सचमुच भारत के रत्न थे रतन टाटा ….,
-गोविंद प्रसाद बहुगुणा-
यह तो बड़ी अपूरणीयक्षति हुई है रतन टाटा सचमुच रत्न ही थे -आजादी से पहले और आजादी के बाद टाटा परिवार का भारत के पुनर्निर्माण में बहुत बड़ा सहयोग है – न केवल उद्योगों की स्थापना में नहीं बल्कि ज्ञान -विज्ञान शिक्षा और तकनीकी के विकास में उनका बहुत बड़ा योदगान रहा है।
कोई क्षेत्र ले लीजिये उन्होंने निस्वार्थ भाव से रचनात्मक सहयोग देकर भारत के विकास में कार्य किया – बाकी अपने देश के पूंजीपति तो केवल अपनी पूंजियों के बढ़ाने में दिलचस्पी रखते आये हैं -उनमें अपवाद सिर्फ टाटा ही थे। वे अपने कर्मचारियों और श्रमिकों के भी हितैषी थे -उन्होंने श्रमिकों को बोनस देना सबसे पहले शुरू किया था जबकि उस ममय बोनस भुगतान का कोई क़ानून नहीं था।
टाटा ने होनहार विद्यार्थियों को भी छात्रवृत्तियां दी थी जिसकी बदौलत उन्होंने विदेश में उच्च शिक्षा हासिल की। भूतपूर्व राष्ट्रपति स्व० के० आर० नारायणन जी ने टाटा की छात्रवृत्ति पाकर लन्दन स्कूल आफ इकोनोमिक्स में पढ़ाई की थी ।
उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद स्वयं यह बताया लेकिन अपने कार्यकाल में उन्होंने टाटा को लाभ पहुंचाने का काम नहीं किया । टाटा सरकारी सेठ नहीं थे । ऐसे अनमोल रत्न को मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि निवेदित-GPB