ब्लॉग

भूकानून पर धामी सरकार की सकारात्मक पहल

The recent statement by Uttarakhand Chief Minister Pushkar Singh Dhami regarding land reform is a significant and positive development, regardless of its political implications. The Chief Minister has announced plans to introduce a robust land law during the upcoming budget session. If Dhami aspires to leave a lasting legacy akin to that of Pandit Govind Ballabh Pant, Dr. Yashwant Singh Parmar, and Narayan Dutt Tiwari, he still has the opportunity to craft a land law that aligns with the public’s sentiments, despite past delays.  Govind Pant recognized the importance of land reform as being as crucial as independence itself, enacting the “Uttar Pradesh Zamindari Vinash and Land Reform Act of 1950” even before independence. Similarly, Dr. Parmar introduced the Himachal Pradesh Kasthkari and Land Reform Act in 1971, shortly after Himachal Pradesh achieved full statehood. Pandit Narayan Dutt Tiwari, the first elected Chief Minister of Uttarakhand, amended the “Uttar Pradesh Zamindari Vinash and Land Reforms Act of 1950” to prevent non-farmers from purchasing agricultural land, thereby safeguarding farmers’ interests. However, he faced considerable pressure from land dealers in the plains, which led him to exclude municipal areas from this law by adding Section 2. This amendment has been widely misused, particularly after the expansion of municipal bodies in 2017. In light of this historical context, Dhami has a crucial opportunity to honor the legacies of his predecessors by enacting a comprehensive land law that truly reflects the needs and aspirations of the people of Uttarakhand.-JSR

 


-जयसिंह रावत
चाहे राजनीतिक निहितार्थ जो भी हों मगर भूकानून पर उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के भूकानून को लेकर नवीनतम वक्तव्य सकारात्मक अवश्य ही माने जायंेगे। मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि अगले बजट सत्र में प्रदेश का एक सशक्त भूकानून पारित हो जायेगा। अगर पुष्कर सिंह धामी पंडित गोविन्द बल्लभ पंत, डा0 यशवन्त सिंह परमार और नारायण दत्त तिवारी की तरह यादगार बनना चाहते हैं तो विलम्ब के बावजूद उनके पास जनभावनाओं के अनुरूप भूमि कानून बनाने का अवसर बचा हुआ है। गोविन्द पन्त ने आजादी से पहले ही भूमि सुधार को आजादी के बराबर महत्व देते हुये स्वतंत्र भारत का सबसे पहला भूमि सुधार कानून ‘‘उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950’’ बनवाया था और डा0 परमार ने सन् 1971 में हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के साथ ही हिमाचल प्रदेश कास्तकारी एवं भूमि सुधार अधिनियम-1972 बनाया था। इसी तरह उत्तराखण्ड के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री पंडित नरायण दत्त तिवारी ने कास्तकारों की जमीनें भूखोरों से बचाने के लिये ‘‘उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950’’ में संशोधन कर गैर कृषकों द्वारा कृषकों की जमीनें खरीदने पर रोक लगाने की कानूनी व्यवस्था कर दी थी। हालांकि तिवारी जी पर भी मैदानी इलाके के भूमि सौदागरों का भारी दबाव रहा जिस कारण उन्होंने नये कानून में धारा-2 जोड़ कर नगर निकाय क्षेत्रों को इस कानून के दायरे से बाहर कर दिया था जिसका दुरुपयोग बड़े पैमाने पर 2017 के बाद नगर निकायों का विस्तार करने से हुआ।

 

नया भूमि प्रबंधन कानून बनाने के लिये गठित पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता वाली समिति अपनी रिपोर्ट 5 सितम्बर 2022 को सौंप चुकी थी लेकिन उस रिपोर्ट को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया था। इसलिये आम धारणा बनी कि जनता की ओर से उठ रही प्रचण्ड मांग के बावजूद लोगों की जमीनें भूमिखोरों से बचाने के लिये राज्य सरकार कठोर कानून बनाने से बच रही है। यह धारणा इसलिये भी पुष्ट हुयी कि नारायण दत्त तिवारी सरकार द्वारा कास्तकारों की जमीनें बचाने के लिये 1950 के अधिनियम में संशोधन कर जो कानून बनाया गया था उसमें भी भाजपा की ही त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने 2018 में औद्योगीकरण के नाम पर उत्तराखंड (उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950)(अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश, 2001) की धारा 154, 143 एवं 129 में संशोधन कर इस कानून को लगभग निष्प्रभावी ही बना दिया था। उसके बाद भी उसी भूकानून की धारा 143 की उपधारा ’क’ और ’ख’ को हटाने से तिवारी द्वारा बनाये गये भूकानून का जनाजा ही निकल गया था। इन धाराओं में प्रावधान था कि अगर उद्योग के प्रयोजन के लिये हासिल की गयी जमीन का 2 साल के अन्दर उसी प्रयोजन के लिये उपयोग नहीं किया गया तो कलक्टर उसी कानून की धारा 167 के तहत उस जमीन को जब्त कर सरकार में निहित कर लेगा।

लेकिन अब मुख्यमंत्री धामी ने यह कह कर सशक्त भूकानून की आशा जगा दी कि उत्तराखंड (उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) (अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश, 2001) में 2017 के बाद किये गये संशोधनों के लक्ष्य हासिल नहीं हुये हैं। उस समय राज्य में 125 लाख करोड़ के पूंजी निवेश के इच्छापत्रों पर हस्ताक्षर हुये थे। लेकिन अब मुख्यमंत्री ने स्वीकार कर लिया कि संशोधनों से भूमि कानून में दी गयी शिथिलता के बावजूद औद्योगिक निवेश का मकसद हल नहीं हुआ इसलिये उन संशोधनों पर पुनर्विचार किया जायेगा और जरूरी हुआ तो उन्हें हटा दिया जायेगा। इन्हीं संशोधनों का राज्य में भारी विरोध हो रहा था और यही संशोधन सरकार विरोधी भावनाओं को भड़का रहे थे। यही नहीं मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सशक्त भूकानून के लिये गठित सुभाष कुमार समिति की सिफारिशों की भी समीक्षा की जा रही है और सरकार अगले बजट सत्र में निश्चित रूप से एक सशक्त भूकानून को पास करा देगी। सुभाष कुमार समिति ने हिमाचल प्रदेश कास्तकारी एवं भूमि सुधार अधिनियम 1972 की धारा 118 से मिलती जुलती 23 सिफारिशें कर रखी हैं और उत्तराखण्ड में भी हिमाचल प्रदेश के इसी कानून की तर्ज पर भूकानून बनाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है।

औद्योगीकरण के नाम पर कानून में ढील दिये जाने से सन् 2018 से लेकर अब तक उत्तराखण्ड की प्राइम लैंड लगभग बिक चुकी है। जमीनों की बेतहासा खरीद फरोख्त नगरीय क्षेत्रों और उनके आसपास ही हुयी है। इसके लिये ही भूमि कानून में धारा -2 रखी गयी थी। उस धारा के अनुसार कृषि भूमि की खरीद पर अंकुश वाला प्रावधान नगर निकाय क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है। इस धारा का लाभ भूमि सौदागरों को पहुंचाने के लिये सन् 2017 में ही प्रदेश के 13 में से 12 जिलों के 385 गावों को 45 नगर निकायों में शामिल कर 50,104 हेक्टेअर जमीन को खरीद फरोख्त की बंदिशों से मुक्त कर दिया गया था। राज्य सरकार के इस निर्णय से अकेले गढ़वाल मण्डल में देहरादून जिले में सर्वाधिक 85 ग्रामों के 20221.294 हैक्टेयर ग्रामीण क्षेत्र को नगर निगम के अतिरिक्त हरबर्टपुर, विकास नगर, ऋषिकेश, डोईवाला शामिल किया गया है। यही नहीं गैरसैण तहसील में जमीनों की खरीद पर 2012 में लगी रोक को 2018 में सरकार ने हटा दिया था।

 

उत्तराखण्ड अकेला हिमालयी राज्य है जहां जमीनों की बिकवाली और दलाली का धन्धा सर्वाधिक फलफूल रहा है। उत्तराखण्ड की व्यावसायिक और आवासीय महत्व की सभी जमीनें भूखोरों के चंगुल में चली गयी हैं और सर्वाधिक आमदनी वाला प्रोपर्टी डीलिंग का व्यवसाय उत्तराखण्ड में दिन दुगनी और रात चाैंगुनी रफ्तार से फलफूल रहा है। यहां तक कि बड़ी संख्या में राजनीतिक लोग भी इस धन्धे में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल हैं। फिर भी अगर सरकार सचमुच एक सशक्त भूमि कानून बना रही है तो उसे सरकार का देर से आया हुआ दुरुस्त फैसला माना जा सकता है, बशर्ते सरकार जनभावनाओं के अनुकूल और व्यवहारिक कानून बना दे। अगर सरकार उत्तराखण्ड में उपान्तरित और अनुकूलित जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम-1950 में 2017 के बाद के सभी संशोधन समाप्त कर देती है तो भी पूरा मकसद हल नहीं होता। इसके साथ ही सरकार को अधिनियम की धारा दो पर भी पुनर्विचार करना चाहिये। क्योंकि उत्तराखण्ड में बहुत तेजी से नगरीकरण हो रहा है और उसी तेजी से सरकारें नगर निकायों का विस्तार और उनकी संख्या बढ़ाती रही हैं। इस तरह जो ग्रामीण क्षेत्र नगर निकायों में मिलाये जायेंगे वहां भूमि सौदागरों और भूखोरों की मौज आ जायेगी।

चूंकि राज्य को विरासत में उत्तर प्रदेश से जमीन संबंधी विभिन्न कानून मिले थे। इन सभी कानूनों को मिला कर एक भूमि संहिता बनायी जा सकती है। सरकार का काम भूमि प्रबंधन के साथ भूमि सुधार भी है। सरकार को भूस्वामित्व के रिकार्ड के साथ ही भूमि के प्रकार की इन्वेंटरी भी चाहिये। वर्तमान में भाूमि का प्रबंधन राजस्व विभाग के पास और भूमि उपयोग कराने वाले कृषि और उद्यान दो अलग-अलग विभाग हैं। गावों में जमीनों की अदलाबदली के कारण भूमि रिकार्ड अपडेट नहीं हैं। राजस्व अधिनियम 1901के अध्याय 5 से लेकर 8 तक लोप हो जाने के कारण सरकार के पास जमीनों का बंदोबस्त करने का कोई कानूनी आधार नहीं हैं। सन् 60 के दशक से प्रदेश में जमीनों के बन्दोस्त नहीं हुये हैं इसलिये रिकार्ड अद्यतन नहीं हैं। छोटी और बिखरी जोतें भी भूमि सुधार की दिशा में सबसे बड़ी अड़चन है लेकिन सरकार चकबन्दी भी नहीं कर पा रही है। एक एक खाते में दर्जनों खातेदार हैं और उनमें से बहुत सारे पलायन कर दूर चले गये हैं। पलायन के कारण जिन खेतों में झाड़ियां और जंगल उग गये उनके बारे में भी सरकार को सोचना चाहिये। अगर कानून बन रहा है तो उसमें भूमि संबंधी सभी मुद्दों का समावेश होना चाहिये।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!