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भारत में टीबी उन्मूलन की राह में गरीबी- कुपोषण अब भी बड़ी चुनौती

According to the World Health Organization (WHO) Global TB Report 2024, India bears 26% of the global tuberculosis (TB) burden. Aiming for the ambitious target of TB elimination by 2025, India is making progress, but challenges such as poverty, malnutrition, drug-resistant TB (MDR-TB), and limited medical facilities in tribal areas persist. On May 13, 2025, in New Delhi, Prime Minister Shri Narendra Modi reviewed the National TB Elimination Programme (NTEP) and directed the rapid nationwide implementation of the 100-day TB Mukt Bharat campaign.

 

 –जयसिंह रावत –

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार, भारत वैश्विक तपेदिक (टीबी) बोझ का 26% हिस्सा वहन करता है। 2025 तक टीबी उन्मूलन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखने वाला भारत प्रगति कर रहा है, लेकिन गरीबी, कुपोषण, दवा-प्रतिरोधी टीबी (MDR-TB), और आदिवासी क्षेत्रों में सीमित चिकित्सा सुविधाएँ चुनौतियाँ बनी हुई हैं। 13 मई 2025 को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) की समीक्षा की और 100-दिवसीय टीबी मुक्त भारत अभियान को देशभर में तेजी से लागू करने का निर्देश दिया। यह लेख भारत की वर्तमान स्थिति, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, और भविष्य की दिशा को संक्षेप में प्रस्तुत करता है।

PM reviews status and progress of TB Mukt Bharat Abhiyaan, in New Delhi on May 13, 2025.

2015 से 2023 तक भारत में टीबी की घटनाओं में 17.7% की कमी आई, जो वैश्विक औसत से दोगुनी है। 2023 में 27 लाख मामले सामने आए, जिनमें से 89% का उपचार हुआ। मृत्यु दर में 21.4% की कमी आई, और कुल 3.2 लाख मौतें अनुमानित हैं। सबसे प्रभावित वर्गों में 15-44 वर्ष के युवा, पुरुष (60% मामले), निम्न-आय वर्ग, शहरी झुग्गी-झोपड़ियों के निवासी, और कुपोषित लोग शामिल हैं। बच्चों में निदान दर कम है। NTEP के तहत 8,540 NAAT प्रयोगशालाएँ, 87 कल्चर प्रयोगशालाएँ, और 26,700 से अधिक एक्स-रे इकाइयाँ (जिनमें 500 AI-सक्षम हैंडहेल्ड उपकरण) स्थापित की गई हैं। आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में मुफ्त जाँच, उपचार, और पोषण सहायता उपलब्ध है।

1947 में स्वतंत्रता के समय, टीबी से 1 करोड़ लोग प्रभावित थे। गरीबी और कुपोषण ने बीमारी को बढ़ावा दिया, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएँ नगण्य थीं। स्ट्रेप्टोमाइसिन जैसी दवाएँ 1950 के दशक तक उपलब्ध नहीं थीं, और सामाजिक कलंक ने उपचार में बाधा डाली। आज भी, इंडिया टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार, 7.44 लाख मरीज कुपोषण से जूझ रहे हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में भीड़भाड़ टीबी के प्रसार को बढ़ाती है। निक्षय पोषण योजना (मासिक 500 रुपये सहायता) इस बोझ को कम कर रही है।

आदिवासी क्षेत्रों में टीबी का प्रचलन अधिक है, क्योंकि कुपोषण, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, और जागरूकता का अभाव बाधाएँ हैं। निक्षय वाहन और आशा कार्यकर्ता इन क्षेत्रों में सेवाएँ पहुँचा रहे हैं। फिर भी, 2023 में 1.3 लाख MDR-TB मामले और संपर्क ट्रेसिंग की कमी चुनौतियाँ हैं। यूनिटेड (Unitaid)के अनुसार, निवारक उपचार में सुधार न होने पर 2035 तक 10 लाख अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं।

2025 के लक्ष्य के लिए शीघ्र निदान, निवारक उपचार, और जागरूकता अभियान आवश्यक हैं। NAAT और AI-सक्षम एक्स-रे का विस्तार, डिजिटल मंचों (जैसे TeleMANAS) का उपयोग, और निजी चिकित्सकों की भागीदारी महत्वपूर्ण है। भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन आदिवासी और गरीब समुदायों पर ध्यान देकर ही टीबी मुक्त भविष्य संभव है।

(स्रोत: WHO वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2024, इंडिया टीबी रिपोर्ट 2024, न्यूज़ UN (14 जनवरी 2025, 20 जुलाई 2023), X पोस्ट (@JPNadda, 19 मार्च 2025), प्रधानमंत्री कार्यालय (13 मई 2025), और सार्वजनिक स्वास्थ्य अभिलेख।)

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