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उत्तराखंड पर नकल माफिया का अटल साया: निरीह साबित हो रहा सख्त कानून

– जयसिंह रावत

उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों में, जहां युवा सरकारी नौकरियों के सपनों को पहाड़ चढ़ते हुए देखते हैं, वहाँ नकल का काला साया फिर लहरा उठा है। 21 सितंबर 2025 को उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यू.के.एस.एस.एस.सी.) द्वारा आयोजित स्नातक स्तरीय पटवारी भर्ती परीक्षा—जिसमें हजारों बेरोज़गार युवाओं की उम्मीदें दांव पर लगी थीं—शुरू होते ही आधे घंटे बाद ही प्रश्नपत्र लीक हो गया। सुबह 11 बजे शुरू हुई परीक्षा के 11:30 बजे तक पूरा प्रश्नपत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका था। आयोग के अध्यक्ष जी.एस. मार्तोलिया ने स्वयं इसकी पुष्टि की, लेकिन सवाल यह है कि सख्त नकल-रोधी कानूनों के बावजूद यह कैसे संभव हुआ? और क्यों फिर से वही नाम—हाकम सिंह रावत—सामने आ रहा है, जिसकी गिरफ्तारी परीक्षा से ठीक पहले हुई थी? यह घटना न केवल भर्ती प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है, बल्कि पूरे तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ों को उजागर करती है।

पेपर लीक मामले में दुबारा गिरफ्तार हाकम सिंह

हाकम सिंह रावत का नाम उत्तराखंड के नकल माफिया की दुनिया में कोई नई पहेली नहीं है। उत्तरकाशी के मोरी क्षेत्र के इस पूर्व भारतीय जनता पार्टी नेता और जिला पंचायत सदस्य की कहानी एक साधारण रसोइए से अरबपति माफिया बनने की है। 2022 में यू.के.एस.एस.एस.सी. पेपर लीक कांड में गिरफ्तार होने से पहले, हाकम एक अधिकारी के घर पर रसोइए और चालक की नौकरी करता था। धीरे-धीरे, उसने नौकरशाही के गलियारों में घुसपैठ कर ली—अधिकारियों को सैकड़ों नाली ज़मीन बेचने से लेकर पेपर लीक के नेटवर्क तक। उसकी संपत्ति करोड़ों में आंकी जाती है: उत्तरकाशी में चार प्लॉट, देहरादून में तीन मंज़िला मकान, और सात बैंक खातों में 16 लाख रुपये फ्रीज़। 2021 की स्नातक स्तरीय भर्ती (916 पद), वन दरोगा (316 पद) और सचिवालय रक्षक (33 पद) परीक्षाओं में उसके गिरोह ने 2.26 लाख अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया। विशेष कार्यबल (एस.टी.एफ.) ने लखनऊ के एक मुद्रणालय मालिक को भी गिरफ्तार किया, जो पेपर लीक का स्रोत था। लेकिन हाकम की गिरफ्तारी के बाद भी, वह जमानत पर बाहर आया और फिर सक्रिय हो गया।

पटवारी परीक्षा से जुड़ी यह ताज़ा घटना हाकम के ‘फिर से जागने’ की मिसाल है। परीक्षा से एक दिन पहले, 20 सितंबर को एस.टी.एफ. ने हाकम को उसके सहयोगी पंकज गौड़ के साथ पटेल नगर से गिरफ्तार किया। आरोप गंभीर हैं: उम्मीदवारों से 10-12 लाख रुपये लेकर परीक्षा पास कराने का वादा, और फेल होने पर ‘अगली परीक्षा में समायोजन’ का बहाना। हाकम का गिरोह न केवल पेपर लीक करता था, बल्कि ‘पास गारंटी’ के नाम पर युवाओं को लूटता था। लेकिन विडंबना देखिए—गिरफ्तारी के बावजूद, पटवारी पेपर लीक हो गया। जांच हरिद्वार जिले के परीक्षा केंद्रों पर केंद्रित है। उत्तराखंड बेरोजगार संघ के नेता राम कंडवाल ने खुलासा किया कि उन्हें परीक्षा के दौरान ही पूरा पेपर मिल चुका था, और बाद में मिलान से सच्चाई सामने आई। कांग्रेस ने धामी सरकार पर निशाना साधा और 22 सितंबर को सभी जिलों में धरना आयोजित करने का ऐलान किया।

यह सब 2023 के ‘प्रतिस्पर्धी परीक्षा भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम और उपाय अध्यादेश’ के बाद हो रहा है, जो नकल या लीक पर आजीवन कारावास और 1 करोड़ रुपये तक जुर्माना लगाने का प्रावधान करता है। फिर भी, कानून का असर शून्य क्यों है? कारण साफ हैं: तंत्र की जड़ों में सड़न। आयोग के पूर्व अध्यक्ष आर.बी.एस. रावत, पूर्व सचिव मनोहर कन्याल और पूर्व परीक्षा नियंत्रक आर.एस. पोखरिया जैसे अधिकारी पहले ही 2016 के वीडीओ भर्ती घोटाले में पकड़े जा चुके हैं। एस.टी.एफ. ने 2022 से 2023 के बीच 60 से अधिक गिरफ्तारियां कीं, लेकिन नेटवर्क को तोड़ने में विफल रही। नकल माफिया अब अंतरराज्यीय हो गए हैं—उत्तर प्रदेश के तीन माफिया पर भी शिकंजा कसने की बात हो रही है। युवा, जो सालों की मेहनत डालते हैं, वे तो लूटे जाते हैं; माफिया जमानत पर बाहर आकर फिर सक्रिय हो जाते हैं। क्या यह ‘नौकरियों के सौदागरों’ का साम्राज्य है, जहां कानून सिर्फ काग़ज़ों पर सजता है?

यह पटवारी लीक केवल एक घटना नहीं, बल्कि उत्तराखंड के लाखों बेरोज़गार युवाओं की निराशा का प्रतीक है। जब सख्त कानून भी माफिया को रोक न पाएं, तो विश्वास कैसे बचेगा? सरकार को अब न केवल जांच तेज करनी होगी, बल्कि आयोग की संरचना बदलनी होगी—डिजिटल निगरानी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) आधारित निगरानी और पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी होगी। युवाओं की पुकार सुनिए: नकल माफिया को कुचलो, सपनों को उड़ान दो। वरना, पहाड़ी राज्य का भविष्य भी पहाड़ों तले दब जाएगा।

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