महिलाओं के व्रतोत्सव और उपवास जरूरी हैं
-गोविंद प्रसाद बहुगुणा –
श्रीमद्भागवत में स्त्रियों के व्रत पर यह टिप्पणी देखने को मिली । इसमें कोई ख़ास बात नहीं है क्योंकि स्त्री- पुरुष सभी भगवान की पूजा इसलिए करते हैं कि भगवान उनकी रक्षा करेगा। लेकिन नोट करने लायक बात सिर्फ इतनी सी है कि यह शुकदेव जी बोल रहे थे, जिनकी न कोई बीबी न बच्चा न कोई गृहस्थी थी। विवाहित लोग खुश होते हैं कि उनकी पत्नी उनके खातिर व्रत कर रही हैं , यह उनका अपने पति के प्रति प्रेम का एक तरह से सार्वजनिक तौर पर इजहार करने का एक अवसर होता है । पति का अहं भी संतुष्ट हो जाता है यदि कभी दोनों के बीच थोड़ी खपपट हो जाती हो । दरअसल ऐसे व्रतोत्सव एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सा तकनीक मानी जा सकती है । यह दिन दम्पत्ति की निकटता का प्राइवेट उत्सव है। पतियों को भी उपहार जरूर देना चाहिए अन्यथा उनकी पत्नी द्वारा इसे one way traffic माना जायेगा या एकतरफा समर्पण । अब सुनिए शुकदेव जी क्या बोले –
स्त्रियो व्रतैस्त्वा हृषिकेश्वरं स्वतो ह्याराध्य लोके पतिशासितोSन्यम्।तासां न ते वै परिपान्त्यपत्यं
प्रियं धनायूंषि यतोSस्वतन्त्रा:।
आप इन्द्रियों के अधीश्वर हैं । स्त्रियां तरह- तरह के कठोर व्रतों से ही आराधना करके अन्य अलौकिक पतियों की इच्छा किया करती हैं किन्तु वे उनके पुत्र, धन और आयु की रक्षा नहीं कर सकती क्योंकि वे स्वयं ही परतंत्र हैं।
स वै पति स्यादकुतोभय:स्वयं
समन्तत:पाति भयातुरं जनम्।
स एक एवेतरथा मिथो भयं
नैवात्मलाभादधि मन्यते परम्।।
सच्चा पति यानी रक्षक तो ईश्वर ही है जो स्वयं बिल्कुल निर्भय है और जो भयातुर लोगों की रक्षा कर सकता है।