है इसलिये उन्हें नियंत्रित करने के लिए उल्लुओं के बिना कृंतक जनसंख्या में विस्फोट हो सकता है। इस वृद्धि से अतिचारण और फसलों को नुकसान हो सकता है जिससे कृषि और मानव आजीविका प्रभावित हो सकती है।उल्लू खाद्य ऋंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी अनुपस्थिति इस श्रंृखला के संतुलन को बाधित कर सकती है, जिससे न केवल उनके शिकार बल्कि उन शिकारियों पर भी असर पड़ सकता है जो उन शिकार प्रजातियों पर निर्भर हैं। उल्लू जैव विविधता को बनाए रखने में भी भूमिका निभाते हैं। उनके विलुप्त होने से उन प्रजातियों में गिरावट आ सकती है जिन्हें वे नियंत्रित करते हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर अन्य जीवों को और अधिक प्रभावित कर सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार उल्लुओं के खत्म होने से उनके अपशिष्ट और सड़ते हुए शिकार के माध्यम से मिलने वाले पोषक तत्वों में कमी आएगी। इससे मिट्टी की सेहत और पौधों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है। अंधविश्वास के इतर उल्लुओं का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक महत्व भी है और वे शिक्षा और संरक्षण जागरूकता में भूमिका निभाते हैं। उनके विलुप्त होने से ये पहलू कम हो सकते हैं और वन्यजीव संरक्षण में लोगों की रुचि कम हो सकती है। कुल मिलाकर, उल्लुओं के विलुप्त होने से पारिस्थितिक असंतुलन, कीटों की आबादी में वृद्धि और जैव विविधता का नुकसान होने
की संभावना है, जो इन आकर्षक पक्षियों के संरक्षण के महत्व को उजागर करता है।
उल्लुओं की 16 प्रजातियांे पर अस्तित्व का संकट
दुनिया भर में उल्लुओं की 250 से अधिक प्रजातियाँ मानी जाती हैं जिनमें से भारत में लगभग 36प्रजातियाँ हैं। उल्लुओं की सभी भारतीय प्रजातियाँ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित हैं, जिससे उनका शिकार, व्यापार या किसी अन्य प्रकार का उपयोग दंडनीय अपराध है। उनका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भी प्रतिबंधित है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार कानूनी संरक्षण के बावजूद आमतौर पर भारत में उल्लू की कम से कम 16 प्रजातियों की अवैध तस्करी एवं कारोबार किया जा रहा है। इनमें एशियाई बैरेड उल्लू ग्लौसीडियम साइक्लोइड्स, बार्न उल्लू टायटो अल्बा, ब्राउन फिश उल्लू केटुपा जेलोनेंसिस, ब्राउन हॉक उल्लू निनॉक्स स्कूटुलाटा, ब्राउन वुड-उल्लू स्ट्रिक्स लेप्टोग्रामिका, कॉलरड उल्लू ग्लौसीडियम ब्रोडी, कॉलरड स्कॉप्स-उल्लू ओटस बक्कामोएना, डस्की ईगल उल्लू बुबो कमांड्स, ईस्टर्न ग्रास-उल्लू टायटो लॉन्गिमेम्ब्रिस, जंगल उल्लू ग्लौसीडियम रेडिएटम, मोटल्ड वुड-उल्लू स्ट्रिक्स ओसेलाटा, ओरिएंटल स्कॉप्स-उल्लू ओटस
सुनिया, रॉक ईगल-उल्लू बुबो बंगालेंसिस, स्पॉट-बेलिड ईगल-उल्लू बुबो निपलेंसिस, स्पॉटेड उल्लू एथेन ब्रामा और टैनी फिश-उल्लू केटुपा फ्लेविप्स शामिल हैं।
(नोट : लेखक उत्तराखंड हिमालय के मानद सम्पादकीय सलाहकार हैं -एडमिन)