अहिल्या से अंकिता तक…….
-अरुण श्रीवास्तव –
कहते हैं कि विश्व का सबसे पुराना कारोबार देह व्यापार है पर होता दोतरफा है यानी दोनों पक्षों की रजामंदी से। उसी तरह से मानवता का सबसे पहला बलात्कार की शिकार अहिल्या हुई थी। अहिल्या का बलात्कार इंद्र ने गौतम ऋषि का रूप धारण करके किया था। तब भी छल हुआ था और आज भी हो रहा है। युग बदला पर न बदला अत्याचार। अहिल्या हो या अंकिता छली ही गईं हैं।
बिलकिस बानो : 2002 में गुजरात दंगों के दौरान हुआ एक विजातीय समुदाय के लोगों ने बिल्किस के साथ बलात्कार सदस्यों किया उस समय वह गर्भवती थी। पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शरण लेनी पड़ी। लंबी जद्दोजहद और राजनीतिक दबाव के बाद मामला मुंबई स्थानांतरित किया गया। लंबी अदालती लड़ाई के बाद कई दोषियों को आजीवन कारावास तथा पुलिस और डॉक्टरों सहित कई लोगों को साक्ष्य में हेरा फेरी के लिए सजा सुनाई गई। नियम कानून की बारीकियों का लाभ व एक धर्म विशेष की सरकार के अप्रत्यक्ष सहयोग का लाभ उठाते हुए बड़ी संख्या में अभियुक्त जेल से छोड़े गए। जग हंसाई तो तब हुई जब रिहा किए गए मुजरिमों का स्वागत फ़ूलों का हार पहनाकर, टीका लगा कर किया गया जैसे वो सीमा पार से जीत कर लौटे हों।
कठुआ कांड: जनवरी 2018 में जम्मू एवं कश्मीर के कठुआ में 8 वर्षीय आसिफा बनो का अपहरण कर सामूहिक बलात्कार की गई किया गया और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गई। कई आरोपियों को दोषी पाते हुए 25 वर्ष से ज्यादा की सजा दी गई यह तो हुआ अदालती मामला लेकिन इस घटना का सबसे शर्मनाक पहलू तो ये है कि एक समूह ने आरोपियों को बचाने के लिए हिन्दू एकता मंच ने राजनीतिक रंग देते हुए इसे हिंदुओं के हमला बताया गया। रैली निकाली जिसमें शामिल लोगों के हाथों में तिरंगा था। रैली में कुछ स्थानीय नेता भी शामिल थे। रैली निकालने का उद्देश्य पीड़ितों को अदालत पहुंचने से रोकना भी था। गैंग रेप एक आठ साल की बच्ची के साथ हुआ था। मुख्य आरोपी मंदिर का पुजारी था। बच्ची को कई दिन तक मंदिर में बंधक बनाकर रखा गया था। रेप करने वालों में एक पुलिस अधिकारी भी था।
उन्नाव बलात्कार : ये घटना राजनीतिक दबंगई को उजागर करती है। सत्तारूढ़ दल भाजपा का विधायक लगातार नाबालिग का रेप करता रहा क्योंकि बाहुबली था। रिपोर्ट जैसी प्रारंभिक प्रक्रिया के लिए भी पीड़िता को सीएम आवास के करीब आत्मदाह का प्रयास करना पड़ा। केस दर्ज होने के साथ ही शुरू हुआ राजनीतिक दबाव। पीड़िता के पिता की पिटाई से पुलिस कस्टडी में मौत हो गई, न्याय के लिए दर-दर भटकने के दौरान सड़क हादसे में उसके वकील की मौत हो गई और पीड़िता घायल। ऐसा हिंदी फिल्मों में ही देखने को मिलता है। अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है। अदालत ने भाजपा के इस पूर्व विधायक को इस आधार पर रिहा किया कि जिस धारा में उसकी गिरफ्तारी हुई उसमें सजा ही सात साल की है और आरोपी ने पांच महीने ज्यादा जेल में काट दिए। सेंगर को न सिर्फ जमानत मिली बल्कि उनकी सजा को निलंबित कर दिया गया। इस फैसले के विरोध में जब पीड़िता ने लोकतांत्रिक अधिकार के तहत धरने पर बैठ गई तो ट्रिपल इंज़न की सरकार वाली पुलिस जबरन उठाकर ले गई। तुर्रा यह कि उसे ठंड से बचाने के लिए यह सब किया तो 26 जनवरी के पहले जब अरविन्द केजरीवाल की रात दिल्ली की सड़कों पर अनशनरत रहे तो इसी दिल्ली की पुलिस इसी आधार पर उन्हें क्यों नहीं उठाया?
ध्यान देने वाली बात ये भी है कि दिल्ली दंगे के दौरान कथित रूप से उत्तेजक भाषण देने के आरोपी उमर खालिद 5 साल से जेल में बंद है। उसे अब तक जमानत नहीं मिली। जमानत के लिए सुनवाई एक दर्जन बार से ज्यादा रद हुई। जबकि इस मामले में कानूनी प्रक्रिया का ही पूरी नहीं निभाई गई। वहीं पर पुलिस से संरक्षण में भाजपा नेता दिलीप मिश्रा खुलेआम दंगाइयों को चुनौती पूर्ण लहजे में आदेश देते हैं कि अगर तय समय सीमा तक उन्होंने अपना धरना प्रदर्शन नहीं समाप्त किया तो उसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें। दिलीप मिश्रा यह चेतावनी जिस समय दे रहे थे उसी समय उनके ठीक पीछे पुलिस के आला अधिकारी मौजूद रहे। पर खामोश रहे।
हाथरस बलात्कार : यह भी महिला अत्याचार की एक कड़ी भर नहीं है। पीड़िता के ही चार उच्च जाति के दबंगों ने गैंगरेप के बाद उसे घायल अवस्था में खेत में छोड़ दिया था। निर्भया की ही तरह उसकी भी मौत अस्पताल में हुई। इस बीच कई दिनों तक धरना प्रदर्शन हुआ। इसी बीच देर रात में स्थानीय प्रशासन ने कथित तौर पर पेट्रोल छिड़क कर उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया। अपुष्ट खबरों के अनुसार न परिवार को बताया और न ही सभी सदस्यों को शामिल होने दिया। जहां एक ओर डबल इंजन की रामराज वाली सरकार में अंतिम संस्कार की रस्म भी उसके पार्थिव शरीर को नसीब नहीं हुई वहीं जन प्रतिनिधियों को भी उसके गांव तक नहीं जाने दिया गया। मौके पर पहुंचने वाले राहुल गांधी को रोकने की कोशिशें नोएडा से ही होने लगी और तो और गांव तक पहुंचने की कोशिश में लगे धक्के से वो गिर भी गए। यही नहीं केरल से आ रहे पत्रकार सिद्दीक कप्पन को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया। लंबे समय तक वो जेल की सलाखों के पीछे रहे। जबकि कठुआ में हिंदुवादी संगठनों ने यात्रा तक निकाली और नेता और वकील तक उसमें शामिल थे।
आसाराम और राम रहीम : दोनों ही धर्म गुरु हैं दोनों ने अपने आश्रम में रह रही अपनी शिष्याओं से दुराचार किया। घटना के बाद दोनों की कारस्तानियां पूरी दुनिया को पता चली। दोनों हिंदुत्ववादी सोच वाली सत्ता के करीबी थे, इन्हीं बाबाओं के उपासक थे। दोनों जेल में होने के बाद भी छूटते रहे। सच्चा डेरा वाले राम रहीम बार बार पैरोल व फर्लो पर छूटते रहे वो भी चुनाव के दरम्यान तो आसाराम चिकित्सा के आधार पर जमानत पर हैं। सत्ता का संरक्षण केवल इन्हीं को नहीं मिला। उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री जिनके साथ स्वामी जुड़ा हुआ है वह यौन उत्पीड़न के मामले से बाइज्ज़त बरी ही नहीं हुए पीड़िता और उसका सहयोगी सज़ा काट रहे हैं कारण गवाह पलट गये और जांच एजेंसियों ने कथित स्वामी पर कृपा बरसा दी। कानूनन झूठी गवाही देने और मुकरने पर सात साल की सजा का प्रावधान है लेकिन अदालतें कितनों को दंडित करतीं हैं कितनों को नहीं तो क्यों नहीं इस पर भी चर्चा होनी चाहिए।
अंकिता हत्याकांड : देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में कुछ साल पहले महिला यौन उत्पीड़न की घटना ने हमारे समाज और राजनीति के घिनौना सच सामने ला दिया लेकिन हमेशा की तरह उसमें भी मामले की लीपापोती हुई।पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली अंकिता भंडारी नामक किशोरी भाजपा नेता के पुत्र के रिजार्ट में काम करती थी। उसे एक खास अतिथि को स्पेशल ड्यूटी देने को बाध्य किया गया। इसका खुलासा उसकी मां ने करते हुए बताया कि उसकी बेटी ने फोन पर बताया कि कोई वीआईपी आने वाला है। बाद में उसका फोन बंद हो गया। कई दिनों तक अंकिता नहीं आयी। घटना के छह दिन बाद ऋषिकेश स्थिति चीला डैम में उसकी लाश मिली। अन्य पीड़िताओं व उनके परिजनों की तरह उसके परिजन भी व्यवस्था के दर पर ठोकरें खाते रहे। महिला व जनसंगठनों के दबाव में आज़ उसके अपराधी जेल में हैं पर उस वीआईपी का पता आज़ तक नहीं चला जिसको विशेष सेवा देने से मना करने पर उसको अपनी जान गंवानी पड़ी। उन्नाव और अंकिता मामले में नया मोड़ आने पर संबंधित क्षेत्रों में एक तरह से ‘भूचाल’ आया हुआ है। उन्नाव प्रकरण में कोर्ट का फैसला है तो अंकिता मामले में एक महिला का उस वीआईपी का नाम बताने की वज़ह। इस मामले में एक्ट्रेस उर्मिला सनावर जो कि खुद को पूर्व भाजपा विधायक सुरेश राठौर की पत्नी होने का दावा करती है। उसके अनुसार घटना के दिन होटल/रिज़ार्ट में भाजपा के उक्त राष्ट्रीय महासचिव भी मौजूद थे। महिला उसका नाम “गट्टू” के रूप में लेती है तो दूसरे में स्पष्ट नाम। भावना पांडे नाम की एक अन्य महिला का भी ऑडियो/वीडियो आया है। इसी आधार पर महिला संगठनों और राजनीतिक दलों ने उक्त वीआईपी की गिरफ्तारी की मांग की है। इन जैसे मुद्दों पर दलगत राजनीति का घिनौना चेहरा भी देखने को मिला। निर्भया कांड में जहां कांग्रेस और उनके जन संगठन चुप्पी साध रखी थी तो उन्नाव, कठुआ, हाथरस, अंकिता भंडारी, ब्रजभूषण शरण सिंह, आसाराम बापू, राम रहीम व चिन्मयानंद मामले में भाजपा व उसके जन संगठनों को सांप सूंघ गया। मस्जिद ज़ाने पर जया बच्चन के कथित अपमान पर भाजपा महिला मोर्चा सड़कों पर उतर आई थी। पर अपने पृत्र संगठन के राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम का नाम आने पर ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली। कोलकाता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज में डाक्टर के साथ यौन उत्पीडन को इन्हीं संगठनों ने निर्भया-२ की संज्ञा दी थी।
अब तो फोन पर बातचीत की रिकार्डिंग भी पब्लिक डोमेन में है। प्रदेश के सबसे बड़े विपक्षी दल के मुखिया ने भी प्रेस कांफ्रेंस कर मामले के जांच की मांग की। महिला संगठनों ने भी मोर्चा खोल रखा है। नाम के लिए ही सही अपनी कार्रवाई शुरू कर दी है पर असली आरोपी गिरफ्तार हो पाएगा क्या ?
(लेख में प्रकट विचार और तथ्य लेखक के निजी हैं, जिनसे एडमिन का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं –एडमिन)
